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नोटबंदी किसका अधिकार क्षेत्र? - के सी पिप्पल

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल 1935 को हुई थी। यद्यपि ब्रिटिश राज के दौरान प्रारम्भ में यह निजी स्वामित्व वाला बैंक हुआ करता था परन्तु स्वतन्त्र भारत में 1 जनवरी 1949 को इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। उसके बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है। भारतीय रिजर्व बैंक का मुख्य दायित्व "बैंक नोटों के निर्गम को नियन्त्रित करना, भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से प्रारक्षित निधि रखना और सामान्यत: देश के हित में मुद्रा व ऋण प्रणाली परिचालित करना" है। इसे दृष्टिगत रखते हुए मुद्रा परिचालन एवं काले धन की दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करने के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने 31 मार्च 2014 तक सन् 2005 से पूर्व जारी किये गये सभी सरकारी नोटों को वापस लेने का निर्णय लिया था। उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर हैं, जिन्होंने 4 सितम्बर 2016 को पदभार ग्रहण किया। वर्तमान नोटबंदी का फैसला प्रधानमंत्री का बताया जाता है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं। क्या इस समय भारत में वित्तीय संकट उपस्थित हो गया? यदि हाँ, तो प्रधानमंत्री द्वारा की गयी 8 नवम्बर की नोटबंदी घोषणा को वित्तीय आपातकाल समझा जाय?

संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय वित्तीय संकट से निपटने हेतु प्राधिकार प्रदान किया गया है। इसके अंतर्गत, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए की ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हैं जिनसे भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय वित्तीय संकट से निपटने हेतु प्राधिकार प्रदान किया गया है। इसके अंतर्गत, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए की ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हैं जिनसे भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है।

8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे देश के नाम एक संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद से पूरे देश में लोग कैश के लिए संघर्ष कर रहे हैं। काले धन के खिलाफ मुहिम में पुराने बड़े नोटों को बंद करने के फैसले के बाद 13.11.2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य में कुछ और कड़े कदम उठाए जाने का संकेत दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'मेरे दिमाग में भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए और भी योजनाएं हैं। हम बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यह भ्रष्टाचार, काले धन को समाप्त करने के लिए सबसे बड़ा कदम है। अगर कोई धन लूटा गया है और देश से बाहर जा चुका है तो उसका पता लगाना हमारा कर्तव्य है। कैबिनेट की पहली बैठक से ही यह स्पष्ट हो गया था, जब मैंने काले धन पर एसआइटी बनाई थी। मुझे आजादी के बाद से चल रहे भ्रष्टाचार को उजागर करना है। इसके लिए अगर एक लाख नौजवानों की भर्ती करनी पड़ी तो वो भी करूंगा। मैंने ईमानदार लोगों के समर्थन की आशा में यह मुहिम शुरू की थी। मुझे उनकी शक्ति पर पूरा भरोसा है। सभी कह रहे हैं कि समस्या हो रही है, लेकिन खुश हैं क्योंकि इससे देश को फायदा होगा।'

मोदी के इस कदम पर सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपनी प्रितिक्रिया व्यक्त करते हुए आर्थिक आपातकाल की संज्ञा दी। विपक्ष इस मुद्दे पर सड़क से लेकर सदन तक हंगामा कर रहा है। दिल्ली और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर रैली कर चुके हैं। वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ 13 राजनीतिक दल इस मुद्दे पर विरोध कर रहे हैं।

चीनी मीडिया ने नोटबंदी का पीएम मोदी का फैसला 'जुए' जैसा बताया

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्‍स ने नोटबंदी के फैसले को साहसिक बताते हुए लिखा कि अगर चीन में 50 और 100 युआन के नोट बंद कर दिया जाए तो चीन में इसका असर क्या होगा हम सोच नहीं सकते। ग्लोबल टाइम्‍स ने  संपादकीय में निर्णय को एक जुआ बताते हुए लिखा कि भारत में 90 प्रतिशत से ज्यादा लेन-देन नकद में होता है। ऐसे में वहां की 85 फीसदी करेंसी को चलन से बाहर करने से लोगों को रोजमर्रा के जीवन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अखबार ने संपादकीय में आगे लिखा, 'भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह के साहसिक निर्णय लेने के लिए जगह बहुत कम है। मोदी सफल हों या विफल, लेकिन इस तरह का फैसला एक मिसाल कायम करेगा। सुधार लाने में हमेशा दिक्कत होती है और इसके लिए साहस की जरूर होती है।' 

