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नोटबंदी के अर्थशास्त्र से राजनीति डगमगाई- अनुज

अनुज 

काले धन के खिलाफ मुहिम में पुराने बड़े नोटों को बंद करने के फैसले के बाद रविवार को प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य में कुछ और कड़े कदम उठाए जाने का संकेत दिया।

प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा, 'मेरे दिमाग में भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए और भी योजनाएं हैं। हम बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यह भ्रष्टाचार, काले धन को समाप्त करने के लिए सबसे बड़ा कदम है। अगर कोई धन लूटा गया है और देश से बाहर जा चुका है तो उसका पता लगाना हमारा कर्तव्य है। कैबिनेट की पहली बैठक से ही यह स्पष्ट हो गया था, जब मैंने काले धन पर एसआइटी बनाई थी। मुझे आजादी के बाद से चल रहे भ्रष्टाचार को उजागर करना है। इसके लिए अगर एक लाख नौजवानों की भर्ती करनी पड़ी तो वो भी करूंगा। मैंने ईमानदार लोगों के समर्थन की आशा में यह मुहिम शुरू की थी। मुझे उनकी शक्ति पर पूरा भरोसा है। सभी कह रहे हैं कि समस्या हो रही है, लेकिन फिर भी खुश हैं क्योंकि इससे देश को फायदा होगा।'

काला धन खुलासा योजना

हमारे देश में सालाना 90 लाख करोड़ रुपये की काली कमाई होती है, जिसकी वजह से कई गुना ज्यादा धन एकत्र हो जाता है। कमाई में और धन में अंतर होता है। अब 90 लाख करोड़ रुपये में से मात्र 65 हजार करोड़ की काली कमाई का खुलासा हुआ है, तो समझा जा सकता है कि यह प्रतिवर्ष होने वाली काली कमाई का एक प्रतिशत से भी कम है और देश में जो काला धन है, उसका दशमलव दो या दशमलव तीन फीसदी के आसपास ही है।

दावा किया जा रहा है कि इस वर्ष की यह योजना अब तक की सबसे बड़ी काला धन खुलासा योजना है। लेकिन 1997 में 33 हजार करोड़ काले धन की घोषणा हुई थी, जबकि तब देश में तीन लाख करोड़ रुपये की काली कमाई होती थी। यानी देश में तब जितनी काली कमाई होती थी, उसके करीब दस प्रतिशत काली कमाई की घोषणा हुई थी, जबकि इस बार जो घोषणा हुई है, वह काली कमाई की एक फीसदी से भी कम है। 1997 में सरकार को 9,760 करोड़ रुपये का कर मिला था, जबकि कर की दर ज्यादा होने से इस बार सरकार को 29,362 करोड़ रुपये मिलेंगे। अगर देश में पैदा होने वाले काले धन के दस फीसदी का भी खुलासा होता, तो नौ लाख करोड़ रुपये के काले धन का खुलासा होता, जिससे सरकार को करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की कमाई होती। इसकी तुलना में 29 हजार करोड़ रुपये की कर उगाही बहुत कम है। इसलिए इसका काले धन की अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला।

गौरतलब यह भी है कि 1997 में करीब तीन लाख लोगों ने अपनी काली कमाई का खुलासा किया था, लेकिन अभी करीब 64 हजार लोगों ने ही घोषणा की है। जबकि पिछले दो दशक में काले धन की कमाई करने वाले लोगों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। पिछले दिनों हुए बड़े-बड़े घोटालों में लोगों ने दसियों हजार करोड़ रुपये कमाए हैं। ऐसे में, कम से कम छह-सात लाख लोगों को अपनी काली कमाई की घोषणा करनी चाहिए थी। लगता है कि काली कमाई करने वाली बड़ी मछलियां इससे बच रही हैं।

