.

इस बार यूपी की सत्ता की चाबी होगी किसके पास?

 

इस बार यूपी की सत्ता की चाबी होगी किसके पास?
 
उत्तर प्रदेश के साथ ही निर्वाचन आयोग ने गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड सरकार को भी निर्देश भेजा है। गोवा सरकार का कार्यकाल 15 मार्च 2022, मणिपुर का 19 मार्च 2022 पंजाब का 27 मार्च 2022, उत्तराखंड का 23 मार्च 2022 और उत्तर प्रदेश का 14 मई 2022 को समाप्त हो रहा है।
 
उत्तर प्रदेश में 20 दिसंबर के बाद कभी भी आर्दश चुनाव आचार संहिता लागू हो सकती है। इसके बाद संभव है कि प्रदेश में 20 जनवरी से फरवरी तक विधानसभा चुनाव सम्पन्न हों।
 
कहा जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश की सत्ता से होता हुआ जाता है। उत्तर प्रदेश का चुनाव मोदी सरकार के लिए बहुत अहम है। 2024 में लोक सभा चुनाव है, उससे पहले फरवरी 2022 में यूपी का चुनाव होने जा रहा है जिसमें योगी आदित्यनाथ की साख दांव पर लगी है। यहां पर 403 विधान सभाएं और 80 लोकसभा की सीटें हैं, इस लिए उत्तर प्रदेश में हुई चूक मोदी को भारी पड़ेगी। बंगाल के चुनावों के साथ ही उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भाजपा की हार पर किसान आंदोलन के प्रभाव का संकेत दे दिया था।
 
कोराना संकट, विकराल बेरोजगारी, आर्थिक बदहाली में खाद्य और मिनरल ऑयल की आसमान छूती कीमतों ने भाजपा का संकट और बड़ा दिया है। राष्ट्रवाद, राम मंदिर, हिन्दू - मुसलमान आदि भाजपा के मुद्दे अब उबाऊ हो चले हैं। एमएसपी और किसान शहीदों के परिवारों को आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मांग यूपी चुनाव में  गंभीर मुद्दे बनते जा रहे हैं। मोदी द्वारा जातीय जनगणना न कराने की ज़िद ने ओबीसी के दिमाग में भाजपा के मोदी और योगी की नकारात्मक छवि बना दी है। किसान और ओबीसी के हितों के खिलाफ भाजपा सरकार का अड़ियल रवैया भाजपा को बड़ा झटका दे सकता है। मोदी और भाजपा द्वारा की जा रही चुनावी घोषणाएं अब जुमला मात्र समझी जाने लगी हैं।
 
किसानों की आय दोगुनी होगी, करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा, गैस सिलेंडर के दाम कम होंगे, जातीय जनगणना 2021 में कराई जाएगी, 15 लाख रुपए हरेक वोटर के खाते में आ जाएंगे, काला धन वापस आएगा आदि नारे खोखले साबित हो चुके हैं। इन सबके विपरीत ही सब कुछ हुआ है। इस लिए मोदी और योगी ने भाजपा और आरएसएस की साख को भी बट्टा लगा दिया है। लोग कह रहे हैं अडानी, अंबानी और कुछ अन्य सेठीयों की सरकार में सब कुछ बिक रहा है, यहां तक आईएएस की पोस्टों पर लेट्रल एंट्री से सरकारी नौकरीयों को भी नीलाम किया जा रहा है। अराजपत्रित नौकरियां लगातार कम हो रही हैं।
 
ऐसे में भाजपा को कौन वोट देगा?
 
बसपा की अध्यक्षा बहन मायावती ने भी अपने तेवर बदलने शुरू कर दिए हैं, उनके द्वारा भाजपा विरोधी मतों को अपने पक्ष में करने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है। इसी दिशा में उनका निमनलिखित ट्यूट और मीडिया वार्ता का संबोधन उदाहरण के लिए काफी है।
 
देश में तीव्र आन्दोलन के बाद तीन विवादित कृषि कानूनों की वापसी की केन्द्र सरकार की घोषणा का देर आए दुरुस्त आए यह कहकर बहनजी द्वारा स्वागत किया गया, किन्तु इसे चुनावी स्वार्थ व मजबूरी का फैसला बताकर भाजपा सरकार की नीयत पर शक जाहिर करते हुए किसानों के बारे में कुछ और ठोस फैसले करने की मांग की। 19 नवम्बर 2021को बीएसपी द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई जिसके कुछ अंश यहां दिए गए हैं।
 