संसद में मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को बताया कानूनी लूट खसोट

अपने शासन काल में खामोशी के लिए निंदा झेलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 24.11.2016 को राज्यसभा में जमकर बरसे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस तरह से इसे लागू किया गया है, वह ‘प्रबंधन की विशाल असफलता’ है और यह संगठित एवं कानूनी लूट-खसोट का मामला है। इस फैसले से सकल घरेलू उत्पाद में दो फीसदी की कमी आएगी जबकि इसे नजरअंदाज किया जा रहा है। गौरतलब है कि सिंह प्रख्यात अर्थशास्त्री हैं और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि जो हालात हैं, उनमें आम लोग बेहद निराश हैं। कृषि, असंगठित क्षेत्र और लघु उद्योग नोटबंदी के फैसले से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इन हालत में उन्हें लग रहा है कि जिस तरह योजना लागू की गई, वह प्रबंधन की विशाल असफलता है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि इस फैसले का अंतिम परिणाम क्या होगा, इसके बारे में कोई नहीं जानता लेकिन प्रधानमंत्री ने 50 दिन तक इंतजार करने के लिए कहा है। वैसे यह समय बहुत कम है लेकिन गरीबों और समाज के वंचित वर्गों के लिए 50 दिन किसी प्रताड़ना से कम नहीं हैं। अब तक तो करीब 60 से 65 लोगों की जान जा चुकी है। शायद यह आंकड़ा बढ़ भी जाए। 

मनमोहन सिंह ने मोदी से निम्न बिन्दुओं पर व्यावहारिक समाधान खोजने का आग्रह किया

·                पीएम दुनिया के उन देशों के नाम बताएं जहां लोग अपना पैसा बैंक में जमा करते हैं और उन्हें अपना ही पैसा निकालने की अनुमति नहीं दी जाती। 

·                मेरे विचार से, यही बात उसकी निंदा करने के लिए पर्याप्त है जो बड़े विकास के नाम पर की गई है। 

·                जिस तरह नोटबंदी लागू की गई है उससे हमारे देश का कृषि विकास, लघु उद्योग, अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोग प्रभावित होंगे।

·                लोगों का मुद्रा एवं बैंकिंग व्यवस्था से विश्वास खत्म हो रहा है।

·                हमारे देश के 90 फीसदी लोग अनौपचारिक क्षेत्र में और 55 फीसदी लोग कृषि से जुड़े हैं जो खुद को हताश महसूस कर रहे हैं। 

नोटबंदी को भारत रत्न अमर्त्य सेन ने बताया अधिनायकवादी कदम

भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कि 500 और 1000 रुपए पर केंद्र सरकार की कार्रवाई निरंकुश है। अमर्त्य सेन ने कहा, 'लोगों को अचानक बताया गया कि उनकी करेंसी अब काम की नहीं है, उसका इस्तेमाल वो अब नहीं कर सकते हैं। यह अधिनायकवाद जैसा है। सरकार इसे कथित तौर पर जायज ठहरा रही है।' उन्होंने कहा कि 8 नवंबर को नरेंद्र मोदी सरकार की इस घोषणा ने एक ही झटके में सभी भारतीय नागरिकों को कुटिल करार दिया है, लेकिन, वास्तविकता में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि एक अधिनायकवादी सरकार ही लोगों को संकट झेलने के लिए छोड़ सकती है। लाखों निर्दोष लोग अपना ही पैसा नहीं ले पा रहे हैं। उन्हें अपना खुद का पैसा पाने के लिए संघर्ष, असुविधा और अपमान का सामना करना पड़ रहा है।

नया सवाल- क्या घरों या पूजा स्थलों में सोना रखने पर पाबंदी लग सकती है?

