.

31 अक्टू के मिनट्स: यूट्यूब लिंक्स सहित सम्पूर्ण दस्तावेज

राष्ट्रीय समग्र विकास संघ के छठे स्थापना दिवस समारोह की अनकट रिपोर्ट

दिनांक 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के साथ कृष्णामेनन भवन के हाल न. 204 में प्रात 11 बजे से सायं 5 बजे तक उक्त कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्न हुआ। इसके मुख्य आकर्षण 'समग्र स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा - एक जरूरत' विषय पर सेमिनार था। समारोह और सेमिनार के मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. (प्रोफेसर) एस एन कुरील थे। हाथरस कांड में नक्सली भावी के नाम से चर्चित रह चुकीं जबलपुर मेडिकल कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राजकुमारी बंसल विशिष्ट अतिथि के रूप में मंच पर उपस्थित रहीं। सेमिनार की शुरुआत होम्योपैथी मेडिकल के मेधावी छात्र डॉ सिद्धार्थ कुमार के सम्मान और भाषण से हुई। केजीएमयू लखनऊ के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र के रूप चर्चित रहे डॉ नितिन भारती को मुख्य अतिथि डॉ कुरील द्वारा संघ के प्रतीक चिन्ह, मेडिकल किट और सॉल द्वारा सम्मानित किया तत्पश्चात डॉ नितिन ने अपने विचार व्यक्त किए।

संघ के संरक्षक श्री हीरालाल जी ने अपने उद्घाटन संबोधन द्वारा संगठन और समारोह की रूपरेखा पर विचार व्यक्त किए।

दूसरे सत्र में सरकार से सेवा निवृत्त अधिकारियों का स्वागत सम्मान किया गया जो आरएसवीएस के आजीवन सदस्य हैं और आगे भी समर्पण के साथ काम करने का वायदा किया, इनके नाम और सेवाओं का विवरण निम्न प्रकार है:

 

डॉ आर सी व्यास, संयुक्त निदेशक उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवाएं;

श्री पुरुषोत्तम कुमार, अनुभाग अधिकारी पार्लियामेंट्री अफेयर्स भारत सरकार;

श्री राजपाल सिंह (IES), संयुक्त सचिव नीति आयोग भारत सरकार; 

डॉ भगवान दास (IES), निदेशक, उपभोक्ता एवं आपूर्ति मामले, भारत सरकार;

श्री रूपकिशोर, अधिकारी, सीडीए पेंशन भारत सरकार; और 

श्री रघुवीर सिंह, प्रधानाचार्य, स्कूल एजुकेशन दिल्ली सरकार।

List of Yutub.be list of Speakers

Full coverage of 1st Part of Seminar 

https://youtu.be/4YbWKSgzsz0 

Full coverage of 2nd Part of Seminar

Shri B S Rawat, Shri K C Pippal, Spl guest Dr Rajkumari Bansal, Chaudhry Narendrapal Singh Verma Advocate, Dr Satyendra Singh Prayasi, Shri Sudhir Gayakwad, Chief Guest पद्मश्री Dr S N Kureel and Presidential speech by Dr Jaykaran, पद्मश्री Dr Jagdish Prasad' audio speech delivered and vote of thanks by Vice President  Shri Dhanvir Singh.

https://youtu.be/eInnIRdTFnY

Exclusive interview: Col R L Ram program coordinator of RSVS and Shri Ram Prakash Gen Secretary of RSVS

https://youtu.be/CVvrBQ0i8yQ

हाल में सेवा निवृत्त हुए सरकारी अधिकारियों का स्वागत सम्मान किया गया जो आरएसवीएस के आजीवन सदस्य हैं और रहेंगे

https://youtu.be/gmVL18u74AI

संरक्षक आरएसवीएस श्री हीरा लाल एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट एवं आईएएस (Retd) का छठे स्थापना दिवस समारोह में व्याख्यान

https://youtu.be/ObXkuMGWNQs

Initiater of Bahujan Help Centre:  Amode Founder P I Jose Advocate and Dr Megha Khobragade RSVS

