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घरेलू काले धन का नहीं हुआ सही खुलासा- प्रो.अरुण कुमार

देश के भीतर रखे काले धन के खुलासे के लिए सरकार द्वारा चलाई गई आय घोषणा योजना (आईडीएस) के तहत 65,250 करोड़ रुपये के काले धन का खुलासा हुआ है। सरकार की ओर से कहा गया है कि अभी दस्तावेजों में ऑनलाइन मिली जानकारियों को संकलित किया जा रहा है, इसलिए काले धन के खुलासे का यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। इससे कर और जुर्माने के तौर पर सरकार को 29,362 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है। 

आईडीएस योजना के तहत 64,275 लोगों ने 65,250 करोड़ रुपये का खुलासा किया है। यानी लगभग हर आदमी ने औसतन एक करोड़ रुपये का खुलासा किया है। वर्ष 1997 में काले धन की घोषणा के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी स्वैच्छिक आय घोषणा योजना (वीडीआईएस) चलाई थी, जिसमें सरकार को 9,760 करोड़ रुपये का कर मिला था। स्वैच्छिक आय घोषणा योजना पूरी तरह से माफी योजना थी, जबकि आईडीएस में 45 प्रतिशत की दर से कर और जुर्माना लगाया गया है।

हमारे देश में सालाना 90 लाख करोड़ रुपये की काली कमाई होती है, जिसकी वजह से कई गुना ज्यादा धन एकत्र हो जाता है। कमाई में और धन में अंतर होता है। अब 90 लाख करोड़ रुपये में से मात्र 65 हजार करोड़ की काली कमाई का खुलासा हुआ है, तो समझा जा सकता है कि यह प्रतिवर्ष होने वाली काली कमाई का एक प्रतिशत से भी कम है और देश में जो काला धन है, उसका दशमलव दो या दशमलव तीन फीसदी के आसपास ही है।

दावा किया जा रहा है कि इस वर्ष की यह योजना अब तक की सबसे बड़ी काला धन खुलासा योजना है। लेकिन 1997 में 33 हजार करोड़ काले धन की घोषणा हुई थी, जबकि तब देश में तीन लाख करोड़ रुपये की काली कमाई होती थी। यानी देश में तब जितनी काली कमाई होती थी, उसके करीब दस प्रतिशत काली कमाई की घोषणा हुई थी, जबकि इस बार जो घोषणा हुई है, वह काली कमाई की एक फीसदी से भी कम है। 1997 में सरकार को 9,760 करोड़ रुपये का कर मिला था, जबकि कर की दर ज्यादा होने से इस बार सरकार को 29,362 करोड़ रुपये मिलेंगे। अगर देश में पैदा होने वाले काले धन के दस फीसदी का भी खुलासा होता, तो नौ लाख करोड़ रुपये के काले धन का खुलासा होता, जिससे सरकार को करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की कमाई होती। इसकी तुलना में 29 हजार करोड़ रुपये की कर उगाही बहुत कम है। इसलिए इसका काले धन की अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला।

गौरतलब यह भी है कि 1997 में करीब तीन लाख लोगों ने अपनी काली कमाई का खुलासा किया था, लेकिन अभी करीब 64 हजार लोगों ने ही घोषणा की है। जबकि पिछले दो दशक में काले धन की कमाई करने वाले लोगों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। पिछले दिनों हुए बड़े-बड़े घोटालों में लोगों ने दसियों हजार करोड़ रुपये कमाए हैं। ऐसे में, कम से कम छह-सात लाख लोगों को अपनी काली कमाई की घोषणा करनी चाहिए थी। लगता है कि काली कमाई करने वाली बड़ी मछलियां इससे बच रही हैं।

यह कहा जा रहा है कि इस योजना से संबंधित आंकड़े किसी अन्य एजेंसी से साझा नहीं किए जाएंगे। आयकर विभाग भी अपनी आय का खुलासा करने वाले लोगों के खिलाफ जांच नहीं करेगा। गौरतलब है कि सीएजी ने 1997 की वीडीआईएस की ऑडिटिंग की थी और अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उस योजना में कई तरह की खामियां थीं, जिनका फायदा संपत्ति की घोषणा करने वालों ने उठाया। सीएजी सांविधानिक संस्था है और उसके पास जांच के लिए आंकड़े जाने चाहिए। इस योजना में क्या-क्या खामियां रहीं, किन लोगों ने काले धन का खुलासा किया, इसके बारे में तो ऑडिट करने के बाद ही पता चलेगा।

पिछली योजना की जब सीएजी ने ऑडिट की थी, तो उसने किसी घोषणा करने वाले की पहचान उजागर नहीं की थी, लेकिन यह जरूर बताया कि ये घोषणा करने वाले ज्यादातर वही लोग हैं, जिन्होंने पिछली योजनाओं के तहत अपने काले धन की घोषणा की थी। उसने साफ कहा था कि लोग जान-बूझकर कर चोरी करते हैं और इंतजार में रहते हैं कि जब इस तरह की कोई योजना आएगी, तो अपनी काली कमाई के कुछ अंशों की घोषणा कर बाकी छिपा लेंगे।

ऐसी बातें भी सुनने को मिल रही हैं कि कुछ लोगों ने हाल में अपनी काली कमाई से कुछ सोना खरीद लिया और बता दिया कि यह सोना उसने पच्चीस वर्ष पहले खरीदा था। मान लीजिए कि अभी दस हजार करोड़ रुपये का सोना खरीदा और उसे पच्चीस साल पहले की कीमत बीस लाख रुपये बता दी, तो दस हजार करोड़ रुपये की काली कमाई को मात्र 20 लाख रुपये का बताकर उसे सफेद धन बना लिया। हालांकि इस खबर की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन ऐसी अनियमितताएं इस योजना में भी हुई हो सकती हैं। इसलिए भी सीएजी की ऑडिटिंग जरूरी है। हो सकता है कि लोगों ने अपनी ज्यादा काली कमाई को कम बताने के लिए और भी तरीके अपनाए हों। इसका पता तो सीएजी की ऑडिट से ही चलेगा।

खबरें ये भी हैं कि आयकर विभाग पर पिछले दिनों सीबीडीटी से काफी दबाव पड़ा। इससे पता चलता है कि आयकर विभाग अगर चाहे, तो काले धन पर अंकुश लग सकता है। पर अगर सीएजी की ऑडिट नहीं होगी, तो इससे यह संदेश जाएगा कि सरकार एक ही बार अपनी योजना को सफल दिखाना चाहती है, काली कमाई को पैदा होने से रोकने के लिए निरंतर काम करना नहीं चाहती। सरकार को काली कमाई करने वालों पर लगातार निगरानी रखनी होगी, नहीं तो राउंड ट्रिपिंग (पहले टैक्स हैवन देशों में काला धन भेजना, फिर वहां से भारत लाना) के जरिये काला धन कमाने का धंधा चलता रहेगा। कुल मिलाकर, सरकार की इस योजना से काले धन के खिलाफ सख्ती बरतने का बहुत सार्थक संदेश नहीं जाता।

प्रो.अरूण कुमार - द ब्लैक इकोनॉमी इन इंडिया के लेखक हैं।