अतिपिछड़े वर्ग की थेवर जाति के नेता पनीर सेल्वन, आयंगर ब्राह्मण जयललिता के उत्तराधिकारी के रूप में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शफथ ले चुके हैं। ऐसा लगता है तमिलनाडु में फिर से द्रविड़ या पिछड़े वर्ग के नेताओं का वर्चस्व हर पार्टी में दिखाई देगा। ब्राह्मण नेतृत्व फिर से हासिये पर चला जायेगा। भाजपा, बाम दल और कांग्रेस का तमिल में कोई अस्तित्व नहीं है।
पेरियार के देश तमिलनाडु की अति पिछड़ी जाति में भी ब्राह्मणवाद हावी
इंजीनियरिंग के विद्यार्थी दलित पृष्ठभूमि के बाईस वर्षीय शंकर और तमिलनाडु की अति पिछड़ी जाति में दर्ज थेवर जाति की कौशल्या ने प्रेम विवाह किया था। लड़की के परिवार वालों को यह संबंध स्वीकार नहीं था। कौशल्या की शिकायत के मुताबिक उसे अपने घर वालों से लगातार धमकियां मिल रही थीं और इसी के मद्देनजर उसने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी। लेकिन पुलिस ने वक्त पर ध्यान नहीं दिया और 13.03.2016 (रविवार दोपहर) को भरे बाजार में तीन लोगों ने धारधार हथियारों से शंकर और कौशल्या पर हमला किया। शंकर ने मौके पर ही दम तोड़ दिया और कौशल्या गंभीर रूप से जख्मी हो गई।
यह समाज में जाति-व्यवस्था और उसकी जड़ताओं में घुली प्रत्यक्ष या परोक्ष हिंसा के मनोविज्ञान का नतीजा है, जिसमें हर जाति के दायरे में सिमटे लोग अपने से ‘निचली’ कही जाने वाली जाति को कमतर समझते हैं, कई बार उससे घृणा करते हैं। तमिलनाडु की यह घटना इसलिए भी एक बड़ी विडंबना है कि वहां जाति-व्यवस्था और ब्राह्मणवाद के खिलाफ आंदोलन की लंबी परंपरा रही है और एक समय इसके सकारात्मक सामाजिक नतीजे भी देखे गए थे, कमजोर दलित-पिछड़ी जाति की सामाजिक स्थिति में काफी सुधार भी हुआ था।
लेकिन पिछले तीन-चार दशकों की राजनीति के दौरान ऐसा क्या हुआ कि कभी जातिगत वर्चस्व के विरुद्ध मिल कर संघर्ष करने वाले समाज में पिछड़ी जातियों ने अब कमजोर अनुसूचित जातियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। करीब दो साल पहले तमिलनाडु में ही दिव्या और दलित युवक इलावरसन के प्रेम संबंध के बाद भी हिंसा और आखिरकर इलावरसन के दुखद अंत ने समूचे देश में लोगों का ध्यान खींचा था।
किसी समय, तमिलनाडु की राजनीति, ब्राह्मणों के प्रति द्वेष पर आधारित थी। कालांतर में वह हिन्दू-द्वेष में बदल गई, वह भी इसलिए कि हिन्दू आर्य हैं। ईसाई मिशनरियों ने जो बीज इस भूमि में बोए थे, उसी का एक वृक्ष आज आर्य- द्रविड़ संघर्ष के रूप में सामने आया है। प्रचारित किया गया कि आर्य-ब्राह्मण नामक एक गौरवर्णीय जाति यहां आई, इस प्रदेश को जीता, यहां के लोगों को गुलाम बनाया और उन पर अपनी संस्कृति थोपी, यही उस वृक्ष के फल हैं। आर्य माने ब्राह्मण भी होते हैं। इस भावना को लेकर गत पचास वर्षों से यह क्षेत्र ब्राह्मण- विरोधी रहा है। द्रविड कषगम के संस्थापक रामास्वामी नायकर तो इस क्रांति की ज्वाला थे। माना जाता है, राम तो ब्राह्मण थे नहीं, फिर वह आर्यों के देवता कैसे हुए? लेकिन द्वेष के पात्र ब्राह्मण जब वहां नहीं बचे तो यह आवेश थेवर, वन्नियार दलितों जैसे गैर ब्राह्मण समुदायों की आपसी मारपीट में फूट पड़ा। थेवर तथा दलितों के बीच संघर्ष ने तो जातीय दंगों का रूप ले लिया था। सामाजिक चेतना के अम्बेडकराइट आंदोलन के कारण यह वैमनस्य अब समाप्त हो चला है। उत्तर तमिलनाडु में वन्नियार पिछड़ी जाति का बहुमत है, जो काफी प्रभावी भी है। देश के दूसरे इलाकों में भी कथित सम्मान के नाम पर बर्बर तरीके से हत्या की घटनाएं सामने आती रहती हैं। सवाल है कि जब इस हकीकत को शिद्दत से महसूस किया जा रहा है कि जाति-व्यवस्था सामाजिक विकास की सबसे बड़ी बाधक-तत्त्व रही है, इसे लेकर व्यापक आंदोलनों का एक इतिहास रहा है, तब भी जाति को लेकर जड़ता इस कदर हिंसक क्यों बनी हुई है कि अंतरजातीय प्रेम संबंधों और विवाह करने वाले जोड़ों को सरेआम मार डाला जाता है?
अंतर्जातीय विवाह और खानपान से ही ब्राह्मणवाद के औजार जातिवाद का उन्मूलन किया जा सकता है। इसके किये कुछ लोगों को आहुति तो देनी ही होगी उसी में से शंकर भी एक हैं। बड़े अफसोश के साथ कहना पड़ता है कि ब्राह्मणवाद, ब्राह्मणों में कम अपितु दलित और पिछड़ी जातियों में अधिक दिखाई देता है। ऊपर की जाति अपने से नीचे की जाति को ब्राह्मणवादी मानसिकता का शिकार हो कर ही मारती है। इस लिए यह बुराई जहाँ कहीं पर भी दिखे उसे जड़मूल से उखाड़ने की की कोशिश करनी चाहिए।
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