https://youtu.be/TluMY8U9y5k

कैसे रहें बिना दवा के निरोग: Dr Siddharth Kumar Singh BHMS

https://youtu.be/ljZavsn0KxQ

Bhupendra Singh Rawat: low wage income and low nutrition of labour

https://youtu.be/aOwCh05gxzQ

Col. R L Ram  (Retd)

https://youtu.be/IOFk9SLN49k

 Dr Satyendra Prayasi

https://youtu.be/sngh0-FVtaI

Outstanding Medical Student and goldmedlist Dr Nitin Bharti on mental health  

https://youtu.be/ZMmVxrFs7VY

Dr R C vyas: Budhist theory on Health

https://youtu.be/cvdyetDrhAE

A popular medical expert in forensic science Dr Raj Kumari Bansal provided help to victims of Hathras

https://youtu.be/x-rkKXZJjuk 

Sudhir Gayakwad Dy Director Delhi Education 

https://youtu.be/_gfo-vyjU0k

पद्मश्री Dr (Prof) S N Kureel, Chief Guest' Speech.

https://youtu.be/xMAtdGY6m1Y

Dr Jay Karan, President of RSVS' Speech.

https://youtu.be/8-YpWUPN2fc

'संघ' शब्द की व्याख्या 

के सी पिप्पल स्पीच - कौनसे पांच लोगों ने रुला दिया देश

https://youtu.be/-i-n6MPYLOE

संघ का नाम आते ही लोगों के दिमाग में आरएसएस घूमने लगता है। जबकि संघ कभी अलगाववाद की बात नहीं कर सकता। धार्मिक, पंथिक और जातीय टकराव का पर्याय बन गया है आरएसएस जबकि आरएसवीएस तो जातीय, पांथिक और धार्मिक अस्तित्व की बात करता है। हरेक इंसान की एक कीमत की बात करता है। समग्र विकास का अर्थ है : व्यक्ति का शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी हो। आर्थिक विकास के साथ सामाजिक विकास भी हो। धार्मिक विकास के साथ राजनीति का विकास भी हो। अध्यात्म के साथ विज्ञान का भी विकास हो। दुश्मनी की जगह भाईचारे का विकास को। समाज, धर्म, अर्थ और राजनीति पर व्यक्तिगत, पारिवारिक, लैंगिक और जातिगत प्रभुत्व कायम नहीं रहे। विभेद मुक्त समाज की स्थापना के लिए समग्र विकास की जरूरत है जिसके बाद बुद्ध और संविधान की चाहत वाली समानता की संस्कृति निर्मित हो सकती है।

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय समग्र विकास संघ के नाम से लोकतांत्रिक और सामूहिक नेतृत्व पर आधारित संगठन को सरकार द्वारा पंजीकृत कराया है जिसमें 100% पारदर्शिता है। इस आदर्श संगठन को आरएसएस जैसे संघ से नहीं जोड़ा जा सकता है।

संघ और बुद्ध

"संघ" संस्कृत का शब्द है- जिसका सामान्य अर्थ संगठन (organizayion) से है। व्यक्ति का भौतिक शरीर चार प्राकृतिक घटकों (रसायनों) का अनुपातिक सम्मिश्रण का परिणाम है। जिन्हें बुद्ध ने प्रथ्वी, जल, वायु और अग्नि का संगठित परिणाम बताया है। शरीर के दो भाग होते हैं- मन और शारीरिक स्वरूप। मन ही शरीर का निर्देशन करता है जिससे व्यक्ति का भौतिक चाल चलन और व्यवहार निर्धारित होता है। मन दिखता नहीं है शरीर दिखता है यह उच्च कोटि का मनोवैज्ञानिक भी पता नहीं लगा पाते हैं। झूठ और सच, घृणा और प्रेम, अपना और पराया, दया और क्रूरता, समानता और शोषण इत्यादि कृत्य मन की क्रियाएं हैं। ईर्षा, राग, द्वेष, तृष्णा, चिंता, लोभ, लालच शरीर की नहीं मन की व्याधियां हैं। प्रथ्वी मां इस लिए है कि प्रथ्वी के सभी तत्व जीव के शरीर में मौजूद हैं। उसके द्वारा उत्पन्न जीव एक दूसरे का भोजन है। जिस ग्रह पर जल, वायु, अग्नि नहीं है परंतु जमीन है तो वहां जीवन नहीं है। अंतरिक्ष विज्ञान जिस तरीके से दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज कर रहा है उसी तरह जीव और चिकित्सा विज्ञान प्रकृति के अमूल्य जीवों को निरोग और दीर्घायु रखने की खोज कर रहा है। इस सम्बन्ध में बुद्ध और उनके धम्म भी विश्व के इंसानों और इंसानियत के लिए धर्म और विज्ञान दोनों रूपों में देख सकते हैं।

