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सेमिनार: समग्र स्वास्थ्य एवं चिकित्सा- एक जरूरत

सेमिनार के विषय की पृष्ठभूमि

महोदय/महोदया,

भारत में चिकित्सा पद्धति का विकास ईसा से 530 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध और मगध महाराज बिम्बिसार के राजवैद्य जीवक के समय से माना जाता है। वह एक गणिका के पुत्र थे जिसे उसने पैदा होते ही एक मिट्टी के ढेर पर फेंक दिया था। महाराज बिम्बिसार के पुत्र अभय ने उसे देखा और कहा यह तो जीवित है। इसलिए उसका नाम जीवक पड़ा। राजकुमार अभय ने जीवक को पढ़ने के लिए तक्षशिला विश्वविद्यालय भेजा जो आज पाकिस्तान के इस्लामाबाद में स्थित है। बड़े होकर इसी बालक ने एक प्रसिद्ध चिकित्सक राजवैद्य जीवक के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने भारतीय चिकित्सा विज्ञान की नींव रखी। इनके बाद राजवैद्य चरक का नाम आता है चरक ने भी अपनी शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। 'चरक' को कुषाण वंशी बौद्ध सम्राट कनिष्क ने अपना राजवैद्य बनया था। सम्राट कनिष्क 78वीं ईसवी में उत्तरी भारत के विश्व प्रसिद्ध शासक थे। वैद्यराज चरक ने वैद्यराज जीवक की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चरक संहिता का निर्माण किया जो संस्कृत में लिखी गई। उस समय तक "पाली" की जगह महायान शाखा के बौद्ध विद्वान संस्कृत भाषा का प्रयोग करने लगे थे। ख्याति प्राप्त बौद्ध विद्वान भी थे राजवैद्य  चरक उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया। चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें कीं, उनके विचारों को संकलित करके चिकित्सा के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई-लिखाई के योग्य बनाया। 'चरक संहिता' आठ भागों में विभाजित है और इसमें 120 अध्याय हैं। इसमें आयुर्वेद के सभी सिद्धांत हैं और जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है, यह आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के सिद्धांत का पूर्ण ग्रंथ है। 

तब और अब की उपलब्ध चिकित्सा सेवाओं के बीच अंतर यह है कि आज की विकसित चिकित्सा व्यवस्था और आत्मनिर्भर भारत में आज गरीब, असहाय और सीमांत आमदनी वाले ग्रामीण और शहरी लोग परंपरागत इलाज और झोलाछाप डॉक्टरों के ऊपर निर्भर हैं। इसका मुख्य कारण निजी स्वामित्व वाले सुख-सुविधा युक्त अस्पतालों का खर्च अमीर तो उठा सकते हैं परन्तु सीमांत आय और गरीबों द्वारा भारी खर्च वहन करना उनकी सामर्थ्य के बाहर हैं। जहां तक सरकारी अस्पतालों की बात है तो अधिकतर में जनसामान्य के इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, और उनकी संख्या भी आबादी के हिसाब से बहुत कम है। जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन का मूल्य अलग-अलग है, इसके बहुत से उदाहरण मौजूद हैं। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं के मामले में भी अन्य क्षेत्रों की तरह इनका 'अमीर और गरीब', 'रसूखदार और गैर रसूखदार' समुदायों के बीच असमान वितरण है। इस व्यवस्था को हम "असमानता की संस्कृति" का नाम दे सकते हैं, इसे बदलना होगा। अमीर और गरीब के लिए जीवन का मूल्य एक समान होना चाहिए। हरेक इंसान के जीवन को रोगमुक्त रखने हेतु आवश्यक चिकित्सा सेवाओं को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए। ‘समानता की संस्कृति’ विकसित करने के लिए सरकार को 'बुद्ध' और 'संविधान' के मार्ग पर ईमानदारी से चलना होगा।

