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निमंत्रण: 21.3.20 - "स्थापना दिवस" एवं "जयंती" समारोह

 

 

विषय की पृष्ठभूमि

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की विभिन्न रिपोर्टों से यह सिद्ध हो चुका है कि वास्तव में जीने का उद्देश्य स्वस्थ रहने से है। अस्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वंय दुखी, रोगी और उपेक्षित रहते हैं अपितु वह सारे समाज तथा विश्व के लिए भार बन जाते हैं। उससे राष्ट्र के समग्र विकास की गति बाधित हो जाती है उसके परिवार की प्रगति में रुकावटें पैदा हो जाती हैं। वस्तुत: स्वस्थ व्यक्ति ही समाज का जागरुक एंव उपयोगी नागरिक है।

 

“राष्ट्रीय समग्र विकास संघ” का संक्षिप्त परिचय एवं उद्देश्य:

 

“राष्ट्रीय समग्र विकास संघ” सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति की दिशा में तब तक सतत प्रयास करता रहेगा जब तक हर व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक कीमत बराबर नहीं हो जाती। 'एक व्यक्ति एक कीमत' (“ONE MAN ONE VALUE”) के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु RSVS निम्नलिखित पांच मुद्दों पर देश के समग्र विकास हेतु प्रयासरत है।

 

  1. सामाजिक श्रेणियों को जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व/ आरक्षण प्रणाली/ Proportionate Representation system to all Social categories in accordance to their population
  2. सरकारी कोष पर भ्रष्टाचार मुक्त समग्र चुनाव प्रणाली/ Corruption free holistic election system on Government costs;
  3. प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य रूप से निशुल्क एवं समान स्तरीय एकरूप शिक्षा प्रणाली/ Compulsory, free and equal level of uniform education system to every children;
  4. सरकार द्वारा प्रत्येक पारिवार के कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार की गारंटी प्रणाली/ Guarantee system of employment of at least one person in each family by the government;
  5. समाज के सभी सदस्यों को सरकार द्वारा निशुल्क स्वास्थ्य सेवा प्रणाली/ Holistic healthcare system for each and every member of Society.

इस बार छठे स्थापना दिवस समारोह के द्वितीय सत्र में "राष्ट्रीय समग्र विकास संघ" के 5वें बिंदु 'निशुल्क चिकित्सा सुविधा प्रणाली' पर आधारित सेमिनार के विषय "वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली: सरकार और जनसामान्य की भूमिका" पर चर्चा की जाएगी।

 

संगठन की अवधारणा और संक्षिप्त परिचय

 

राष्ट्र और समाज के समग्र विकास हेतु कर्मचारियों/ अधिकारियों, वकीलों, पत्रकारों, अभियंताओं, डॉक्टरों, शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं अन्य बुद्धिजीवी वर्ग से संबंधित लोगों ने मिलकर 'राष्ट्रीय समग्र विकास संघ' का गठन 19 जनवरी 2014 को श्री चमनलाल (भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी) के संरक्षण तथा श्री के. सी. पिप्पल (भारतीय आर्थिक सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी) की अध्यक्षता में किया। वर्तमान में श्री हीरा लाल एडवोकेट (सेवानिवृत्त आईएएस), आजीवन संरक्षक हैं। डॉ. जयकरन जी वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जो भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग में वरिष्ठ अधिकारी हैं। यह संगठन बुद्ध और डॉक्टर अंबेडकर के डायनामिक्स पर आधारित है। इसलिए संगठन का हर साल लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुनाव किया जाता है और नई कार्यकारिणी कार्यभार ग्रहण करती है। यह समाज का संगठन, समाज के लिए, समाज के द्वारा सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत द्वारा संचालित है। श्री के सी पिप्पल इस संगठन के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं, दूसरे अध्यक्ष श्री सोहन लाल जी, तीसरे अध्यक्ष श्री कर्नल आर एल राम जी, चौथे अध्यक्ष श्री हीरालाल जी और अब पांचवें अध्यक्ष डॉक्टर श्री जयकरन जी चुने गए हैं। इस बार का कार्यक्रम इनकी अध्यक्षता में हो रहा है। 20.8.2018 से "राष्ट्रीय समग्र विकास संघ" के नाम से यह संगठन सरकार द्वारा S-E/1459 संख्या पर पंजीकृत है। संगठन का सम्पूर्ण विवरण इसकी अधिकृत वेबसाइट www.rsvsindia.com पर क्लिक करके देखा जा सकता है।