धम्म के मूल मंत्र हैं - त्रिशरण, पंचशील, अष्ट्टांगिक मार्ग, निर्वाण और समाधि। त्रिपिटक उनके शिष्यों द्वारा उनके उपदेशों के संकलन को पाली में लिपिबद्ध पहला ग्रंथ है। बाबा साहब अम्बेडकर ने प्रमुख वैज्ञानिक मान्यताओं को संकलित करके "Budha and his Dhamma" पुस्तक अंग्रेजी में लिखी जिसका प्रकाशन उनके परिनिर्वान के उपरांत 1957 में प्रकाशित किया गया, जो कई भाषाओं में उपलब्ध है।

बुद्धं शरणं गच्छामि - समझ + अनुभव (भाषा, समाज, विज्ञान, गणित और धम्म का सामान्य अध्ययन हेतु वातावरण का निर्माण)

धम्मं शरणं गच्छामि - करुणा + प्रज्ञा (बहुजन हिताय और सुखाय के मूल्यों का निर्माण)

संघं शरणं गच्छामि - धम्मज्ञान का संकलन (वैचारिक पुस्तक एवं धम्म के प्रचार हेतु संघ का निर्माण)

भारतीय संविधान में बुद्ध के मार्ग परिलक्षित होते हैं जो राष्ट्रीय निर्माण हेतु राज्य के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। राज्य के कर्तव्य और जनता के अधिकारों के सम्मिश्रण के रूप में भारतीय लोकतंत्र के आदर्श स्वरूप का संविधान में उल्लेख है।

बुद्ध के दर्शन और भारतीय संविधान को अपना आदर्श मानकर, समाज के प्रत्येक अंग की कमजोरी और मजबूती का अध्ययन करने के बाद बिना किसी को नुकसान पहुंचाए समग्र विकास का फार्मूला राज्य के सामने प्रस्तुत किया है। इस फार्मूले को जनता का पूर्ण समर्थन मिल रहा है। राष्ट्रीय समग्र विकास संघ पांच सूत्रीय कार्यक्रम पर पांच सेमिनार कर चुका है। यह छठा सेमिनार स्वास्थ्य विकास पर है। इसके बाद इस संगठन का विस्तार दूसरे राज्यों में करने का प्रयास किया जाएगा।

मुख्य आदर्श

हर दो वर्ष बाद कार्यकारिणी का चुनाव, सामूहिक नेतृत्व,  लोकतांत्रिकता, पारदर्शिता, गैरराजनीतिक स्वरूप, धार्मिक कट्टरता से मुक्त, धरना, प्रदर्शन, हड़ताल इत्यादि से मुक्त रह कर अपनी बात को शालीन तरीके से जनता और सरकार तक पहुंचना। देश को परिवारवाद; अराजकवाद; सार्वजनिक संसाधनों के निजीकरण; सामाजिक, आर्थिक, सांसकृतिक, राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रटाचार और इन शक्तियों के दुरपयोग से कैसे बचाया जाए? यह आज के सबसे बड़े मुद्दे हैं।

विगत 6 वर्षों में राष्ट्रीय समग्र विकास संघ की बात सभी राजनीतिक दलों, सरकार और जनता के संज्ञान में पहुंची है यह संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