कालेधन पर अंकुश के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से अगला कदम सोने की घरेलू खपत को सीमित करना हो सकता है। सत्ता के गलियारे से लेकर सराफा बाजार तक में जताई जा रही इस संभावना को देखते हुए सोने की कीमत में लगातार गिरावट आ रही है। सरकार के भावी कदम की संभावना से सोने के आयात में भारी कटौती की उम्मीद की जा रही है। इससे भारत के व्यापार घाटे में कमी आएगी। भारत की तरफ से होने वाले वस्तुओं के आयात में सोने व चांदी की दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। सराफा विशेषज्ञों के मुताबिक सोने के दाम वैश्विक स्तर पर तय होते हैं, लेकिन भारत चीन के बाद सोने की खपत करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। ऐसे में भारत में सोने के प्रति लगाव में कमी के रुख से विश्व बाजार अछूता नहीं रह सकता है। तभी सोने के भाव शुक्रवार को प्रति 10 ग्राम 29,400 रुपये के स्तर पर आ गए। 8 नवंबर को नोटबंदी के फैसले के बाद सोने के भाव लगभग 60,000 रुपये (पुराने नोट से) प्रति 10 ग्राम के स्तर पर आ गए थे।

घर में सोना रखने की हो सकती है सीमा 

घर में सोना रखने की सीमा भी तय करने की चर्चा चल रही है। हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि इस मुद्दे पर कैबिनेट कै बैठक में चर्चा हुई या नहीं।   

क्या जन धन खातों में हो रहा है कला धन जमा?

नोटबंदी की घोषणा के महज 8 दिन बाद तक जन धन के करीब 25 करोड़ खातों में 18,616 करोड़ रुपये जमा हो गए थे। नोटबंदी की घोषणा से पूर्व जन धन खातों में 45,636 करोड़ रुपये जमा थे। यह रकम 16 नवंबर को बढ़ कर 64,252 करोड़ तक पहुंच गई। सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के 3.79 करोड़ खातों में 16 नवंबर तक 10,670 करोड़ रुपये जमा हो गए थे। दूसरे पायदान पर पश्चिम बंगाल है। यहां के 2.44 करोड़ खातों में 7,826 करोड़ रुपये जमा हो चुके थे। राजस्थान के 1.89 करोड़ खातों में 5,345 करोड़ रूपये जबकि बिहार के 2.62 करोड़ खातों में 4,913 करोड़ जमा हो चुके थे। खास बात यह है कि नोटबंदी के फैसले से पहले जिन 23 फीसदी खातों में कोई रकम जमा नहीं थी, उन खातों में भी हजारों करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। वित्त राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में लिखित जवाब में इस आशय की जानकारी देते हुए बताया कि सरकार के पास फिलहाल 16 नवंबर तक के ही आंकड़े हैं। गौरतलब है कि जन धन खातों के माध्यम से काला धन खपाने की हो रही कोशिशों से सतर्क सरकार ने नोटबंदी के फैसले के बाद ऐसे खाताधारकों को किसी लालच में नहीं फंसने के लिए बार-बार आगाह किया है। 

खाते में जमा बेहिसाब रकम पर 60 फीसदी टैक्स लगा सकती है सरकार

केंद्र सरकार नोटबंदी के बाद बैंक खातों में तय सीमा से ज्यादा रकम जमा होने के मामलों में आय से ज्यादा राशि पर करीब 60 फीसदी टैक्स लगा सकती है। सूत्रों के मुताबिक 24.9.2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। सूत्रों ने कहा कि सरकार या तो कोई जमा योजना ला सकती है या फिर कोई बांड ला सकती है, जिसमें पुराने नोट जमा किए जा सकते हैं। 

24.9.2016 को रात अचानक बुलाई गई कैबिनेट की बैठक में हुए फैसलों के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई क्योंकि संसद चलने के दौरान नीतिगत फैसलों की जानकारी बाहर नहीं दी जा सकती है। लेकिन सूत्रों ने कहा कि सरकार नोटबंदी के बाद 10 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच बैंक खातों में जमा की गई पूरी बेहिसाबी रकम पर टैक्स लगाना चाहती है। मालूम हो कि नोटबंदी के बाद से जनधन खातों में ही 21 हजार करोड़ रुपये जमा हुए हैं। 