 

संगठन के मुद्दों की बात करें तो “जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण” को देश की लगभग अधिकतर एससी/एसटी और ओबीसी के हितों के लिए काम करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने अपना मुद्दा बना लिया है। इसी प्रकार दूसरा मुद्दा “सरकारी खर्चे पर चुनाव” भ्रष्टाचार मुक्त भारत बना सकता है। चुनाव सुधार की दिशा में काफी कारगर सिद्ध हुआ है, जो अब जनता की आवाज बनता जा रहा है। तीसरा मुद्दा “निशुल्क और यूनिफॉर्म शिक्षा” प्रणाली है, जिसके बहुत से बिंदु नवनिर्मित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल कर लिए गए हैं। स्कूली शिक्षा का राष्ट्रीयकरण इसका प्रमुख उद्देश्य है। चौथे मुद्दे में “प्रत्येक परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार” मिले और जिसका वेतन न्यूनतम सरकारी वेतन के बराबर हो शामिल है। खुशी की बात यह है कि इस मुद्दे को सिक्किम की सरकार ने 2019 में अपने राज्य में लागू कर दिया है और दूसरी सरकारों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। यह संगठन पांचवें मुद्दे के द्वारा देश में "फ्री हेल्थ-केयर सिस्टम" लागू करवाना चाहता है। जिसके अंतर्गत हर व्यक्ति को आसानी से चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो सके। इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए इसी विषय पर 21 मार्च  2020 को सेमिनार का आयोजन किया गया है, जिसका जिक्र प्रपत्र के आगामी भाग में किया जा रहा है।

 

बीमारियों से हुईं मौतों को कम करने के लिए यूनिवर्सल हेल्थकेयर सिस्टम की जरुरत

 

हांलाकि, आजादी के बाद भारत में लगातार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है परंतु अभी भी काफी सुधार की जरुरत है। भारत राज्य स्तरीय रोग भार (India state level disease burden 2016) की रिपोर्ट के अनुसार: वर्ष 2016 के दौरान सर्वाधिक 61.8% मौतें गैर-संचारी रोगों (non-communicable diseases) द्वारा हुईं; इन बीमारियों में हृदय रोग, मधुमेह, पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य, तंत्रिका संबंधी रोग, कैंसर, मस्कुलोस्केलेटल विकार और क्रोनिक किडनी रोग शामिल हैं। जिनमें से 28.1% मौतें हृदय रोग के कारण हुईं; जीर्ण श्वसन रोग से 10.9%, कैंसर से 8.3%, मधुमेह, मूत्र-जननांग, रक्त और अंतःस्रावी रोगों से 6.5% मौतें हुईं। इनके अतिरिक्त अवशेष गैर-संचारी रोगों के कारण कम मौतें हुईं। इसी वर्ष में मातृ, नवजात और पोषण संबंधी संचारी रोगों से 27.5% मौतें हुईं, जिनमें सर्वाधिक 15.5% मौतें (डायरिया, लोअर रेस्पिरेटरी और आम इंफेक्शन) बीमारियों से हुईं। तपेदिक और एचआईवी एड्स से 5.4% और नवजात शिशुओं की बीमारी से 3.8% मौतें हुईं। इसी प्रकार तीसरा मौतों का कारण एक्ससीडेंट या चोट लगना पाया गया जिसके बजह से कुल 10.7% मौतें हुईं जिनमें लगभग आधी मौतें अनजाने में लगी चोट से हुईं थीं। जिस तरह अधिक मौतें होना ठीक नहीं है उसी तरीके से अधिक बच्चे पैदा होना भी ठीक नहीं है इसके चलते देश में इस समय बुजुर्गों की तादाद बढ़ी है। जीवन की आयु संभाविता 70 वर्ष से ऊपर हो गई है। जन्म दर में कमी आई है तो मृत्यु दर में भी कमी आई है। जिसके चलते इस समय देश की जनसंख्या लगभग 138 करोड़ हो गई है। इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार, खाना और अन्य संसाधन उपलब्ध कराना सरकार के लिए चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के हेतु संतुलित स्वास्थ्य नीति को आर्थिक नीति से जोड़ना जरूरी है।