नोटबंदी योजना 

भारतीय अर्थ व्यवस्था विश्व के ऊँचे व्याजदर वाले देशों में से एक है, जहाँ उचे मूल्य की मुद्राएं भी चलन में हैं। भारत के पास इस समय तक़रीबन 100 लाख करोड़ रूपये का बैंक डिपोसिट है तथा 17 लाख करोड़ रूपये की मुद्रा नकदी के रूप में चलन में है। इनमें से 15 लाख करोड़ रूपये 500 तथा 1000 रूपये के नोटों के रूप में हैं। ऊँचे मूल्य के नोटों को चलन से बहार करने का परिणाम यह होगा कि बैंकों के सिस्टम में बहुतायत में रकम आएगी जिसके कारण अगले छह: महीनों के अंदर व्याज दरों में कमी आने का अनुमान है। कम व्याज दरों और पूंजी की लगत में कमी आने से इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भारी निवेश आने की उम्मीद है। परिणामस्वरूप बचत वाली राशि का उपयोग घरेलू अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में किया जा सकता है। नोटबंदी के कदम से काले धन से चलने वाली गतिविधियां हतोत्साहित होंगी। नकली मुद्रा चलन से बहार होगी, भृष्टाचार पर लगाम लगेगी तथा आतंकी गतिविधियों को मिलने वाले काले धन पर सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा। यह कदम भौतिक बाजारों और काले धन की कीमत पर वित्तीय बाजारों को तेजी देगा। चुनावों में काले धन के प्रयोग में भारी कमी आ सकती है, यदि चुनाव के लिए अलग राष्ट्रीय कोष निर्मित हो जाय तथा सभी चुनाव सरकारी खर्चे पर होने लगें, तो यह भ्रष्टाचार मुक्त और विकास युक्त भारत बनाने की दिशा में एक क्रन्तिकारी फैसला सावित हो सकता है।

कालाधन कैसे पैदा होता है?

कालाधन है क्या और आता कहाँ से है इसके लिए अनेक कारक उत्तरदायी हैं । 

प्रथम, करों और शुल्कों मे वृद्धि लोगों को करों की चोरी करने के लिए बाध्य करती है। इसी कारण लोग अपनी आय छिपाते हैं। यदि बढ़ती महंगाई एवं मुद्रा के बाजार मूल्य के अनुरूप कर-व्यवस्था सरल होती तो सभवत: सरकार को अधिक मात्रा में राजस्व प्राप्त होता । 

द्वितीय, एक ही प्रकार के उत्पादकों के लिए अनेक बार उत्पाद शुल्क के लिए विभिन्न दरें पाई जाती हैं।

तृतीय, कालेधन का एक और कारण सरकार की मूल्य नियंत्रण नीति है । नियंत्रण के उपाय जितने अधिक कठोर होंगे तथा अर्थव्यवस्था जितनी अधिक नियंत्रित होगी उतना ही उसके उल्लंघन का प्रयास किया जाएगा जिससे गुप्त धन संचय, जालसाजी, कृत्रिम दुर्लभता बढ़ेगी तथा कालाधन पैदा होगा।

चौथा कारण कोटा व्यवस्था भी है। आयात का कोटा, निर्यात का कोटा एवं विदेशी विनिमय का कोटा, आधिमूल्य पर बेचकर अधिकांश दुरुपयोग किया जाता है । 

पाँचवा, वस्तुओं की दुर्लभता एवं जन वितरण प्रणाली में व्याप्त दोषों के कारण भी कालाधन पैदा होता है । जब आवश्यक वस्तुएँ दुर्लभ हो जाती हैं तो लोगों को उनके लिए नियन्त्रित मूल्य से अधिक कीमत देनी पड़ती है जिससे कारण कालाधन पैदा होता है। 

छठा, मुद्रास्फीति के कारण भी कालेधन का जन्म होता है।

सातवां कारण, देश में चुनावों मे होने वाले हजारों-करोडों रुपये का व्यय है। चूंकि कानून उम्मीदवार के निर्वाचन व्यय को सीमित किया हुआ है एवं कम्पनियों को राजनीतिक पार्टियों को चुनाव के लिए चन्दा देने की अनुमति नहीं दे रखी है। चुनाव का अधिकांश व्यय कालेधन से किया जाता है। इस तरह, कालेधन का प्रमुख स्रोत व्यवसायियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला चंदा भी है। जो लोग चुनाव में कालाधन लगाते हैं वे राजनैतिक संरक्षण व आर्थिक रियायतों की आशा रखते हैं जो उन्हें वस्तुओं के कृत्रिम नियन्त्रण तथा वितरण साधनों मे शिथिलता आदि द्वारा राजनैतिक अभिजनों को सहमति व मौन अनुमति से प्राप्त होती है। ये सारी विधियाँ कालापन पैदा करती है । 

