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प्रस्तावना - राष्ट्रीय समग्र विकास संघ

'राष्ट्रीय समग्र विकास संघ' पढ़े-लिखे कर्मचारियों/अधिकारियों, वकीलों, पत्रकारों, अभियंताओं, डॉक्टरों एवं अन्य बुद्धिजीवी वर्ग से संबंधित लोगों ने मिलकर राष्ट्र और समाज के समग्र विकास हेतु निर्मित किया है। सर्वप्रथम जनवरी 2014 में कुछ बुद्धिजीवी एवं समाजसेवियों ने मिलकर श्री चमनलाल (भारतीय पुलिस सर्विस से सेवानिवृत्त) के संरक्षण तथा श्री के.सी. पिप्पल (भारतीय आर्थिक सर्विस से सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में  उक्त संगठन को निर्मित करने का संकल्प लिया। अल्प काल में संगोष्ठियों का आयोजन करके संगठन की विचारधारा को अधिकांश बुद्धिजीवियों तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की। संगठन की कोर टीम ने मिलकर यह निष्कर्ष निकाला, कि भारत के राष्ट्र निर्माण के संकल्प को पूरा करने में जातीय असमानता दूसरी असमानताओं से बड़ी बाधा सिद्ध हुई है। हमारे महापुरुषों एवं समाज सुधारकों ने समय-समय पर, इस बुराई को जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया, परंतु यह बीमारी और अधिक बढ़ती चली गई। आज भारत में सभी कार्यों का आधार जाति को ही बनाया जाता है । नियुक्तियों में आरक्षण, राजनीति में टिकट देने, सर्वोच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति, सर्वोच्च धार्मिक पद पर शंकराचार्य की नियुक्ति, ठेके और लाइसेंस देने, सर्वोच्च शिक्षा में कुलपतियों की नियुक्ति या अन्य कोई सर्वोच्च नियुक्ति करने का सवाल हो, उक्त सर्वोच्च पदों पर जाति की श्रेष्ठता को अधिक महत्व दिया जाता है।

डा. भीमराव अंबेडकर के अथक संघर्ष के कारण अब तक राजनीतिक समानता ही प्राप्त हो सकी है, जिसके कारण वंचित तबकों  को सम्मान प्राप्त हुआ है। परंतु आर्थिक और सामाजिक गैर बराबरी होने के कारण वे अपने इस अधिकार का प्रयोग अपने हित में नहीं कर पा रहे हैं। कुल मिलाकर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ी जातियों एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अंतर्गत आने वाली कमजोर जातियों में घोर निराशा तथा पराधीनता का भाव सक्रिय हो गया है। इस दिशा में चुने हुए राजनीतिक प्रतिनिधि, जो इन जातियों से चुनकर आते हैं, वे भी इनकी सहायता करने में पूर्णत: असफल साबित हुए हैं।

इसलिए “राष्ट्रीय समग्र विकास संघ” एक नई आशा और विश्वास के साथ समाज को सामाजिक न्याय दिलाने तथा सभी तरह की असमानताओं से समाज को मुक्ति दिलाने का तब तक सतत प्रयास करता रहेगा जब तक हर व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक कीमत बराबर नहीं हो जाती।