दलित कौन हैं और बहुजन कौन हैं
- मान्यवर कांशीराम
(दलित का हाथ हमेशा मांगने वाला रहता है लेकिन जब वह बहुजन बन जाता है तो उनका हाथ देने वाला हो जाता है। हर सूबे में हमारे लोग मांगने वाला हाथ किए हुए हैं। यहां तक कि बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के सूबे में हमारे लोग मांगने वाला हाथ इतना फैलाए हुए हैं कि दे दो भाई कुछ न कुछ दे दो। जबकि बाबा साहब ने तो कहा था कि अपनी दीवारों पर लिख लो कि आप लोग इस देश के हुक्मरान हो, हुक्मरान बनना है तो लेने (हाथ फैलाने) की आदत छोड़ कर थोड़ा थोड़ा देने की आदत डालनी होगी तभी आप वोट वाले लोग नोट वाले लोगों का मुकाबला करके बाबा साहब के सपने को पूरा कर पाओगे, अन्यथा नोट वालों के पास आपके वोट जाते रहेंगे और आप दलित ही बने रहोगे। -‘बहुजन संगठक’ 22-28 जनवरी, 2001 के अंक-2 में प्रकाशित)
जब मैं महाराष्ट्र छोड़कर दिल्ली में आया, उत्तर प्रदेश में आया तो मुझे बार-बार सुनने को मिला कि हमारे नेता बिक गए हैं। हमारे नेता, जिनको बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर ने तैयार किया था वो बिक गए हैं। मैं बड़ा दुखी हुआ कि जब महाराष्ट्र में थोक में बिकते हैं, मैं वहां से चलकर इधर आया और यहां भी कहते हैं कि बिकते हैं। महाराष्ट्र में बाबासाहेब को मानने वाले, मूवमेंट चलाने वाले थोक में बिके और आज भी बिक रहे हैं, और उत्तर प्रदेश में जो थोड़े बहुत उनके साथ थे, वो भी बिकते नजर आए। मेरे पास ज्यादा साधन तो नहीं थे, फिर भी चंद साथियों को तैयार करके मैंने साईकिल को उठाया और सौ साईकिल सवार लेकर मैं उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में घूमा, यह प्रचार करने के लिए कि भई पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हमारे नेता बिक गए हैं। मैंने ये बात सुनी है, समझी है, पढ़ी है कि जैसे लोग होते हैं वैसे ही उनको नेता मिल जाते हैं इसलिए मुझे लगता है कि आपके नेता बिक गए हैं, तो आप लोग भी बिकते होंगे। यह बात दूसरी है कि नेता ज्यादा कीमत में बिकते हैं और आप लोग कम कीमत में। हमें न बिकने वाला समाज बनाना होगा। क्योंकि न बिकने वाले समाज में अगर बिकने वाला नेता होगा तो एक बिकेगा, तो न बिकने वाला समाज दस नेता पैदा कर सकता है। लेकिन अगर समाज भी बिकाऊ है तो फिर उसमें से बिकने वाले ही नेता पैदा होंगे। इसलिए आओ मिलकर अगर बाबासाहेब अंबेडकर की मूवमेंट को आगे बढ़ाना है, मंजिल तक पहुंचाना है तो हमें न बिकने वाले नेता पैदा करने होंगे।
खुशी की बात है कि उत्तर प्रदेश में लोगों ने मेरी बात मानी। देश भर में मैं कोशिश कर रहा हूं, लेकिन उत्तर प्रदेश में लोगों ने मेरी बात बड़े पैमाने पर मानी और जब मैंने 1989 में इलाहाबाद से उपचुनाव लड़ा, तो मैं उधर एक वोट के साथ एक नोट मांगने के लिए दलितों की बस्तियों में घूम रहा था, तब मैं उनसे यही कह रहा था कि भई मेंने बहुत प्रचार किया है, आप लोगों ने सुना है कि हमें न बिकने वाला समाज पैदा करना है, इसलिए मैं चुनाव लड़ रहा हूं और मुझे पता चला है आपकी बस्ती में लोग मुझे वोट देने वाले हैं। जब वोट देने का दिन आएगा तो इलेक्शन कमीश्नर आपके डब्बे (मत पेटियां) लेकर आएगा, उसमें आपको अपने वोट डालने हैं। लेकिन उससे पहले आज मैं अपना डिब्बा (एक वोट के साथ एक नोट वाला डिब्बा) लेकर आपकी बस्ती में आया हूं। इस डिब्बे में भी आपने नोट डालना है। मुझे मालुम है कि आप निर्धन समाज के लोग हैं, इसलिए मैं सिर्फ एक रुपया का एक नोट चाहता हूं। आप लोग मेरे डिब्बे में एक नोट