आठवाँ कारण, अचल सम्पत्ति का क्रय-विक्रय है । कृषि भूमि पर रची वस्तियों स्थापित करने वालों द्वारा जो पंजीकरण दस्तावेजा में क्रय विक्रय मूल्य दर्शाया जाता है, वह बाजार मूल्य व वास्तविक मूल्य से बहुत कम होता है। इससे भूमि बेचने वाला पूँजी लाभ पर कर देना अपवंचित करता है । अनुमानत: सम्पत्ति के अवैध क्रय-विक्रय से 2,000 करोड़ रुपया प्रति वर्ष कालाधन के रूप में पैदा होता है।

देश में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है। नेता, अफसरशाह, व्यवसायी-व्यापारी की चौकडी देश की अर्थव्यवस्था, कानून-नियमों के साथ खुला खेल, खेल रहे हैं। पिछले एक दशक में लाचार व्यवस्था ने इसको जो खाद पानी मुहैया करायी है और यह जिस तेजी से पनपा है यह अदभूत है।

यदि देश के सारे कालेधन का 60 प्रतिशत भी बाहर आ जाए तो न केवल हम कर्ज मुक्त होंगे बल्कि हमारे विकास की रफतार भी तेज होगी। लेकिन इसके विपरीत इसने हमें कर्जे में लाद रखा है और यह विनाशकारी गतिविधियों का कारण बन रहा है। आज अधिकांश व्यक्ति इस भ्रष्टाचार में प्रत्यक्ष या आंशिक रूप से भागीदार है।

कर योग्य आमदनी पर आयकर न चुकाना, आज के व्यावसायिक आमदनी पर आयकर न चुकाना, आज के व्यावसायिक युग में व्यवसायियों की व्यापारिक नीति का मुख्य हिस्सा बन गया है। ऐसे माहौल में किसी एक को भ्रष्ट बताने की अपेक्षा यह जानना बेहद आवश्यक है कि काली कमाई का काला साम्राज्य किस खतरनाक मोड तक आ पहुँचा है।

25 करोड़ हैं जन-धन खाते

देशभर में जन धन के 25 करोड़ से अधिक खाते हैं। इनमें 23 प्रतिशत खातों कोई धनराशि जमा नहीं है जबकि शेष खातों में 45,600 करोड़ रुपए से अधिक राशि जमा थे। मप्र में ही जमा हुए 1200 करोड़ से ज्यादा नोटबंदी के बाद से मप्र के ही सवा करोड़ जन-धन खातों में पहले पांच दिनों में ही 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा धन जमा हो चुका है। आशंका है कि यह कालाधन हो सकता है।

कालेधन का आंकड़ा

वर्ष 1994-95 में कालेधन का आंकड़ा 110 हजार करोड़ रुपये हो गया था। जबकि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) राशि 190 हजार करोड़ रुपये ही थी। एक तरफ कालेधन का शासन बढ़ता जा रहा है तो दूसरी ओर भारत सरकार को वित्तीय घाटा भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। एवं ब्याज अदायगी भी ऋण लेने के कारण एक संकट बनती जा रही है।

आयकर विभाग ने किसी दूसरे के काले धन को अपने खाते में जमा कराने को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। विभाग ने ऐसे मामलों में बेनामी लेनदेन कानून को लागू करने का फैसला किया है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर भारी जुर्माने और सात साल तक कड़े कारावास का प्रावधान है। 

इसी संबंध में अधिकारियों ने कहा है कि विभाग द्वारा कालेधन के संदिग्ध इस्तेमाल को लेकर की गई 30 जगहों पर छापेमारी और 80 से अधिक सर्वे में 200 करोड़ रुपये के कालेधन का पता चला है। आठ नवंबर के बाद से इन ऑपरेशनों में करीब 50 करोड़ रुपये जब्त किए गए हैं।

सूत्रों ने बताया कि आयकर विभाग के अधिकारियों ने देशभर में ऐसे संदिग्ध बैंक खातों की पहचान की मुहिम चलाई है, जिसमें आठ नवंबर के बाद 500 और 1000 रुपये के नोटों में बड़ी रकम जमा की गई। मामला सही पाए जाने पर बेनामी संपत्ति लेनदेन कानून, 1988 के तहत मुकदमा चलेगा। इस कानून को इसी साल एक नवंबर को प्रभावी बनाया गया था। यह कानून आयकर विभाग को जमा राशि को जब्त करने और दोनों (जमाकर्ता और जिसका वास्तविक पैसा है) के खिलाफ मुकदमा चलाने का अधिकार देता है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने आयकर विभाग से ऐसे लेनदेन पर करीबी नजर रखने को कहा है। सूत्रों ने बताया कि इस बारे में कुछ उदाहरण सामने आए हैं और विभाग बेनामी कानून के तहत नोटिस जारी करने की तैयारी में है।