उपरोक्त पुरातन विद्वानों के अध्ययन से यह पता चलता है कि भारत में स्वास्थ्य विज्ञान बौद्ध कालीन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जीवक ने कहा था कि "मैं अपना गुरु आपको (बुद्ध को) मानता हूं, क्योंकि मैं केवल शरीर के भौतिक भाग का चिकित्सक हूं और आप मानसिक कष्टों का इलाज करते हैं"। भगवान बुद्ध ने कहा है कि आदमी के 80% दुखों का कारण उसके मन की व्याधियां हैं जिनका उपचार शीलों और अष्टांगिक मार्ग द्वारा किया जा सकता है, उन्होंने संसार के 20% दुखों को प्राकृतिक बताया है जिनका इलाज आदमी के पास नहीं है। आपने देखा होगा कि कोरोना काल में लोग मानसिक असंतुलन के कारण इतने भयभीत हो गए थे कि टीवी समाचार सुनकर धड़कने बढ़ने लगती थीं यहां तक कि लोग कोराना से कम और डर से ज्यादा मर रहे थे यह मानसिक कष्ट का बड़ा उदाहरण है, बहुत से लोगों ने तो आत्महत्या तक कर ली थी। ऐसे समय में भगवान बुद्ध का मानसिक इलाज, जीवक और चरक का भौतिक इलाज दोनों कारगर उपाय साबित हुए थे। इसके बावजूद जो लोग हमारे बीच नहीं रहे उनकी याद आज हमारी मानसिक वेदना के रूप में चिरस्थाई है। इसकी भरपाई करना मुश्किल है,  उनके परिजनों को अपनी मानसिक ताकत बनाए रखने के लिए बुद्ध के "अप्प दीपो भव" दर्शन को भी समझना चाहिए।

वर्तमान पीढ़ी के लोगों ने देश में कोविड-19 जैसी महामारी का प्रकोप पहली बार देखा, लाखों लोगों की जान चली गई और उनके परिजन अंतिम दर्शन तक नहीं कर सके। हजारों बच्चे अनाथ हो गए और बहुत सी बहनें विधवा हो गईं। खतरा और डर का माहौल अभी भी बरकरार है। हर वक्त में निशुल्क सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवायें हर व्यक्ति के लिए उपलब्ध होना अत्यन्त जरुरी है।

RSVS ने इस मुद्दे को प्रमुखता से अपने एजेंडे में जोड़ा हुआ है। 21 मार्च 2020 को छठे स्थापना दिवस के अवसर पर स्वास्थ्य विषयक सेमिनार आयोजित होने वाला था जिसे महामारी के प्रकोप के कारण स्थगित करके 7 मई 2020 को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर करने का प्रयास किया गया, लेकिन दूसरी बार भी स्थगित करना पड़ गया। अब यह सेमिनार कृष्णामेनन भवन में 31 अक्टूबर 2021 (रविवार) को प्रात: 11 बजे से 5 बजे तक होगा। 

महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की असफलता का प्रमुख कारण बुनियादी ढांचे का अभाव रहा। यह कमी भौतिक संरचनाओं और मानव संसाधनों दोनों ही मामले में बनी हुई है। 2018 तक भारत को 2,188 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), 6,430 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और 32,900 उप-केंद्रों की कमी का सामना करना पड़ रहा था। अभी जो अस्पताल मौजूद भी हैं, उनके पास पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है और उनमें बुनियादी-सामान का बहुत ही अभाव है। विश्व बैंक के एक विश्लेषण के मुताबिक, 2017 में भारत में प्रति 1,000 लोगों पर सिर्फ 0.5 बिस्तर थे, जो 2.9 बिस्तरों के वैश्विक औसत से काफी कम था। 

भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च (केंद्र और राज्य का व्यय मिलाकर) 2008-09 और 2019-21 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के 1.2 प्रतिशत और 1.8 प्रतिशत के बीच बना हुआ है। यह चीन (3.2 प्रतिशत), अमेरिका (8.5 प्रतिशत) और जर्मनी (9.4 प्रतिशत) जैसे अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है। 2014 के बाद से सरकार का ध्यान निजी क्षेत्र के भरोसे स्वास्थ्य सेवाएं देने पर केंद्रित हो गया है। ग्रामीण इलाकों में निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र सक्रिय नहीं है। यहां तक कि जो अस्पताल मौजूद हैं उन्होंने भी महामारी के दौरान कोविड रोगियों की देखभाल से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं राज्य स्तरीय बीमा योजनाओं ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की विभिन्न रिपोर्टों से यह सिद्ध हो चुका है कि वास्तव में जीने का उद्देश्य स्वस्थ जीवन जीने से है। बीमार और कमजोर व्यक्ति दुख के साथ उपेक्षा भी झेलते हैं और वह परिजनों, रिश्तेदारों तथा समाज के लिए बोझ बन जाते हैं। इस से समाज और राष्ट्र के समग्र विकास की प्रगति बाधित हो जाती है। रोगी के परिवार की प्रगति में भी रुकावट पैदा हो जाती हैं। वस्तुत: एक स्वस्थ व्यक्ति ही समाज का जागरूक एवं उपयोगी नागरिक है। इसलिए भारतीय संविधान हर देशवासी को जीवन का अधिकार देता है।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार से संबंधित प्रावधान

अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।

मूल अधिकार: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।

राज्य नीति के निदेशक तत्त्व: अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है।

न्यायिक उद्घोषणा: पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और लोगों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है।

“राष्ट्रीय समग्र विकास संघ” का उद्देश्य:

सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति की दिशा में 'एक व्यक्ति - एक कीमत' (“ONE MAN ONE VALUE”) के लक्ष्य को प्राप्त करने तक सरकार और समाज के बीच सेतु का काम करना और समाज को जाग्रत करते रहना है।

उपरोक्त संदर्भ में RSVS पांचवें मुद्दे के द्वारा देश में "फ्री हेल्थ-केयर सिस्टम" लागू करवाना चाहता है। जिसके अंतर्गत हर व्यक्ति को आसानी से चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो सके।

इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए 31 अक्टूबर 2021 के सेमिनार का विषय: "समग्र स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, एक जरूरत" रखा गया है। इस सेमिनार को उक्त विषय के उत्कृष्ट ज्ञाता, चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में "पद्मश्री" से भारत सरकार द्वारा सम्मानित, सरकार के स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न उच्च पदों पर कार्यरत रह चुके प्रसिद्ध कार्डियो सर्जन और चिकित्सा शिक्षाविद डा. (प्रोफ़ेसर) जगदीश प्रसाद जी, पूर्व महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं एवं संस्थापक प्रिंसिपल वर्धमान मेडीकल कॉलेज, दिल्ली मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करेंगे। डॉ. (प्रोफ़ेसर) शिव नारायण कुरील जी, एक प्रसिद्ध बाल रोग सर्जन और लेखक हैं और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (यूपी) में बाल चिकित्सा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित करेंगे।  डॉ राजकुमारी बंसल, सहायक प्रोफेसर, फोरेंसिक विभाग, राजकीय मेडीकल कालेज, जबलपुर, सेमिनार को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करेंगी। इस अवसर पर मेडिकल स्टडी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए चिकित्सा छात्रों- डॉ. नितिन भारती: एमबीबीएस, लखनऊ एवं डॉ सिद्धार्थ कुमार- बीएचएमएस, होम्योपैथी यूनिवर्सिटी, जयपुर को आरएसवीएस द्वारा प्रोत्साहन स्वरूप सम्मानित किया जाएगा। सेमिनार में आंतरिक और विशेष आमंत्रित सम्मानित वक्तागण भी अपने विचार साझा करेंगे। कार्यक्रम का लाईव प्रसारण भी होगा।

आपसे अनुरोध है कार्यक्रमानुसार समय से उपस्थित होकर लोकोपयोगी विचारों को जरूर सुने, ताकि सरकार तक आपकी बात पहुंचने में आसानी हो। इस उपयोगी पत्र को आप ध्यानपूर्वक पढ़ें और समारोह में आप अपने परिवार और मित्रों सहित जरूर पहुंचें। इसे आप अपना निमंत्रण पत्र समझें।

संपादन: मान्यवर हीरा लाल, कर्नल आर एल राम और पी आई जोस एवं आरएसवीस के अन्य वरिष्ठ सदस्यों के सहयोग से के सी पिप्पल द्वारा संपादित किया गया।

सधन्यवाद,

निवेदक:

 डा. जयकरन       कर्नल आर एल राम (सेनि.)       मा. राम प्रकाश 

      अध्यक्ष                 प्रोग्राम कोर्डिनेटर                  महासचिव   

9958696992             9717410952             9868896227

 

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