डालें। अगर आपने मेरे डिब्बे में एक नोट नहीं डालना है तो मैं आप लोगों से अपील करता हूं कि आपने मेरे डिब्बे में जिस दिन इलेक्शन कमीश्नर का डिब्बा आएगा, उसमें वोट नहीं डालना है। आपका वोट बेकार जाएगा, अगर मुझे नोट न दिया तो, क्योंकि मुझे धनवानों से मुकाबला करना है। इसलिए आपको वोट के साथ नोट जरुर देना होगा। तो जिस दिन चुनाव खत्म हुआ और इलेक्शन कमीश्नर ने वोटों की गिनती के लिए अपने डिब्बे खोले और मैंने अपना डिब्बा खोला। तो मेरे डिब्बे में मुझे 32 हजार नोट मिले और इलेक्शन कमिश्नर के डिब्बे में काशीराम को 86 हजार वोट मिले। जबकि कांग्रेस पार्टी को मेरे से सिर्फ 6 हजार ज्यादा वोट मिले। कांग्रेस पार्टी को करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद 92 हजार ही वोट मिले। इसलिए जो मैंने प्रचार किया था, उस प्रचार का लोगों को प्रैक्टीकल करने का मौका मिला, और प्रैक्टीकल का नतीजा यह निकला कि जितने मुझे नोट मिले उससे तीन गुना अधिक वोट मिले।
जब मायावती बिजनौर, हरिद्वार से चुनाव लड़ी थीं, वहां पर दोनों जगह उन्हें अच्छे वोट मिले लेकिन वहां कांग्रेस फिर भी जीत गई थी। कांग्रेस ने मीरा कुमार को पार्टी का महासचिव बनाकर उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में यह प्रचार करने के लिए भेजा कि उत्तर प्रदेश के लोगो आप बहुजन समाज पार्टी को वोट क्यों देते हो। अपना वोट क्यों कराब कर रहे हो, आखिर जीतती तो कांग्रेस पार्टी है। जब कांग्रेस बुरी तरह से हारने लगी तो फिर वो नहीं कह सकी कि आखिर जीतती तो कांग्रेस ही है। इसके बाद उनका प्रचार चला कि जब अंबेडकर को मानने वाले लोग अंत में हार कर गांधी जी के चरणदास बनकर हमारे चरणों में (कांग्रेस में आकर) काम कर रहे हैं इसी तरह ये लोग (बहुजन समाज पार्टी वाले) भी एक न एक दिन हमारे चरणों में आ जाएंगे उस दिन इन लोगों का खाता भी नहीं खुलेगा। जून 1988 में ऐसा कहना शुरु हुआ। लेकिन जब एक साल बाद जून 1989 में लोकसभा व उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए तो उत्तर प्रदेश से बहुजन समाज पार्टी के दो एम.पी. और 15 एम.एल.ए. बने और पार्टी को मान्यता प्राप्त हुई। उसके बाद बीएसपी पार्टी निरंतर आगे बढ़ती रही है यह आप सब लोग जानते हैं।
लेकिन मैं कहना क्या चाहता हूं कि हम लोगों ने इस बात को समझकर कि हमारा समाज निर्धन समाज है। हमारा समाज मेहनतकश लोगों का समाज है, लेकिन इस देश में इस समाज व्यवस्था के चलते, जो मेहनतकश लोग हैं वो मेहनत करते हैं, धन पैदा करते हैं और निर्धन बन जाते हैं मगर उन्हें निर्धन से धनवान बनाना बहुत जरुरी है। इसलिए साथियों, उत्तर प्रदेश में हमारा तजुर्बा बड़े पैमाने पर कामयाब हुआ। आज उत्तर प्रदेश में हमारा समाज बहुत बड़े पैमाने पर न बिकने वाला समाज बना हुआ है। और न बिकने के लिए हम लोगों ने उनको सिर्फ एक जगह पैसा देने की आदत डालने के लिए कहा। इसके लिए मैंने एक जगह नहीं बल्कि जगह-जगह मीटिंगे लेकर अपने लोगों से कहा मेरे पास बेचने के लिए कुछ नहीं है तो मैंने अपनी हर मीटिंग को बेचना शुरु किया। पहले मेरे बजन के हिसाब से 100 मीटिंगें बिकी, फिर मेरी उम्र के हिसाब से मीटिंगे बिकी। इस तरह से मीटिंगे बेच कर हम लोगों ने अपने निर्धन समाज से धन इकट्ठा किया और उस धन को धनवानों का मुकाबला करने के लिए इस्तेमाल किया। इस तरह से साथियों, ये आदत बनती गई।