बेनामी संपत्ति पर वार 

कालेधन का आंकड़ा केंद्र सरकार कालाधन के बाद अब बेनामी संपत्ति पर वार करने जा रही है। इनकी जांच के लिए 200 टीमें बनाई गई हैं। देशभर में हाईवे किनारे और औद्योगिक तथा व्यावसायिक भूखंडों की जांच शुरू हो गई है। बेनामी लेन-देन संशोधन कानून 2015 के तहत इन संपत्तियों को जब्त किया जा सकता है। वित्त मंत्रालय के अनुसार बेनामी संपत्ति संशोधन कानून इसी माह से प्रभावी हो चुका है। इसमें बेनामी संपत्ति पाए जाने पर केस दर्ज किया जाएगा। दोषी पाए जाने पर संपत्ति जब्ती के साथ सात साल कैद की सजा हो सकती है।

कौनसी संपत्ति बेनामी होती है?

जिसका पैसा कोई और देता है और खरीदी किसी और के नाम से जाती है। नए कानून में दोनों पक्षों पर कार्रवाई का प्रावधान है। पहले तीन वर्ष की जेल और जुर्माना या दोनों होने का प्रावधान था। संशोधित कानून में 7 साल कैद की सजा का प्रावधान है।

अधिकतर राजनेताओं द्वारा चुनाव के समय बटोरा जाता है काला धन

नोटबंदी के कारण आम जनता को जरूर परेशानी हो रही है, लेकिन सबसे ज्यादा परेशान हुए हैं हमारे राजनेता। शायद ही कोई राजनेता होगा, जिसने अपने घर में थोड़ा बहुत काला धन छिपाकर नहीं रखा होगा। यह धन चुनाव के समय बटोरा जाता है, क्योंकि चुनाव आयोग ने प्रचार की सीमा बांध रखी है, जिसमें काम चलता नहीं है। सो हमारे राजनेताओं को उद्योगपतियों के पास झोली फैलानी पड़ती है। जितने बड़े राजनेता, उतनी ही गहरी उसकी झोली। उधर उद्योगपति देखते हैं कि चुनावी हवा का रुख किस तरफ है। उसी के अनुपात में वे काला धन बांटते हैं। यह धन काला इसलिए होता है, क्योंकि इसका हिसाब आयकर वालों को नहीं दिया जा सकता और न ही कंपनी की किताबों में इसका हिसाब रखा जा सकता है। मामूली सांसद भी अपना चुनाव प्रचार करने के लिए काला धन इकट्ठा करते हैं, और चुनाव समाप्त होने के बाद जो पैसा बच जाता है, उसे ऐसी चीजों पर खर्च किया जाता है, जिनमें काला धन आसानी से छिप जाता है, जैसे-जमीन, कोठियां, जेवर, विदेशों में छुट्टियां इत्यादि।

अब जब अचानक प्रधानमंत्री ने विगत आठ नवंबर की रात को एलान किया कि बारह बजे के बाद न हजार रुपये के नोट चलेंगे और न ही पांच सौ के, तो यह सोचकर हमारे जन प्रतिनिधियों के पसीने छूट गए कि अब उनके खजानों का क्या होगा। उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव इतने पास आ गए हैं कि राजनेताओं के घरों में काफी धन इकट्ठा हो चुका होगा। यह धन अब पूरी तरह रद्दी बन चुका है, क्योंकि न इसे बैंक में जमा किया जा सकता है, न ही जमीन-जायदाद खरीदने के काम आ सकता है। सुना है, पिछले कुछ दिनों में मंदिरों में काफी दान हुआ है। काला धन छिपाने का शायद यही तरीका रह गया था।