सूत्रों का कहना है कि सरकार शीत सत्र में आयकर एक्ट में संशोधन कर सकती है। इसके तहत सरकार काला धन रखने वालों पर 60 फीसदी टैक्स लगाने का फैसला सकती है। विदेश में जमा काले धन का खुलासा करने वालों के लिए लाई गई योजना में भी 60 फीसदी टैक्स लिया गया था। हालांकि 30 सितंबर को खत्म हुई एक मुश्त आय खुलासा योजना में सरकार ने 45 फीसदी टैक्स और पेनाल्टी लगाई थी। उस दौरान काला धन रखने वाले जिन लोगों ने अपने पैसे का खुलासा नहीं किया था वह अब यदि सरकार योजना लाई तो 60 फीसदी टैक्स देकर अपना पैसा जमा कर सकते हैं। सरकार की नजर खास तौर से जनधन खातों में बेनामी जमा राशि पर है। 

सरकार चाहती है, लोग नोट जलाएं न, बैंकों में जमा करें

नोटबंदी के फैसले के बाद से सरकार की ओर से जारी सख्त बयानों से काला धन रखने वालों में काफी खौफ है। आयकर विभाग भी कह चुका है कि नोटबंदी के बाद से खातों में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा रकम जमा होने पर टैक्स के साथ ही 200 फीसदी पैनाल्टी लग सकती है। ऐसी रिपोर्ट हैं कि लोग कार्रवाई के डर से 500-1000 के नोट बैंकों में जमा करने के बजाय जला रहे हैं या नष्ट कर रहे हैं। सरकार चाहती है कि लोग डर से नोट जलाएं नहीं, बल्कि 500-1000 के सभी नोट बैंकों में जमा हों।     

लेन-देन का डिजिटलाइजेशन- नीति आयोग की पहल

सार्वजनिक जीवन में काले धन एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए नीति आयोग ने पहल करते हुए अधिकारियों की एक समिति का गठन किया है। यह समिति नागरिकों से जुड़े सभी लेन-देन के शत-प्रतिशत ई-ट्रांजेक्शन के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म का मार्ग प्रशस्त करेगी।नीति आयोग से जारी बयान में बताया गया कि नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत की अध्यक्षता वाली यह समिति अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में होने वाले सार्वजनिक लेन-देन को चिन्हित कर उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हस्तांतरित करने के लिए योजना का खाका तैयार करेगी। बयान के मुताबिक, इस समिति में वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग के सचिव, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के सचिव, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव, वित्त मंत्रालय में निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग के सचिव, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम के एमडी एवं सीईओ, ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अध्यक्ष, और नीति आयोग के सलाहकार को भी शामिल किया गया है। 

नीति आयोग का कहना है कि यह कदम एक कैशलेस अर्थव्यवस्था के साथ भारत को बदलने की सरकार की रणनीति का अभिन्न हिस्सा है। अर्थव्यवस्था के डिजिटाइजेशन में दिक्कत नहीं हो, इसके लिए सरकार ने पहले ही जन-धन बैंक खातों के रूप में करोड़ों लोगों का खाता खोला है और इन्हें रूपे कार्ड जारी किया जा चुका है। इस कार्य में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों व स्थानीय निकायों का सम्मिलित योगदान होगा।

1000 रुपये के पुराने नोटों से अब लेन-देन बिलकुल बंद है, लेकिन 500 रुपये के पुराने नोटों से 15 दिसंबर तक लेन-देन किया जा सकता है। पेट्रोल पंप और अस्पतालों के अलावा रेल टिकट खरीदे जा सकेंगे। केंद्र और राज्य सरकार की बसों में ये नोट चलेंगे। पुरानें 500 के नोटों से एयरपोर्ट के काउंटर से हवाई टिकट भी खरीदे जा सकेंगे। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आने-जाने वाले यात्री भी इन नोटों का इस्तेमाल कर सकेंगे।

भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के मुद्रा नियंत्रण के सम्बन्ध में कानूनी अधिकार क्या हैं

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल 1935 को हुई थी। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन 1937 में मुम्बई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन 1949 से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है। उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर हैं, जिन्होंने 4 सितम्बर 2016 को पदभार ग्रहण किया। मुद्रा परिचालन एवं काले धन की दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करने के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने 31 मार्च 2014 तक सन् 2005 से पूर्व जारी किये गये सभी सरकारी नोटों को वापस लेने का निर्णय लिया था। यद्यपि ब्रिटिश राज के दौरान प्रारम्भ में यह निजी स्वामित्व वाला बैंक हुआ करता था परन्तु स्वतन्त्र भारत में 1 जनवरी 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। उसके बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।

भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रस्तावना में बैंक के मूल कार्य 

"बैंक नोटों के निर्गम को नियन्त्रित करना, भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से प्रारक्षित निधि रखना और सामान्यत: देश के हित में मुद्रा व ऋण प्रणाली परिचालित करना।" मौद्रिक नीति तैयार करना, उसका कार्यान्वयन और निगरानी करना। वित्तीय प्रणाली का विनियमन और पर्यवेक्षण करना। विदेशी मुद्रा का प्रबन्धन करना। मुद्रा जारी करना, उसका विनिमय करना और परिचालन योग्य न रहने पर उन्हें नष्ट करना। सरकार का बैंकर और बैंकों का बैंकर के रूप में काम करना। साख नियन्त्रित करना। मुद्रा के लेन देन को नियंत्रित करना

निदेशक मण्डल

रिज़र्व बैंक का कामकाज केन्द्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारतीय रिज़र्व अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति चार वर्षों के लिये होती है।

केन्द्रीय बोर्ड

रिज़र्व बैंक का कामकाज केन्द्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। इसका स्वरूप इस प्रकार होता है-

सरकारी निदेशक, एक पूर्णकालिक गवर्नर और अधिकतम चार उप गवर्नर।

गैर सरकारी निदेशक: सरकार द्वारा नामित: विभिन्न क्षेत्रों से दस निदेशक और एक सरकारी अधिकारी।

अन्य: चार निदेशक: चार स्थानीय बोर्डों से प्रत्येक में एक।

विधिक ढांचा: 

1.     सर्वोच्च अधिनियम

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934: रिज़र्व बैंक के कार्यों पर नियंत्रण करता है। बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949: वित्तीय क्षेत्र पर नियंत्रण करता है।

2.     विशिष्ट कार्यों को नियंत्रित करने के लिए अधिनियम

लोक ऋण अधिनियम, 1944/सरकारी प्रतिभूति अधिनियम (प्रस्तावित): सरकारी ऋण बाज़ार पर नियंत्रण, प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956: सरकारी प्रतिभूति बाज़ार पर नियंत्रण, भारतीय सिक्का अधिनियम, 1906: मुद्रा और सिक्कों पर नियंत्रण, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973/विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999: व्यापार और विदेशी मुद्रा बाज़ार पर नियंत्रण

3.     बैंकिंग परिचालन को नियंत्रित करने वाले अधिनियम

कंपनी अधिनियम, 1956: कंपनी के रूप में बैंकों पर नियंत्रण, बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और अंतरण) अधिनियम 1970/1080: बैंकों के राष्ट्रीयकरण से संबंधित, बैंकर बही साक्ष्य अधिनियम, 1891

4.     बैंकिंग गोपनीयता अधिनियम

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881, अलग-अलग संस्थाओं को नियंत्रित करने वाले अधिनियम, भारतीय स्टेट बैंक अधिकनयम, 1954, औद्योगिक विकास बैंक (उपक्रम का अंतरण और निरसन) अधिनियम, 2003, औद्योगिक वित्त निगम (उपक्रम का अंतरण और निरसन) अधिनियम, 1993. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम

5.     राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम

6.     निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम

प्रमुख कार्य: 