हो सकता है कि उत्तर प्रदेश के अलावा इधर पहुंचे दूसरे प्रदेशों के लोग भी सुन रहे हों, उनको मैं ज्यादा सुनाना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश की आदत अगर देशभर में फैलती हैं तो वोटों वाला समाज (बहुजन समाज) जीतेगा और नोटों वाला समाज (मनुवादी समाज) हारेगा। अगर आप नोटों वाले समाज की जीत को रोकना चाहते हैं, वोटों वाले समाज (बहुजन समाज) को जिताना चाहते हैं तो थोड़ा-थोड़ा धन इकट्ठा करना बड़ा जरुरी है। पिछले जन्म दिन पर मायावती जी ने अपील की तो, 85 लाख रुपया उत्तर प्रदेश के लोगों ने इनको नोटों की शक्ल में दिया। मैंने उसको उड़ीसा और बिहार में इस्तेमाल किया जिससे कुछ बात उधर भी आगे बढ़ी। उत्तर प्रदेश में कभी भी चुनाव हो सकता है और अभी भी जो सरकार चल रही है वो हेराफेरी के कारण चल रही है। मैंने मायावती जी से कहा कि आपका जन्म दिन आया है। उत्तर प्रदेश के लोगों से अपील करें कि इस जन्म दिन के मौके पर जरुर कुछ न कुछ निर्धन समाज जितना दे सकता है उतना धन देने की कोशिश करे। मैंने इनसे कहा कि पिछली बार अपील की तो 85 लाख रुपया इकट्ठा हो गया। तब 85 लाख रुपया तो उड़ीसा और बिहार पर खर्च हुआ है, इसलिए शायद उत्तर प्रदेश के लोगों की अब धन देने की ज्यादा दिलचस्पी ना हो। लेकिन अगर वे मूवमेंट को ध्यान में रखते हैं तो उनकी दिलचस्पी ज्यादा होनी चाहिए, अगर वे उत्तर प्रदेश का हित ही ध्यान में रखते हैं तो उनकी दिलचस्पी कम होगी, लेकिन अब तो उत्तर प्रदेश में चुनाव कभी भी हो सकता है, इसलिए निर्धन समाज का धनवानों का मुकाबला करने के लिए उत्तर प्रदेश के बहुजन समाज को तैयार करें।
मुझे लगता है कि 85 लाख की बजाय आपको एक करोड़ रुपये तक मूवमेंट के लिए जन्म दिन के मौके पर मिल तकता है, ऐसा मेरा अंदाजा था। मैंने मायावती जी से पूछा कि आपको क्या लगता है। वे बोलीं कि कहीं लोग थक न गए हों क्योंकि मैं हमेशा उनसे थोड़ा-थोड़ा पैसा इकट्ठा करती रहती हूं ! पता नहीं एक करोड़ इकट्ठा हो सकेगा या नहीं। मैंने इनसे कहा कि जिनसे हमारा मुकाबला है उन पार्टियों के तो 10-12 सेठिए काफी हैं हजारों करोड़ रुपया इकट्ठा करने के लिए, लेकिन हमारे पास तो करोड़ों लोग हैं। अगर करोड़ों लोग एक करोड़ भी इकट्ठा कर लेते है तो उस धन से हम हजारों करोड़ का मुकाबला कर पाएंगे। 10-12 सेठियों का हजारों करोड़ रुपया और करोड़ों लोगों का 1-2 करोड़ रुपया भी उनका मुकाबला कर सकता है और आज तक हम लोगों ने मुकाबला करके दिखाया है। तभी तो बात आगे बढ़ी है। इसलिए मुझे लगता है कि बहुजन समाज के लोग इस बात को समझकर और न बिकने वाले लोग जरूर आपको एक करोड़ रुपया दे सकेंगे, थकावट के बावजूद। जब मैंने 14 जनवरी की शाम को पूछा, इन्होंने बताया कि एक करोड़ पार कर गए हैं, फिर मैंने सोचा कि थकावट के बावजूद जब ये एक करोड़ पार कर गए हैं तो जन्म दिन तो कल (15 जनवरी को) है। तो जब आज (15 जनवरी को) मैंने दोपहर को पता किया तो बताया कि हम दो करोड़ पार कर गए हैं। इसलिए साथियों यो जन्म दिन सिर्फ खाने-पीने के लिए नहीं हैं। जन्म दिन तो बहाना है। इस मूवमेंट को आगे बढ़ाने के लिए हम जितनी कोशिश कर तकते हैं आप लोगों ने की है, हम लोग करेंगे। और मुझे भरोसा है इसलिए मैं रिस्क ले लेता हूं। जिस तरह पूरे देश में हमारा कारोबार बढ़ चुका है, पार्टी नेशनल बन गई है, कारोबार सारे देश में बढ़ गया है, सारे देश में भी हमारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, उनके लिए मैंने दफ्तर वालों को बोला कि उनको निमंत्रण दो ताकि वो आएं और देखें कि उत्तर प्रदेश में हमने अपने समाज में जो सुधार पैदा किया है वैसा सुधार हर प्रदेश में हो और हर प्रदेश में हमारी बात तेजी से आगे बढ़े।