लेकिन दान करने के बाद राजनेताओं की परेशानियां कम नहीं हुई होंगी, सो खूब हल्ला मचाने में लग गए हैं सब। दिल्ली के एक आम जलसे में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए कि उन्होंने यह चाल सिर्फ इसलिए चली है, क्योंकि वह जनता से पैसा हड़प कर अपने अमीर दोस्तों को देना चाहते हैं। इसी तरह का आरोप राहुल गांधी ने भी लगाया, यह भूलते हुए कि कांग्रेस के दौर में उनके बहनोई के क्या कारनामे सामने आए थे।

जनता का पैसा धीरे-धीरे जनता को मिल ही जाएगा। इसमें कुछ असुविधा होगी। लेकिन जिनके पास काला धन था, वह वापस मिलने वाला नहीं है, सो खूब हंगामा हुआ है और होता रहेगा। संसद के अंदर हंगामा किया सांसदों ने और संसद के बाहर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने। भ्रष्टाचार आंदोलन के इस सरदार ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में अपनी भूख हड़ताल की याद दिलाई, पर यह नहीं बताया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने प्रचार में एक साल में पांच सौ करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर डाले हैं। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? उन्होंने यह भी नहीं बताया कि पंजाब और गोवा में उनका जो चुनाव प्रचार शुरू हुआ है, उसके लिए इतना पैसा कहां से आ रहा है। न ही ममता बनर्जी ने बताने की कोशिश की कि चुनावों में क्या वह पैसे का रंग देखकर खर्च करती हैं। इस हम्माम में सब नंगे हैं, लेकिन इसका राजनीतिक खामियाजा नरेंद्र मोदी को भुगतना पड़ेगा।

उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में नोटबंदी के फैसले का चुनावी राजनीति पर असर 

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने में अब थोड़ा ही समय बाकी है और इसी बीच केंद्र सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले की देशभर में चर्चा हो रही है। ऐसे में यह फैसला निश्चित ही उत्तर प्रदेश की राजनीति पर असर डालने वाला है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक आगामी विधानसभा चुनाव में यह फैसला बीजेपी की ताकत को बढ़ाने वाला है।

समाचार एजेंसी रॉइटर्स के इस आकलन के मुताबिक नोटबंदी के फैसले से भले ही लोगों को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ी हो लेकिन अनुमान है कि यह बीजेपी को सिर्फ शॉर्ट टर्म में ही नुकसान करेगा। केंद्र सरकार के इस फैसले ने तमाम विपक्षी दलों को चुनाव के लिए नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। कोई भी राजनीतिक दल देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य को जीतने की पूरी कोशिश करेगा।

उत्तर प्रदेश की लोकसभा में कुल 80 सीटें हैं और इसीलिए यहां के विधानसभा चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल तक कहा जाता है। वहीं दूसरी तरफ यह अनुमान भी लगाए जा रहे हैं कि नोटबंदी का फैसला लिए जाने के बाद भी राज्य में सभी राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च 40 बिलियन डॉलर तक पहुंचने वाला है।

इसके अलावा राज्य में इस फैसले के बाद अभी तक मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। भारत की 65 फीसद आबादी 35 साल की उम्र से कम की है और मोदी सरकार के इस फैसले ने युवाओं के बीच काफी वाहवाही बटोरी है लेकिन बीजेपी की मुश्किलें सिर्फ इसी से ही आसान नहीं हो सकती। वहीं उत्तर प्रदेश कांग्रेस के सीनियर नेता प्रदीप माथुर का कहना है कि उन्हें अब नए सिरे से चुनावी रणनीति तैयार करनी है।

माथुर के मुताबिक बीजेपी के कॉर्पोरेट घरानों से करीबी संबंध हैं और राज्य में पार्टी के कार्यकर्ताओं और सदस्यों की बड़ी तादाद है, ऐसे में नोटबंदी के फैसले का असर बीजेपी के चुनाव प्रचार या उसकी रणनीति पर किसी भी तरह से नहीं पड़ने वाला। नरेंद्र मोदी अगर 2019 में दोबारा अपनी पार्टी की सरकार बनाना चाहते हैं तो देश की सबसे बड़ी चुनावी रणभूमि को जीतना भी उनके लिए जरूरी है।

राज्य सभा में बीजेपी अभी अल्पमत में है और पार्टी वहां पर तभी मजबूत हो सकती है जब वह उत्तर प्रदेश में मजबूत हो। कार्नियग एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस (वाशिंगटन) संस्थान के साउथ एशियन ऐक्सपर्ट मिलन वैश्नव के मुताबिक, आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी ने यह अनुमान लगाया है कि इस फैसले से सभी को परेशानी होगी लेकिन बीजेपी आखिर में इससे मजबूत ही होगी।

