नब्बे के दशक में यह नारा बड़े जोरों पर लगता था कि "बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशी राम करेंगे पूरा" आज न कांशी राम है न उनके जैसा व्यक्ति सो ऐसे में एक ही नारा लगाया जा सकता है कि "कांशी तेरा मिशन अधूरा, आगे कौन करेगा पूरा?" आज जयरामसिंह जय के गीत की लाइनें यहां बड़ी सटीक सावित हो सकती हैं।…….
प्यारे एक होलो रे, बहुजन एक होलो रे, अपने दीन को बचालो, ईमान को बचालो, प्यारे एक………
बाबा साहब का मिशन था शुद्र वर्ण के अन्तर्गत आने वाली 6743 जातियों में बांटे गये समाज जो अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़ी जातियों/ तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के रूप में जाना जाता है, उसे एक वर्ग में कैसे इकट्ठा किया जाय? इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मान्यवर कांशीराम साहब ने पहले बहुजन समाज में जन्में संतो गुरुओं वालिदानियों और महापुरुषों के विचारों को संकलित करके बहुजन समाज की विचारधारा बनाई। उस चुम्बकीय शक्ति के माध्यम से बहुजन समाज की बिखरी पड़ी हजारों जातियों को बहुजन समाज में परिवर्तित किया, जिससे बहुजन समाज संगठित हुआ।
सामाजिक परिवर्तन के फलस्वरूप राजनीतिक परिवर्तन हुआ और बड़े पैमाने पर बहुजन समाज के वर्गों से नेता उत्पन्न हुए जिनकी महत्वाकांक्षा और लालसा जागने लगी। इन नेताओं की अकड़ और सम्पन्नता बढ़ने के कारण गैरराजनीतिक स्तर पर विचार धारा को फ़ैलाने वाले कैडर कैम्प बंद कर दिए गए, उनकी जगह नकली कैडर कैम्प पैसा पैदा करने के लिए राजनेताओं द्वारा चलाये जाने लगे। अंतत: विचारधारा फ़ैलाने वाले गैरराजनीतिक लोग स्वार्थी तथा सत्ता लोलुप नेताओं ने घर में बैठने पर मजबूर कर दिया। इसका फायदा उठाते हुए बहुजन विचार धारा की विरोधी ताकतों ने उनकी मनोवैज्ञानिक स्थित का अध्ययन करके जातिभेद का बीज फिर से बोना शुरू किया और सब्र के साथ फसल काटने तक इंतजार करते रहे।
चूंकि यह बीज बहुजन विरोधी ताकतों ने उत्तर प्रदेश की जमीन में 1995 में डाला था जिसकी पहली फसल 2014 में काटी गई और दूसरी फसल 2017 में काटी। कांशीराम जी ने नारा दिया था "जो बहुजन की बात करेगा वह दिल्ली से राज करेगा" इस मन्त्र को बहुजन समाज के राज नेता भूल गए और वे ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की बात करने लगे परिणाम स्वरूप बहुजन की मूल जातियां बहुजन आंदोलन से अलग होकर वे भी सर्वजन की बड़ी पार्टी (भाजपा) के गुण गाने लगीं। तभी स्थिति को भांप कर मनुवादी पार्टी ने अपना नेता बहुजन समाज की जाति में पैदा होने वाले व्यक्ति को घोषित कर दिया और बहुजन समाज की अति पिछड़ी और अति दलित जातियों को अपना दास बना लिया, जिसके कारण पिछड़ों और अति-पिछड़ों, दलित और महा-दलित जातियों इसी तरह अल्पसंख्यक वर्ग में असरफ और अजलाफ जातियों के रूप में विभेद पैदा करके स्थाई खाई पैदा कर दी गई। इस नीति का समर्थन जब बहुजन समाज पार्टी को चलाने वाले नेताओं ने भी कर दिया तो उसी दिन से बहुजन समाज के राजनीतिक पतन की शरूआत होने लगी थी। जब समाज को दिशा देने वाले गुरु भी सत्ता धारियों की हाँ में हाँ मिलाना शुरू कर देते हैं तो उस राजनीति का पतन होना निश्चित हो जाता है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की हार का एक निष्पक्ष विश्लेषण