हमारा समाज जो दलित बनकर रह गया है, दलित का मतलब beggar (भिखारी) है। क्योंकि दलित का हाथ हमेशा मांगने वाला रहता है लेकिन जब वह बहुजन बन जाता है तो उनका हाथ देने वाला हो जाता है। इसलिए दलितपन (मांगने की आदत) छोड़ो और बहुजन (देने वाले) बनो। उससे वोट बैंक भी बढ़ेगा और नोट बैंक भी बढ़ेगा। इसलिए साथियों, इस मौके पर आप लोगों से अपील करने के लिए मैं इधर खड़ा हुआ हूं। मैंने अपनी बात आप लोगों के सामने इस भरी महफिल में रखना जरूरी समझा और इधर जो धन देने वालों को धन्यवाद देने के लिए मैं आपके सामने खड़ा हुआ हूं। जिस तरह से आप लोगों ने थकान महसूस नहीं की, तो जब तक हम मंजिल तक नहीं पहुंचते हैं तब तक थकान महसूस नहीं करेंगे। हम उत्तर प्रदेश में मायावती जी को दो बार मुख्यमंत्री बना चुके हैं। दो बार तो बहुत से और लोग भी मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन तीन बार कोई नहीं बना है। इसलिए मायावती तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और उत्तर प्रदेश में अपने अधूरे कार्यों को पूरा करें और पूरे देश में बहुजन समाज को आगे बढ़ाने के लिए मेरी सहायता करें, क्योंकि इस मौके पर भी मैं आठ सूबों में लगा हुआ हूं और आठ सूबों में जो मुझे दिक्कत महसूस हो रही है, उसे मैं ही जानता हूं। हर सूबे में हमारे लोग मांगने वाला हाथ किए हुए हैं। यहां तक कि बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के सूबे में हमारे लोग मांगने वाला हाथ इतना फैलाए हुए हैं कि दे दो भाई कुछ न कुछ दे दो।
महाराष्ट्र की यह आदत दक्षिण भारत में भी तेजी से फैल गई है। इसलिए उधर एक तो इस आदत को रोकना है और दूसरा जो दलितपन होकर हाथ फैलाया हुआ समाज है उसको बहुजन बनाकर उनके हाथ को देने वाला करना है। इसलिए मैंने उन सब लोगों को भी इधर बुलाया है। उनसे भी मैं अपील कर रहा हूं कि भाई उत्तर प्रदेश से सीखने की आप लोग भी कोशिश करें। अपने प्रदेश में जाकर बहुजन समाज बनाएं। जाति के आधार पर तोड़े हुए लोगों को जोड़कर बहुजन बनाएं और जो उनकी बिकने की आदत है उस आदत को रोकें और न बिकने वाला समाज बनाकर उनके वोट का सही इस्तेमाल करके बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर के सपनों को साकार करने की कोशिश करें। क्योंकि महाराष्ट्र में जब मुझे रहने का मौका मिला तो महाराष्ट्र के महार भाई कहा करते थे कि बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने हमें कहा था कि 'जाओ अपनी दीवारों पर लिख लो कि हमें इस देश की शासनकर्ता जमात बनना है', हमें इस देश के हुक्मरान बनना है। लेकिन आज जब मैं उनको कहता हूं तो वो गर्दन नीची कर लेते हैं। क्योंकि उनको मांगना पड़ता है। मांगने के लिए वो बाबासाहेब को ठुकरा चुके हैं, इसलिए पहले मुझे डर लग रहा था कि जब बाबासाहेब को महाराष्ट्र में महार और उत्तर प्रदेश के जाटव भाईयों ने ठुकरा दिया है तो अब कही सब ने ठुकरा दिया तो फिर हम गूवमेंट को कैसे रिवाईव कर सकेंगे। लेकिन खुशी की बात है कि महाराष्ट्र के महार अब थोड़ी-थोड़ी बात सुनने को तैयार हुए हैं और जब मायावती मुख्यमंत्री बनी तो जाटव भाई भी सोचने लगे हैं। तो साथियों इन सारी चीजों से हमें सबक सीखना होगा। इन सब चीजों से सबक सीखकर इसी तरह से मूवमेंट को आगे बढ़ाने में मेरा और मायावती जी का हौंसला बढ़ाते रहेंगे। हमें आगे बढ़ने में मदद करेंगे। आगे के लिए ऐसी अपील करते हुए जो आप लोगों ने अब तक सहयोग दिया हैं, धन दिया है उसके लिए आपका धन्यवाद करते हुए मैं आप लोगों से विदा लेता हूं।
.....