उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने 17 पिछड़ी जातियों को जिनकी प्रदेश में आबादी 13.63 फीसदी है को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया, इसको अंतिम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। यदि केंद्र सरकार ने पास कर दिया तो संसद से उक्त प्रस्ताव को पास कराना होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार अनुसूचित जातियों को आरक्षण, सम्बंधित राज्य में उनके वर्ग की कुल जनसंख्या के बराबर हिस्सा देना होता है। उत्तर प्रदेश में इस समय अनुसूचित जातियों को 21 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों को 1 फीसदी आरक्षण वर्तमान आबादी के अनुसार मिल रहा है। पहले से ही उत्तर प्रदेश में इस सूची में 66 जातियां शामिल हैं 17 जातियों को शामिल करने पर उनकी संख्या 83 हो जाएगी जिनको उनकी आबादी के हिसाब से 34.63 फीसदी आरक्षण देना होगा। इसके बाबजूद 27 फीसदी आरक्षण प्रदेश की अन्य पिछड़ी जातियों के लिए बरक़रार रहेगा। इस प्रकार प्रदेश की नौकरियों में तीनों वर्गों को 27+1+34.63=62.63 फीसदी आरक्षण हो जायेगा जिसको चेन्नई की तर्ज पर 50 फीसदी से ऊपर जाने की बजह से संविधान की नौवीं अनुसूची में डालना होगा।
संसद में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत का जवाब
उत्तर प्रदेश की 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की मांग को अस्वीकार करते हुए केंद्र ने गुरुवार को कहा कि इस प्रस्ताव को देश के महापंजीयक (आरजीआइ) ने नामंजूर कर दिया है। और वह आरजीआइ के निर्णय के खिलाफ फैसला लेने की स्थिति में नहीं है।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विभिन्न जातियों को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की सूचियों में शामिल करने की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि जब आरजीआइ ने किसी प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया तो राज्य को नए सिरे से प्रस्ताव करने की जरूरत है। वह राज्यसभा में संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश संशोधन विधेयक 2016 पर हुई चर्चा का जवाब दे रहे थे। उनके जवाब के बाद सदन ने विधेयक को अप्रैल 28, 2016 को ध्वनिमत से पारित कर दिया।
सपा के विश्वंभर प्रसाद निषाद ने उत्तर प्रदेश की 17 जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने की मांग करते हुए विधेयक पर एक संशोधन पेश किया। लेकिन सदन ने उस संशोधन को ध्वनिमत से खारिज कर दिया। गहलोत ने निषाद की इस मांग पर कहा कि इस बारे में भारतीय महापंजीयक ने दो बार इनकार किया है। उन्होंने कहा कि सरकार आरजीआइ के निर्णय के खिलाफ जाने की स्थिति में नहीं है।
गहलोत ने स्वीकार किया कि देश में अनुसूचित जाति की आबादी बढ़ी है। बढ़ी हुई आबादी के आधार पर उनके आरक्षण में वृद्धि के सुझाव पर उन्होंने कहा कि इस बारे में सभी दलों के साथ विचार विमर्श कर ही कोई रास्ता निकाला जा सकता है। गहलोत ने कहा कि हाल ही में जाति आधारित जनगणना संपन्न हुई है और सरकार उसकी घोषणा की दिशा में काम कर रही है।
डॉ छेदी लाल साथी की रिपोर्ट
यदि सपा सरकार इन पिछड़ी जातियों को आरक्षण का वांछित लाभ वास्तव में देना चाहती है जोकि वार्तमान में उन्हें पिछड़ों में समृद्ध जातियों (यादव, कुर्मी तथा जाट आदि) के शामिल रहने से नहीं मिल पा रहा है तो उसे इन जातियों की सूची को तीन हिस्सों में बाँट कर उनके लिए 27 फीसदी के आरक्षण को उनकी आबादी के अनुपात में बाँट देना चाहिए।
देश के अन्य कई राज्य बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक अदि में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है। मंडल आयोग की रिपोर्ट में भी इस प्रकार की संस्तुति की गयी थी।
उत्तर प्रदेश में इस सम्बन्ध में 1975 में डॉ छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में सर्वाधिक पिछड़ा आयोग गठित किया गया था जिस ने अपनी रिपोर्ट 1977 में उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी थी परन्तु उस पर आज तक कोई भी कार्रवाही नही की गयी। साथी आयोग ने पिछड़े वर्ग की जातियों को तीन श्रेणियों में निम्न प्रकार बाँटने तथा उन्हें 29.5 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की थी:
(अ) श्रेणी में उन जातियों को रखा गया था जो पूर्ण रूपेण भूमिहीन, गैर-दस्तकार, अकुशल श्रमिक, घरेलू सेवक हैं और हर प्रकार से ऊँची जातियों पर निर्भर हैं। इनको 17 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी।
(ब) श्रेणी में पिछड़े वर्ग की वह जातियां, जो कृषक या दस्तकार हैं। इनको 10 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी। ।
(स) श्रेणी में मुस्लिम पिछड़े वर्ग की जातियां हैं जिनको 2.5 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसदी आरक्षण उपलब्ध है। अतः इसे डॉ छेदी लाल साथी आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप पिछड़ी जातियों को तीन हिस्सों में बाँट कर उपलब्ध आरक्षण को उनकी आबादी के अनुपात में बाँटना अधिक न्यायोचित होगा। इस से अति पिछड़ी जातियों को अपने हिस्से के अंतर्गत आरक्षण मिलना संभव हो सकेगा।
अखिलेश के प्रस्ताव में सपा सरकार की नीयत पर शक
इस प्रस्ताव में एक कठिनाई यह है कि 2004 से लगातार तीन बार यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाता रहा है और वहां से बापस आ जाता है। इससे लगता है, केंद्र और प्रदेश की सरकार उक्त 17 अति पिछड़ी जातियों के कल्याण के प्रति गंभीर नहीं है।
सरल तरीका यह होता कि जब तक सभी जातियों को जनसँख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है तब तक प्रदेश में इन 17 जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में अन्य पिछड़ी जातियों को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण में से 13.63 फीसदी अलग श्रेणी बनाकर दे देना चाहिए। शायद अखिलेश सरकार इस फैसले से कन्नी काट कर प्रस्ताव को उलझना चाहती है। भाजपा और कांगेस की तरह पिछड़े वर्ग से संबंधित अखिलेश सरकार भी मनुवाद की शिकार हो गई है। इसी लिए अति पिछड़ी जातियों के प्रति उदासीन है और पक्षपातपूर्ण व्यवहार कर रही है।