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा 2012 के चुनाव में मुसलमानों ने धोखा दिया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने फिर कहा 2017 के चुनाव में मशीन (EVM) ने धोखा दिया। कांशीराम जी कहते थे की धोका देने वाले से धोका खाने वाला बड़ा गुनहगार होता है। वह हमेशा अपनी असफलता का ठीकरा दूसरों पर फोड़ता है ।चुनाव आयोग से प्राप्त आँकड़े:
पार्टी | वोटों की संख्या | वोट% | सीट संख्या |
बसपा | 1 करोड़ 92 लाख | 22.2 | 19 |
सपा | 1 करोड़ 89 लाख | 21.8 | 47 |
भाजपा | 3 करोड़ 44 लाख | 39.7 | 312 |
यदि सपा और बसपा के कुल वोटों को जोड़ दिया जाय तो दौनों के कुल वोट हो जाते हैं 3 करोड़ 81 लाख और दोनों की सीटों की कुल संख्या हो जाती है 66, दोनों का वोट प्रतिशत जोड़ा जाये तो होता है 44 प्रतिशत। जबकि बहुमत के साथ जितने वाली अकेली भाजपा के वोट होते है 3 करोड़ 44 लाख उसकी सीटें बनती है 312 जबकि वोट प्रतिशत 39.7 बनता है जो सपा और बसपा के योग वोटों से 4.3 फीसदी कम है, जबकि, सपा और बसपा के वोटों से भाजपा के वोट 37 लाख कम हैं। इस तरह या तो भाजपा के डर के बजह से समझौता नहीं हुआ या किसी ने गलत सलाह दी थी। लोक सभा के चुनाव में भाजपा को इसी गलती की बजह से 73 सीटें और 44 फीसदी वोट मिला फिर भी दौनों ने सबक नहीं लिया तो सपा और बसपा के वोटरों को 2019 में फैसला करना होगा, क्या रणनीति बनाई जाय? जिसकी भनक भी किसी को नहीं लगनी चाहिए। दौनों पार्टियों ने अपने वोटरों का भरोसा तोड़ा है तो जनता अब सबक सिखाने के मूड में है।
बसपा का DM (दलित मुस्लिम) सोसल इंजीनियरिंग का फार्मूला फेल हो गया तथा सपा का माय ( मुस्लिम यादव) सोसल इंजीनियरिंग का फार्मूला भी पूरी तरह से फेल हो गया उसका कांग्रेस के साथ गठबंधन भी किसी काम नहीं आया। जनता ने परिवारवाद तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट किया जिसका भाजपा को फायदा मिला। अन्य पार्टियों ने अपनी रणनीति नहीं बदली तो हर चुनाव में मुहकी खाने से कोई नहीं रोक पायेगा। क्या हर बार उनका वोटर ठगा जायेगा?
मायावती केवल चमार, जाटव जाति को ही दलित मानती है। यूपी में दलित के अन्तर्गत 65 जातियाँ आती हैं। इसलिए पासी, बाल्मीकी, खटिक, धोबी, नट, दुसाध, खरवार, गौंड़, मुसहर, डोमों आदि जाटवों से इतर दलित जातियों ने भाजपा में शामिल होकर कमल पर वोट दिए। मायावती हार की हताशा से EVM को बासपा की हार का कारण मान रही है। सच्चाई को स्वीकार करके हार मान लेना चाहिए ।
चुनावी समझौता तो सपा और बसपा में होना चाहिए था। ऐसा होता तो दोनों 350 सीटों पर विजय प्राप्त करते लेकिन मायावती के अहंकार ने समझौता नहीं होने दिया। कुछ दिन पूर्व बिहार में इसी फार्मूले से नितीश लालू ने मोदी के विजय रथ को रोक कर सिद्ध किया कि भारत में मनुवाद की विजय बहुजनो के विभाजन से ही सम्भव है। लालू यादव और अखिलेश बसपा से चुनावी समझौता चाहते थे लेकिन मायावती का अंहकार एवं दलित और मुस्लिम वोट पर अधिक भरोसा था ।
यह हार मायावती और अखिलेश की नहीं हुई है। यह हार 3 करोड़ 81 लाख दलित पिछड़े व् मुस्लिम मतदातों की हुई है। मोदी और अमित शाह के सामने मायावती और अखिलेश की सोसल इंजीनियरिंग फेल हो गयी। विशुद्ध आरएसएस के प्रोडक्ट अमित शाह और मोदी के सारे हथियारों की काट केवल अम्बेडकर और कांशीराम जी के 85% बहुजन के अचूक फॉर्मूले में छिपी है। 1993 में जब ‘मिले मुलायम कांशीराम।। हवा हो गए जय श्रीराम।।‘ का नारा गूंजा था तो मनुबादी ताकतों के होश उड़ गए थे, अब कहाँ गए वे लोग। क्या लालच के वशी भूत आपस की लड़ाई समाज को धोका नहीं दे रही है। हे बहुजन समाज के लोगो जब नेता पर विश्वास हट जाये तो नेता को बदलना ही उचित रास्ता है।