(1) लगभग एक वर्ष से सर्दी, गर्मी व बरसात आदि की मार झेलते हुए अपने आन्दोलन पर डटे रहने व उनमें से कुछ किसानों के शहीद भी हो जाने का बलिदान अन्त में रंग लाया और केन्द्र सरकार ने उन विवादित तीनों कानूनों को अति देर से वापस लेने की घोषणा की है, जिसके लिए देश के समस्त किसानों को हार्दिक बधाई।
 
(2) यदि यह फैसला केन्द्र सरकार काफी पहले ही ले लेती तो देश अनेकों प्रकार के झगडे-झंझट व संकट आदि से बच जाता।
 
(3) लेकिन अभी भी किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने सम्बंधी राष्ट्रीय कानून बनाने की यह खास माँग भी अधूरी पड़ी है, जिसके लिए बीएसपी की माँग है कि केन्द्र सरकार आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में इस सम्बंध में कानून बनाकर किसानों की इस मांग को भी जरूर स्वीकार करे।
 
(4) किसानों के इस आन्दोलन के दौरान जो किसान शहीद हो गए हैं उन्हें उचित आर्थिक मदद एवं उनके परिवार में से किसी एक को सरकारी नौकरी भी जरूर दें। 
 
कार्तिक पूर्णिमा पर्व व गुरु नानक देव जी की जयंती पर सभी देश वासियों को हार्दिक बधाई देते हुए सुश्री मायावती जी ने मीडिया सम्बोधन में कहा कि "....जबरदस्ती थोपे गए तीन नए कृषि कानूनों की वापसी की माँग को लेकर किसान काफी लम्बे समय से आन्दोलन पर डटे रहे उनमें से शहीद हुए कुछ किसानों का बलिदान अन्त में रंग लाया और केन्द्र सरकार ने उन विवादित कानूनों को अति देर से वापस लेने की घोषणा की, जिसके लिए देश के समस्त किसानों को हार्दिक बधाई। यदि यह फैसला केन्द्र सरकार काफी पहले ही ले लेती तो देश अनेकों प्रकार के झगड़े झंझट व संकट आदि से बच जाता। अभी भी किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने सम्बंधी राष्ट्रीय कानून बनाने की यह खास माँग भी अधूरी पड़ी है। इसके लिए बीएसपी की माँग है कि केन्द्र सरकार आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में इस सम्बंध में कानून बनाकर किसानों की इस माँग को भी जरूर स्वीकार करे।
 
बीएसपी की शुरू से ही यह माँग रही है कि खेती-किसानी के मामले में कोई भी नया कानून बनाने से पहले स्टेट गवर्मेन्ट अथवा सेन्ट्रल गवर्मेन्ट को किसानों की राय जरूर लेना चाहिए, ताकि किसी भी गैर-जरूरी विवाद से देश को बचाया जा सके।
 
उन्होंने केन्द्र सरकार से यह भी मांग की कि किसानों के इस आन्दोलन के दौरान जो किसान शहीद हो गए हैं उन्हें उचित आर्थिक मदद एवं उनके परिवार में से किसी एक को सरकारी नौकरी भी जरूर दी जाए। इसके साथ ही उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा पर्व व गुरु नानक देव जी जयंती की सभी देश वासियों को पुन: हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।
 
इस तरह उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब तक मोदी और योगी की छवि को भुनाने का जो प्रयास भाजपा द्वारा किया जा रहा था उसमें दाग लग चुका है अब इन नेताओं की छवि अधिकतर वर्गों में नकारात्मक बनती जा रही है। अभी हाल में तीन कृषि कानूनों को बापस लिए जाने से यह बात पूरी तरह से प्रमाणित हो गई है। गैर राजपूत सवर्ण वोटों का ध्रुवीकरण बसपा के पक्ष में बनता जा रहा है सतीश चन्द्र मिश्र उनकी मुखर अबाज बनते जा रहे हैं। एससी, एसटी, ओबीसी तथा मुस्लिम समाज के वोटों का बटवारा सपा और बसपा के बीच होने जा रहा है। पूर्वांचल के ब्राह्मण और पश्चिम के जाट और गुर्जर किसान भाजपा को हराने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
 
इस चुनाव में सवर्ण और किसान वोटों में प्रियंका गांधी भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं। पूर्ण बहुमत न मिलने पर भी बाजी इसबार बसपा के पक्ष में जा सकती है।