 

‘राष्ट्रीय समग्र विकास संघ’ द्वारा पहल

 

भारतीय संविधान में जिस तरह हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन जीने का समान अधिकार प्राप्त है, उसी प्रकार उनके जीवन को रोगमुक्त करने की जिम्मेदारी भी सरकार को लेनी चाहिए। इस दिशा में संविधान की मंशा के तहत सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का स्थानीय स्तर तक विस्तार, चिकित्सा कर्मियों का विस्तार, नए चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता, स्वास्थ्य बजट में बढ़ोत्तरी, आम आदमी तक बेहतर स्वास्थ्य  सुविधओं की पहुँच में जटिलताओं को दूर करना, ग्रामीण अंचल में सभी जिला अस्पतालों के साथ मेडिकल कालेज खोलना, स्कूली पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराना, चिकित्सकों की रिटायरमेंट आयु सीमा में बढ़ोत्तरी इत्यादि से स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में बड़े सुधारात्मक उपाय हो सकते हैं।

 

निशुल्क बेहतर स्वास्थ्य सुविधा संविधान प्रदत्त अधिकार

 

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में यह प्रावधान है कि, "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।"  अनुच्छेद 19 द्वारा गारंटीशुदा स्वतंत्रताओं की आगे अनुच्छेद 20-22 द्वारा रक्षा की जाती है। अनुच्छेद 21, यह जापान से लिया गया है। 1978 में, मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा अनुच्छेद 21 के अंतर्गत "जीवन" का अर्थ मात्र एक "जीव के अस्तित्व" से कहीं अधिक है; इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार तथा वे सब पहलू शामिल है जो व्यक्ति के जीवन को "अर्थपूर्ण तथा जीने योग्य" बनाते हैं। इसके बाद की न्यायिक व्याख्याओं ने अनुच्छेद 21 के अंदर अनेक अधिकारों को शामिल करते हुए इसकी सीमा का विस्तार किया है। जिनमें आजीविका या रोजगार, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य, अदालतों में त्वरित सुनवाई तथा कैद में मानवीय व्यवहार से संबंधित अधिकार शामिल हैं। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 के 86वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद (21ए) में मूल अधिकार बनाया गया है। सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "जीवन के अधिकार" में स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार शामिल है ताकि मानव शरीर के सभी संकायों का आनंद ले सकें। इसके साथ अनुच्छेद 42 में काम की न्याय-संगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंधहै।

 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य कोष का निर्माण- स्वास्थ्य के लिए धन  (Wealth for Health)

 

जीवन का अधिकार निस्संदेह सभी अधिकारों में सबसे मौलिक है। सभी मानवाधिकार केवल जीवित प्राणियों पर ही लागू होते हैं, इसलिए हर व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार में ‘स्वास्थ्य का अधिकार’’ भी शामिल है। क्योंकि अन्य अधिकारों का इसके बिना कोई मूल्य या उपयोगिता नहीं है। एक कहावत है कि "Health is wealth" (स्वास्थ्य ही धन है) जो आज के समय में जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

 

स्वास्थ्य सेवा मॉडल को पुनर्गठित करने की आवश्यकता -भारत को अपने सभी नागरिकों को निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का दोहरा लक्ष्य हासिल करना है तो इसके लिए स्वास्थ्य देखभाल मॉडल को पुनर्गठित करने की सख्त जरूरत है। भारत दो प्रमुख वास्तविकताओं के बीच से गुजर रहा है - एक तरफ बड़ी आबादी और और दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति कम जीडीपी, जिससे स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पर्याप्त निवेश के लिए बहुत कम गुंजाइश बन पाती है। इसकी भरपाई के लिए ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य कोष का निर्माण’  ही एक उपयुक्त तरीका है।