सत्ता पाने की होड़ में मायावती कांशी राम के विचारों से दूर चली गयीं। अकेले मायावती अपने बल सत्ता में नहीं आ सकती राजनेताओं को जनता अपनी भाषा में अच्छे समझा देती है। मायावती उसे अभी भी समझने को तैयार नहीं। चमार, जाटव और यादव इस हार के बाद सत्ता के हासिए पर चले गये हैं । मायावती और मुलायम और अखिलेश को समझ आए या न आए गाँव में चमारों और यादवों को हार का कारण समझ आ रहा है। सपा और बसपा एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में आगे बढ़े लेकिन आज सत्ता और सुख के केन्द्र बन गये हैं। सपा ने लोहिया को छोड़ दिया और मायावती ने डा अम्बेडकर को छोड़ दिया। परिणाम आप के सामने है। यदि इस लेख से किसी को दुःख होता है तो मैं इसके लिए क्षमा चाहता हूँ । इस लेख में कड़वी सच्चाई प्रस्तुत की गई है। यह विचार किसी भय और लालच से विरक्त होकर बाबा के स्वतन्त्र सिपाही ने बहुजन समाज के हित में व्यक्त किये हैं। विचारक की आवाज है कि आज मिशन के नाम पर बाबा साहब डॉ अम्बेडकर और साहब कांशीराम के साथ धोखा ही तो हो रहा है।
मिशन भाईचारा
इसलिए सभी गुरु और महापुरुषों के विचारों को फिर से आत्मसात करके सत्ता के मोह को त्याग कर निस्वार्थ भावना से कांशीराम जी की तरह फिर से समाज में मिशन भाईचारा के अंतर्गत सम्मान, स्वाभिमान और हिस्सेदारी के विषयों पर चर्चा चलने हेतु कार्यक्रम बनाने होंगे, जिसमें राजनेताओं को दूर रखना होगा। शूद्र समाज सिंधु घाटी के सौदरियों के वंशज हैं कोई और नहीं। सौदरियों का अपभ्रंश ही शूद्र शब्द है, जिसे आज 6743 जातियों में बांटा गया है। जिनका, इतिहास में नेताओं की गलतियों के कारण कई बार पतन होता रहा है। हर बार गुरुओं और महापुरुषों के आंदोलन के कारण उत्थान भी हुआ है, इस लिए निराश न होकर उत्थान करने वाले महापुरुषों के विचारों को संकलित करके समाज के सभी भाइयों तक उनके सन्देश को पहुचाने के लिए फिर से सामूहिक नेतृत्व के द्वारा एक नई और कारगर मुहिम चलानी होगी।
नई मुहिम की शुरुआत मान्यवर कांशी राम साहब के जन्म दिन 15 मार्च 2017 से विभिन्न सामाजिक संगठनों ने नोएडा के दलित प्रेरणा केंद्र से की थी। इसकी आगे की कड़ी बाबा साहब की 126वीं जयंती पर पार्लियामेंट में लगी उनकी मूर्ती के सामने जुड़ेगी। विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा गठित बहुजन समाज के सभी घटकों की 15 सदस्यी प्रतिनिधि समिति महापुरुषों के लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प लेगी।
सामूहिक नेतृत्व कैसे विकसित किया जाये? संगठनों के अंतर्गत आंतरिक लोकतंत्र कैसे विकिसित किया जाये? परिवारवाद की राजनीति करने वालों को कैसे सबक सिखाया जाये? महापुरुषों की विचारधारा को कैसे विकिसित किया जाये? भ्रष्टाचार की जगह सदाचार को कैसे विकिसित किया जाये? व्यक्ति पूजा के नेतृत्व की परिपाटी को कैसे हतोत्साहित किया जाये? इत्यादि प्रश्नों का हल खोजने और समाधान की चाहत रखने वाले सभी संगठनों को एक साथ आने के लिए उक्त कोर्डिनेशन समिति आह्वान करती है। आईये, आज 14 अप्रेल 2017 से “अहम् तोड़ो समाज जोड़ो के नारे के साथ” सभी को भागीदार बनाने की भी शुरूआत हम और आप मिलकर करते हैं।
अहियें-अहियें हमारे सर ताज, चलेंगे जब मिल-जुल के..... Without non-political roots, we cannot get the political fruits..... बहुजन एकता जिंदाबाद!