हर एक व्यक्ति की एक कीमत (one man one value) के सिद्धांत पर चलकर ही राष्ट्र का समन्वित और समग्र विकास संभव है। इसके बिना दूसरे तरीकों से जीडीपी बड़ सकती है, राजनीति तो हो सकती है परंतु समग्र विकास संभव नहीं है। पिछली सरकारों द्वारा किए गए कामों में बिना कमी निकाले आगे के काम वैल्यू एडिशन के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है। उपलब्ध राष्ट्रीय धन का व्यवस्थित निवेश करके रोजगारपरक अर्थव्यवस्था का निर्माण किए बिना जीडीपी का कोई महत्व नहीं हैं उसी तरह व्यक्ति की कीमत के बिना वोट की राजनीति का कोई महत्व नहीं है।

बुद्ध के देश में "अल्पजन सुखाय और बहुजन दुखाय" का फार्मूला नहीं चल सकता और इस फार्मूले की इजाजत हमारा संविधान भी नहीं देता। इस लिए आरएसवीएस का समग्र विकास का फार्मूला स्वीकार करना ही पड़ेगा!

संकल्पना

इसी संकल्प का नाम है "राष्ट्रीय समग्र विकास संघ" जिसकी स्थापना का आज हम छठा स्थापना दिवस मना रहे रहे है इसकी स्थापना 19 जनवरी 2014 को जनपथ होटल में 11 सदस्यों द्वारा की गई जिसके मुख्य सूत्रधार यूपी कैडर के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस श्री चमन लाल जी थे। इसके संस्थापक अध्यक्ष के रूप में मुझे काम करने का अवसर मिला। दूसरे कार्यकाल में मान्यवर कर्नल आर एल राम साहब, तीसरे कार्यकाल में मान्यवर सोहनलाल साहब, चौथे कार्यकाल में सेवानिवृत आईएएस मान्यवर हीरा लाल साहब  एडवोकेट को सराहनीय कार्य करने का अवसर मिला और पांचवें और वर्तमान कार्यकाल में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मान्यवर डॉक्टर जयकरन साहब निभा रहे हैं। आज का कार्यक्रम इनकेे नेतृत्व हो रहा है।

योगदान

बाबा साहब अम्बेडकर ने कभी 10 बैरिस्टर, 20 डाक्टर और 30 इंजीनियर की जरूरत महसूस की। कांशीराम जी ने Medical aid and Advise Centre (Maac),  Legal aid and Advise Centre (Laac) की जरूरत समझी।RSVS में इनके साथ साथ पत्रकारों, वकीलों एवं सरकार में प्रशासनिक, आर्थिक, मेडिकल, लीगल, इंजीनियरिंग, शैक्षिक, अनुसंधान, प्रशिक्षण, पुलिस, और सुरक्षा इत्यादि सेवाओं में रहे अधिकारियों की सहभागिता है। यहां पर बुद्ध, फुले, अंबेडकर और कांशीराम जी की चाहत का समावेश करने की कोशिश की गई है। समय और समाज के अनुकूल परिवर्तन की पूरी गुंजाइश है।

मार्गदर्शक

अत: राजनीतिक और सामाजिक संगठनों को नैतिकता और लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर्श पथ निर्धारित करने के लिए इस संगठन का निर्माण हुआ है। सदस्यों की संख्या से अधिक सदस्यों में उक्त मूल्यों की संख्या पर अधिक जोर दिया जाता है। यह संगठन बिना कार्यालय, बिना किसी बड़े फंड, बिना किसी राजनीतिक दल, बिना किसी कटुता, राग और द्वेष के राष्ट्रीय समग्र और समन्वित विकास के लिए काम करता है। यही इसकी पहचान और उपलब्धि है।

(उक्त विचार RSVS के संस्थापक अध्यक्ष श्री के सी पिप्पल द्वारा व्यक्त किए गए)