1.     मौद्रिक प्राधिकारी-

मौद्रिक नीति तैयार करता है, उसका कार्यान्वयन करता है और उसकी निगरानी करता है।

उद्देश्य: मूल्य स्थिरता बनाए रखना और उत्पादक क्षेत्रों को पर्याप्त ऋण उपलब्धता को सुनिश्चित करना। वित्तीय प्रणाली का विनियामक और पर्यवेक्षक, बैंकिंग परिचालन के लिए विस्तृत मानदंड निर्धारित करता है जिसके अंतर्गत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है। प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखना, जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना और आम जनता को किफायती बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराना।

2.     विदेशी मुद्रा प्रबंधक

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का प्रबंध करता है।

उद्देश्य: विदेश व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना और भारत में विदेशी मुद्रा बाजार का क्रमिक विकास करना और उसे बनाए रखना।

3.     मुद्रा जारीकर्ता

करेंसी जारी करता है और उसका विनिमय करता है अथवा परिचालन के योग्य नहीं रहने पर करेंसी और सिक्कों को नष्ट करता है।

उद्देश्य: आम जनता को अच्छी गुणवत्ता वाले करेंसी नोटों और सिक्कों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराना।

4.     विकासात्मक भूमिका

राष्ट्रीय उद्देश्यों की सहायता के लिए व्यापक स्तर पर प्रोत्साहनात्मक कार्य करना।

5.     संबंधित कार्य

6.     सरकार का बैंकर : केंद्र और राज्य सरकारों के लिए व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है; उनके बैंकर का कार्य भी करता है।

7.     बैंकों के लिए बैंकर : सभी अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखता है।

सरकार के बैंकर के रुप में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका

भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम की धारा 20 की शर्तों में रि‍ज़र्व बैंक को केन्द्रीय सरकार की प्राप्ति‍यां और भुगतानों और वि‍नि‍मय, प्रेषण (रेमि‍टन्स) और अन्य बैंकिंग गति‍वि‍धि‍यां (आपरेशन), जि‍समें संघ के लोक ऋण का प्रबंध शामि‍ल है, का उत्तरदायि‍त्व संभालना है। आगे, भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम की धारा 21 के अनुसार रि‍ज़र्व बैंक को भारत में सरकारी कारोबार करने का अधि‍कार है।

अधि‍नि‍यम की धारा 21 ए के अनुसार राज्य सरकारों के साथ करार कर भारतीय रि‍ज़र्व बैंक राज्य सरकार के लेन देन कर सकता है। भारतीय रि‍ज़र्व बैंक ने अब तक यह करार सि‍क्कि‍म सरकार को छोड़कर सभी राज्य सरकारों के साथ कि‍या है।

भारतीय रि‍ज़र्व बैंक, उसके केन्द्रीय लेखा अनुभाग, नागपुर में केन्द्र और राज्य सरकारों के प्रमुख खातें रखता है। भारतीय रि‍ज़र्व बैंक ने पूरे भारत में सरकार की ओर से राजस्व संग्रह करने के साथ साथ भुगतान करने के लि‍ए सुसंचालि‍त व्यवस्था की है। भारतीय रि‍ज़र्व बैंक के लोक लेखा वि‍भागों और भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम की धारा 45 के अंतर्गत नि‍युक्त एजेंसी बैंकों की शाखाओं का संजाल सरकारी लेनदेन करता है। वर्तमान में सार्वजनि‍क क्षेत्र की सभी बैंक और नि‍जी क्षेत्र की तीन बैंक अर्थात आईसीआईसीआई बैंक लि‍., एचडीएफसी बैंक लि‍. और एक्सिस बैंक लि., भारतीय रि‍ज़र्व बैंक के एजेंट के रुप में कार्य करते हैं। केवल एजेंसी बैंकों की प्राधि‍कृत शाखाएं सरकारी लेनदेन कर सकती हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नरों की सूची