 

प्रमुख महानगरीय क्षेत्रों से बाहर ग्रामीण क्षेत्र में डॉक्टरों की भारी कमी, समस्या को और जटिल बना देती है। पुराने गैर-संक्रामक रोगों के प्रसार में तेजी से वृद्धि, भावी खतरे का अंदेशा जताती है। एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने ज्यादा से ज्यादा सुपर स्पेशलियलिटी अस्पताल खोलकर मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटने की कोशिश की है।

 

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा किसी भी स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ होनी चाहिए, वहीं हमें हृदय रोग और कैंसर जैसी जानलेवा और घातक बीमारियों से लड़ने के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता युक्त विशिष्ट अस्पताल होने चाहिए। भारतीयों की विशाल संख्या की जरूरतों के बारे में सरकार को अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए। भारत जैसे आकार के देश में प्रत्येक वर्ष दिल से संबंधित 25 लाख सर्जरी की आवश्यकता होती है। लेकिन लगभग एक लाख समृद्ध रोगियों की ही सर्जरी होती है, जो महंगे निजी अस्पतालों का खर्च वहन कर सकते हैं।

 

सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली (Universal Health Scheme)

 

सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली को लागू करके बहुत से देशों की सरकारों ने बेहतर परिणाम प्राप्त किये हैं। भारत सरकार को भी उनसे प्रेरणा लेना चाहिए। मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता के साथ, यूनिवर्सल हैल्थ स्कीम शुरू की जा सकती है और लोगों के निम्न आय स्तर को बढ़ाने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

  1. शांति और निरंतर आर्थिक विकास से स्वास्थ्य के लिए और अधिक धन जुटाया जा सकता है।
  2. हर अच्छी स्वास्थ्य प्राणाली का लक्ष्य गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवाएं समग्र नागरिकों तक पहुंचाना होना चाहिए।
  3. अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली द्वारा उत्पादकता, नीति-अनुसंधान हेतु लोगों में शिक्षित होने और सीखने कीअपार क्षमता पैदा की जा सकती है।
  4. 'बेहतर स्वास्थ्य - उत्कृष्ट सेवा' के सिद्धांत द्वारा नागरिकों को अच्छी शासन व्यवस्था का एहसास कराया जा सकता है।

स्वास्थ्य सेवा उद्योग (Focused Healthcare Factory) पर एक नजर

 

वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में पहले से ही विशेष डॉक्टर उपलब्ध हैं और कुछ बीमारी जैसे कैंसर, टीबी आदि के लिए उत्कृष्ट केंद्र भी हैं। जिसके कारण विशेष बीमारियों को नियंत्रित करने में बड़ी सफलता मिली है, इस तरह की सेवाओं का विस्तार करके सरकार और बड़ी कामयाबी हासिल कर सकती है। स्वास्थ्य सेवा सबसे बड़ी जान सेवा है। जनता की जिम्मेदारी है की सेवाओं की जानकारी प्राप्त करके उनका लाभ उठायें तथा एक दूसरे को जानकारी दे कर स्वस्थ और समृद्ध भारत का निर्माण करने में भागीदार बनें। इस संदर्भ में उपरोक्त सेमिनार में विद्वान स्वास्थ्य विशेषज्ञ अपने विचार रखेंगे जो जनता और सरकार के बीच धुरी का काम करेंगे। आशा है उक्त सेमिनार सभी के लिए अत्यंत लाभदायी सिद्ध होगा।

 

इस उपयोगी पत्र को आप ध्यानपूर्वक पढ़ें और अपने मित्रों को पढ़ाएं। इसे एक निमंत्रण पत्र की हैसियत से ग्रहण करें और समारोह में आप अपने परिवार और मित्रों सहित जरूर पहुंचें।

 

सधन्यवाद,

 

 नोटः संगठन के बारे में विस्तार से जानकारी इसकी वेबसाइट www.rsvsindia.com पर उपलब्ध है। सेमिनार से सम्बंधित अपने सुझाव Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. पर भेज सकते हैं।