सेमिनार के विषय की पृष्ठभूमि और विवरण

भारत में चिकित्सा पद्धति का विकास ईसा से 530 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध और मगध महाराज बिम्बिसार के राजवैद्य जीवक के समय से माना जाता है। वह एक गणिका के पुत्र थे जिसे उसने पैदा होते ही एक मिट्टी के ढेर पर फेंक दिया था। महाराज बिम्बिसार के पुत्र अभय ने उसे देखा और कहा यह तो जीवित है। इसलिए उसका नाम जीवक पड़ा। राजकुमार अभय ने जीवक को पढ़ने के लिए तक्षशिला विश्वविद्यालय भेजा जो आज पाकिस्तान के इस्लामाबाद में स्थित है। बड़े होकर इसी बालक ने एक प्रसिद्ध चिकित्सक राजवैद्य जीवक के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने भारतीय चिकित्सा विज्ञान की नींव रखी। इनके बाद राजवैद्य चरक का नाम आता है चरक ने भी अपनी शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। 'चरक' को कुषाण वंशी बौद्ध सम्राट कनिष्क ने अपना राजवैद्य बनया था। सम्राट कनिष्क 78वीं ईसवी में उत्तरी भारत के विश्व प्रसिद्ध शासक थे। वैद्यराज चरक ने वैद्यराज जीवक की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चरक संहिता का निर्माण किया जो संस्कृत में लिखी गई। उस समय तक "पाली" की जगह महायान शाखा के बौद्ध विद्वान संस्कृत भाषा का प्रयोग करने लगे थे। ख्याति प्राप्त बौद्ध विद्वान भी थे राजवैद्य  चरक उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया। चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें कीं, उनके विचारों को संकलित करके चिकित्सा के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई-लिखाई के योग्य बनाया। 'चरक संहिता' आठ भागों में विभाजित है और इसमें 120 अध्याय हैं। इसमें आयुर्वेद के सभी सिद्धांत हैं और जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है, यह आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के सिद्धांत का पूर्ण ग्रंथ है। 

तब और अब की उपलब्ध चिकित्सा सेवाओं के बीच अंतर यह है कि आज की विकसित चिकित्सा व्यवस्था और आत्मनिर्भर भारत में आज गरीब, असहाय और सीमांत आमदनी वाले ग्रामीण और शहरी लोग परंपरागत इलाज और झोलाछाप डॉक्टरों के ऊपर निर्भर हैं। इसका मुख्य कारण निजी स्वामित्व वाले सुख-सुविधा युक्त अस्पतालों का खर्च अमीर तो उठा सकते हैं परन्तु सीमांत आय और गरीबों द्वारा भारी खर्च वहन करना उनकी सामर्थ्य के बाहर हैं। जहां तक सरकारी अस्पतालों की बात है तो अधिकतर में जनसामान्य के इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, और उनकी संख्या भी आबादी के हिसाब से बहुत कम है। जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन का मूल्य अलग-अलग है, इसके बहुत से उदाहरण मौजूद हैं। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं के मामले में भी अन्य क्षेत्रों की तरह इनका 'अमीर और गरीब', 'रसूखदार और गैर रसूखदार' समुदायों के बीच असमान वितरण है। इस व्यवस्था को हम "असमानता की संस्कृति" का नाम दे सकते हैं, इसे बदलना होगा। अमीर और गरीब के लिए जीवन का मूल्य एक समान होना चाहिए। हरेक इंसान के जीवन को रोगमुक्त रखने हेतु आवश्यक चिकित्सा सेवाओं को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए। ‘समानता की संस्कृति’ विकसित करने के लिए सरकार को 'बुद्ध' और 'संविधान' के मार्ग पर ईमानदारी से चलना होगा।