क्रमांक

नाम

कार्यकाल

1

सर ओसबोर्न स्मिथ

1 अप्रैल 1935 - 30 जून 1937

2

सर जेम्स ब्रेड टेलर

1 जुलाई 1937 - 17 फ़रवरी 1943

3

सर सी॰ डी॰ देशमुख

11 अगस्त 1943 - 30 जून 1949

4

सर बेनेगल रामा राव

1 जुलाई 1949 - 14 जनवरी 1957

5

के॰ जी॰ अम्बेगाओंकर

14 जनवरी 1957 - 28 फ़रवरी 1957

6

एच॰ वी॰ आर॰ आयंगर

1 मार्च 1957 - 28 फ़रवरी 1962

7

पी॰ सी॰ भट्टाचार्य

1 मार्च 1962 - 30 जून 1967

8

एल॰ के॰ झा

1 जुलाई 1967 - 3 मई 1970

9

बी॰ एन॰ आदरकार

4 मई 1970 - 15 जून 1970

10

एस॰ जगन्नाथन

16 जून 1970 - 19 मई 1975

11

एन॰ सी॰ सेनगुप्ता

19 मई 1975 - 19 अगस्त 1975

12

के॰ आर॰ पुरी

20 अगस्त 1975 - 2 मई 1977

13

एम॰ नरसिम्हन

3 मई 1977 - 30 नवम्बर 1977

14

आई॰ जी॰ पटेल

1 दिसम्बर 1977 – 15 सितम्बर 1982

15

डॉ॰ मनमोहन सिंह

16 सितम्बर 1982 - 14 जनवरी 1985

16

ऐ॰ घोष

15 जनवरी 1985 - 4 फ़रवरी 1985

17

आर॰ एन॰ मल्होत्रा

4 फ़रवरी 1985 - 22 दिसम्बर 1990

18

एस॰ वेंकटरमनन

22 दिसम्बर 1990 - 21 दिसम्बर 1992

19

सी॰ रंगराजन

22 दिसम्बर 1992 - 21 नवम्बर 1997

20

बिमल जालान

22 नवम्बर 1997 - 6 सितम्बर2003

21

वाई॰ वी॰ रेड्डी

6 सितम्बर 2003 - 5 सितम्बर 2008

22

डी॰ सुब्बाराव

5 सितम्बर 2008 - 4 सितम्बर 2013

23

रघुराम राजन

5 सितम्बर 2013 - 4 सितम्बर 2016

24

उर्जित पटेल

4 सितम्बर 2016 – वर्तमान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपातकाल का प्रावधान

वस्तुतः संविधान निर्माताओं ने शांतिकाल की स्थिति में शासन व्यवस्था हेतु हमें एक विशाल, परिपूर्ण संतुष्टि प्रदायक एवं अदभुत संविधान प्रदान किया तथा साथ ही साथ परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए इसे आंशिक नम्य एवं लोचशील बनाया जिससे देश एवं समाज का संभव विकास हो सके। दूसरी ओर संविधान निर्माताओं का विचार था कि असाधारण परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं और संविधान की सामान्य कार्य योजना विफल हो सकती है। उन्होंने यही समझा की ऐसे संकट की घड़ी में इस व्यवस्था को बदलने के लिए संविधान में ही उपबंध होने चाहिए। संकट के समय संघीय शक्ति का विस्तार होना चाहिए क्योंकि देश को संकट के समय अपने वजूद को बनाए रखने के लिए मिल-जुलकर प्रयास करना होगा। सभी शक्तियों का केंद्रीकरण हो जाएगा परंतु जैसे ही संकट की स्थिति समाप्त हो जाएगी तुरंत संविधान के सामान्य उपबंध प्रभावी हो जाएंगे।

आपात के प्रकार

संक्षेप में, संविधान के भाग-18 में अनुच्छेद 352-360 के अंतर्गत तीन प्रकार की आपात स्थितियों की परिकल्पना की गई है-

1.       युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण अनुच्छेद-352 के अधीन राष्ट्रीय आपात

2.       राज्य विशेष में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य आपात या राष्ट्रपति शासन

3.       राष्ट्र के वित्तीय स्थायित्व के संकट की स्थिति में अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपात

संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय वित्तीय संकट से निपटने हेतु प्राधिकार प्रदान किया गया है। इसके अंतर्गत, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए की ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हैं जिनसे भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। ऐसी परिस्थिति में तुरंत कदम उठाना अनिवार्य हो जाता है जिससे मंदी के कुप्रभाव को रोका जा सके और राज्य के अस्तित्व के संकट को टाला जा सके। ऐसी घोषणा के लिए वही अवधि निर्धारित है जो अनुच्छेद 352 के अंतर्गत उद्घोषणा के लिए निर्धारित है। इस उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखना होता है। यह दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी, यदि इस बीच दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन न कर दिया जाए।

वित्तीय संकट की उद्घोषणा के प्रभाव

जब उद्घोषणा प्रवर्तन में रहती है उस अवधि में संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य की वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धांतों का पालन करने के लिए ऐसे निर्देश देने तक होगा जो निर्देशों में विनिर्दिष्ट किए जाएं।

संघ तथा राज्यों के अधिकारियों के वेतन में, जिनमें उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी शामिल होंगे, आवश्यक कमी की जा सकती है।

यह निर्देश दिया जा सकेगा कि समस्त धन विधेयक या अन्य वित्तीय विधेयक राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित होने के पश्चात् राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखे जाएंगे।

राष्ट्रपति, केंद्र एवं राज्यों के मध्य वित्तीय आबंटन संबंधी प्रावधानों के बारे में आवश्यक संशोधन कर सकता है।

संघीय कार्यकारिणी, राज्य कार्यकारिणी को शासन संबंधी जरूरी आदेश दे सकती है।

उल्लेखनीय है कि भारत की स्वतंत्रता से लेकर अभी तक वित्तीय आपात (360) का प्रयोग या उद्घोषणा नहीं हुई है।

निष्कर्ष: 

आप किसी भी करेंसी नोट पर देखें, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर अपने हस्ताक्षर सहित लिखते हैं "में धारक को (नोट पर अंकित मूल्य) अदा करने का वचन देता हूँ”। नोट पर अंकित मूल्य धारक को न मिल कर उसमें कटौती करना वित्तीय संकट का अहसास दिलाता है या फिर केंद्रीय बैंक के प्रति अविस्वास पैदा करता है। इस स्थिति का जायजा लेने का अधिकार सर्वोच्च न्यायलय और संसद का है। इस मसले पर संसद तो गरम है तथा सर्वोच्च न्यायलय में सुनवाई हेतु जनहित याचिकाएं लंवित हैं, जिन पर २ दिसंबर को सुनवाई हो सकती है।

सवाल बड़े गंभीर हैं, प्रधानमंत्री जी अपने फैसले से पीछे हटते हैं तो उनकी पार्टी और उनकी सरकार की साख पर बट्टा लग सकता है। कोई कुछ भी कहे परन्तु फैसला तो देश की बड़ी बीमारी (काला धन) के ऑपरेशन जैसा है। इससे खात्मा मरीज का नहीं कैंसर का होगा मरीज को तो कुछ दिन कष्ट सहन करना पड़ेगा और मोदी की कड़वी दवाई भी खानी पड़ेगी। आगे आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था तथा राजनीतिक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन आएगा जिससे सभी देशवासियों को फायदा होगा। पारदर्शिता और कैशलैश ट्रांजेक्सन से विना कमाए खाने वालों को कमाने की आदत पड़ेगी सरकार का वित्तीय घाटा कम होगा। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चुनाव, इलाज सबके पहुच में हो सकता है। 

सरकार को बहुमूल्य धातु संग्रह, कृषिभूमि की वेतहाशा खरीद, प्लाट और मकानों की अनापशनाप खरीद पर नजर रखनी होगी। रजिस्ट्री आफिस से और लैंड रिकॉर्ड ऑफिस से वेनामी संपत्तियों का व्योरा मांगना होगा। ऐसी संपत्तियों की गुप्त सूचना देने वालों को पुरस्कार इत्यादि देने की व्यवस्था सरकार करदे तो एक महीनें में काला धन वालों की बोलती बंद हो सकती है।

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