उपरोक्त पुरातन विद्वानों के अध्ययन से यह पता चलता है कि भारत में स्वास्थ्य विज्ञान बौद्ध कालीन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जीवक ने कहा था कि "मैं अपना गुरु आपको (बुद्ध को) मानता हूं, क्योंकि मैं केवल शरीर के भौतिक भाग का चिकित्सक हूं और आप मानसिक कष्टों का इलाज करते हैं"। भगवान बुद्ध ने कहा है कि आदमी के 80% दुखों का कारण उसके मन की व्याधियां हैं जिनका उपचार शीलों और अष्टांगिक मार्ग द्वारा किया जा सकता है, उन्होंने संसार के 20% दुखों को प्राकृतिक बताया है जिनका इलाज आदमी के पास नहीं है। आपने देखा होगा कि कोरोना काल में लोग मानसिक असंतुलन के कारण इतने भयभीत हो गए थे कि टीवी समाचार सुनकर धड़कने बढ़ने लगती थीं यहां तक कि लोग कोराना से कम और डर से ज्यादा मर रहे थे यह मानसिक कष्ट का बड़ा उदाहरण है, बहुत से लोगों ने तो आत्महत्या तक कर ली थी। ऐसे समय में भगवान बुद्ध का मानसिक इलाज, जीवक और चरक का भौतिक इलाज दोनों कारगर उपाय साबित हुए थे। इसके बावजूद जो लोग हमारे बीच नहीं रहे उनकी याद आज हमारी मानसिक वेदना के रूप में चिरस्थाई है। इसकी भरपाई करना मुश्किल है,  उनके परिजनों को अपनी मानसिक ताकत बनाए रखने के लिए बुद्ध के "अप्प दीपो भव" दर्शन को भी समझना चाहिए।

वर्तमान पीढ़ी के लोगों ने देश में कोविड-19 जैसी महामारी का प्रकोप पहली बार देखा, लाखों लोगों की जान चली गई और उनके परिजन अंतिम दर्शन तक नहीं कर सके। हजारों बच्चे अनाथ हो गए और बहुत सी बहनें विधवा हो गईं। खतरा और डर का माहौल अभी भी बरकरार है। हर वक्त में निशुल्क सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवायें हर व्यक्ति के लिए उपलब्ध होना अत्यन्त जरुरी है।

RSVS ने इस मुद्दे को प्रमुखता से अपने एजेंडे में जोड़ा हुआ है। 21 मार्च 2020 को छठे स्थापना दिवस के अवसर पर स्वास्थ्य विषयक सेमिनार आयोजित होने वाला था जिसे महामारी के प्रकोप के कारण स्थगित करके 7 मई 2020 को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर करने का प्रयास किया गया, लेकिन दूसरी बार भी स्थगित करना पड़ गया। अब यह सेमिनार कृष्णामेनन भवन में 31 अक्टूबर 2021 (रविवार) को प्रात: 11 बजे से 5 बजे तक होगा। 

महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की असफलता का प्रमुख कारण बुनियादी ढांचे का अभाव रहा। यह कमी भौतिक संरचनाओं और मानव संसाधनों दोनों ही मामले में बनी हुई है। 2018 तक भारत को 2,188 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), 6,430 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और 32,900 उप-केंद्रों की कमी का सामना करना पड़ रहा था। अभी जो अस्पताल मौजूद भी हैं, उनके पास पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है और उनमें बुनियादी-सामान का बहुत ही अभाव है। विश्व बैंक के एक विश्लेषण के मुताबिक, 2017 में भारत में प्रति 1,000 लोगों पर सिर्फ 0.5 बिस्तर थे, जो 2.9 बिस्तरों के वैश्विक औसत से काफी कम था। 

भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च (केंद्र और राज्य का व्यय मिलाकर) 2008-09 और 2019-21 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के 1.2 प्रतिशत और 1.8 प्रतिशत के बीच बना हुआ है। यह चीन (3.2 प्रतिशत), अमेरिका (8.5 प्रतिशत) और जर्मनी (9.4 प्रतिशत) जैसे अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है। 2014 के बाद से सरकार का ध्यान निजी क्षेत्र के भरोसे स्वास्थ्य सेवाएं देने पर केंद्रित हो गया है। ग्रामीण इलाकों में निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र सक्रिय नहीं है। यहां तक कि जो अस्पताल मौजूद हैं उन्होंने भी महामारी के दौरान कोविड रोगियों की देखभाल से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं राज्य स्तरीय बीमा योजनाओं ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की विभिन्न रिपोर्टों से यह सिद्ध हो चुका है कि वास्तव में जीने का उद्देश्य स्वस्थ जीवन जीने से है। बीमार और कमजोर व्यक्ति दुख के साथ उपेक्षा भी झेलते हैं और वह परिजनों, रिश्तेदारों तथा समाज के लिए बोझ बन जाते हैं। इस से समाज और राष्ट्र के समग्र विकास की प्रगति बाधित हो जाती है। रोगी के परिवार की प्रगति में भी रुकावट पैदा हो जाती हैं। वस्तुत: एक स्वस्थ व्यक्ति ही समाज का जागरूक एवं उपयोगी नागरिक है। इसलिए भारतीय संविधान हर देशवासी को जीवन का अधिकार देता है।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार से संबंधित प्रावधान

अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।

मूल अधिकार: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।

राज्य नीति के निदेशक तत्त्व: अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है।

न्यायिक उद्घोषणा: पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और लोगों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है।

राष्ट्रीय समग्र विकास संघ का उद्देश्य

सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति की दिशा में 'एक व्यक्ति - एक कीमत' (“ONE MAN ONE VALUE”) के लक्ष्य को प्राप्त करने तक सरकार और समाज के बीच सेतु का काम करना और समाज को जाग्रत करते रहना है।

उपरोक्त संदर्भ में RSVS पांचवें मुद्दे के द्वारा देश में "फ्री हेल्थ-केयर सिस्टम" लागू करवाना चाहता है। जिसके अंतर्गत हर व्यक्ति को आसानी से चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो सके।

इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए 31 अक्टूबर 2021 के सेमिनार का विषय: "समग्र स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, एक जरूरत" रखा गया है। इस सेमिनार को उक्त विषय के उत्कृष्ट ज्ञाता, चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में "पद्मश्री" से भारत सरकार द्वारा सम्मानित, सरकार के स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न उच्च पदों पर कार्यरत रह चुके प्रसिद्ध कार्डियो सर्जन और चिकित्सा शिक्षाविद डा. (प्रोफ़ेसर) जगदीश प्रसाद जी, पूर्व महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं एवं संस्थापक प्रिंसिपल वर्धमान मेडीकल कॉलेज, दिल्ली मुख्य अतिथि थे उन्होंने वर्चुअल माध्यम से लखनऊ से संबोधित किया। डॉ. (प्रोफ़ेसर) शिव नारायण कुरील जी, एक प्रसिद्ध बाल रोग सर्जन और लेखक हैं और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (यूपी) में बाल चिकित्सा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष मुख्य अतिथि के रूप में शुरू से आखिर तक मंच पर उपस्थित रहे और उन्होंने सभा को संबोधित करके लाभान्वित किया। डॉ राजकुमारी बंसल, सहायक प्रोफेसर, फोरेंसिक विभाग, राजकीय मेडीकल कालेज, जबलपुर, सेमिनार को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया। इस अवसर पर मेडिकल स्टडी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए चिकित्सा छात्रों- डॉ. नितिन भारती: एमबीबीएस, लखनऊ एवं डॉ सिद्धार्थ कुमार- बीएचएमएस, होम्योपैथी यूनिवर्सिटी, जयपुर को आरएसवीएस द्वारा प्रोत्साहन स्वरूप सम्मानित किया गया। सेमिनार में विशेष आमंत्रित सम्मानित वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए उनकी वीडियोग्राफी की गई तथा सम्पूर्ण  कार्यक्रम का लाईव प्रसारण भी किया गया। यदि आप अपना विवरण देखना चाहते हैं तो इसके प्रारंभिक भाग में अंकित यूट्यूब लिंक्स को क्लिक करें और अपने दोस्तों को शेयर करें। अगर आप भी अपना योगदान देना चाहते हैं तो संगठन से जुड़ने के लिए अधोलिखित नंबरों पर संपर्क कर सकत हैं।

सधन्यवाद,

निवेदक:

 डा. जयकरन       कर्नल आर एल राम (सेनि.)       मा. राम प्रकाश 

      अध्यक्ष                 प्रोग्राम कोर्डिनेटर                  महासचिव   

9958696992             9717410952               9868896227