इसके अलावा विभिन्न दलों के चुनाव प्रचार अभियानों की फंडिंग का आकलन करने वाले दिल्ली के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक, बीजेपी का राज्य में अपनी जरूरतों का दो-तिहाई खर्च बिना कैश के भी पूरा हो जाएगा और दूसरी तरफ विरोधी दलों अपनी कैंपेनिंग के लिए 80 से 95 फीसद तक कैश पर निर्भर हैं। ऐसे में यह भी बीजेपी के लिए यह फायदे की स्थिति है।

कांग्रेस के प्रदीप माथुर के मुताबिक नोटबंदी से पार्टी को राज्य में छोटी-छोटी रैलियों से अपना काम चलाना होगा। वहीं खबरों के मुताबिक नोटबंदी के बाद कई राजनीतिक दलों ने पार्टी कार्यकर्ताओं को बैंकों की लंबी कतारों में नोट बदलने के लिए लगवा दिया है ताकि छोटे स्तर पर पैसा इक्ट्ठा कर किसी भी तरह की जांच से बच सकें।

वहीं दूसरी तरफ नोटबंदी का असर इवेंटमैनेजमेंट कंपनियों पर भी पड़ा है जिनका काम चुनावी समय पर काफी अच्छा रहता है। राकेश प्रताप रैलियों के लिए लाउडस्पिकर्स, एसी और सुरक्षा का इंतजाम मौहिया कराने का काम करते हैं। उनका कहना है कि इस बार बीजेपी के अलावा कोई भी पार्टी बड़ी रैली नहीं करना चाहती।

बसपा सुप्रीमो मायावती जो कि चुनाव में बीजेपी को बड़ी टक्कर दे सकती हैं उन्होंने नोटबंदी के समय को एक चुनाव में राजनीतिक फायदा लेने के लिए किया गया फैसला बताया है। बसपा के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पार्टी इस बार बड़े पैमाने पर कैंपेनिंग करने के बजाए घर-घर जाकर लोगों से मिलने का काम करेगी। वहीं खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले से बीजेपी के कुछ विधायक परेशान हैं। उनका अनुमान है कि इस फैसले से लोगों को हुई परेशानी से कहीं पार्टी के लिए लंबे समय तक परेशानी न खड़ी हो जाए।

शीतकालीन सत्र में संयुक्त विपक्ष का सामना करने के लिए मोदी सरकार आत्मविश्वास से लबरेज 

बुधवार 8.11.2016 से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में नोटबंदी पर संयुक्त विपक्ष का सामना करते समय मोदी सरकार आत्मविश्वास से लबरेज दिखने की कोशिश कर रही है। सूचना प्रसारण मंत्री वैंकेया नायडू और ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल संसद में विपक्ष को ललकार रहे हैं। लेकिन फिर भी बीजेपी के अंदर नोटबंदी के मुद्दे को लेकर आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा है; परन्तु बीजेपी कंट्रोल रूम में बैठे चुनावी आब्जर्वर्स को देशभर से बैंक और एटीएम की लाइन में लगे लोगों से उतना उत्साहवधर्क संदेश नहीं मिल पा रहा है, जिससे पार्टी के अंदर आत्मविश्वास मजबूत हो।

भारी पड़ रही है नोटबंदी को लागू करने की बदइंतजामी

प्रधानमंत्री के नोटबंदी के साहसिक फैसले को लागू करने की बदइंतजामी वित्त मंत्री के आदर्शवाद पर भारी पड़ रहा है। वित्त मंत्री ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि देश कालेधन के साथ नहीं सो सकता। लेकिन सवाल ये नहीं है कि देश कालेधन के साथ रहना चाहता है या नहीं, बल्कि सवाल ये है कि छह महीने से नोटबंदी की तैयारी कर रही सरकार ने आम गरीब, किसान ,मजदूर की परेशानियों को न भांपकर उन्हें मुसीबतों के समुद्र में क्यों धकेल दिया? सवाल कालेधन पर पाबंदी का नहीं है, सवाल इस फैसले के बिना तैयारी लागू करने पर है?

संसद के अंदर और बाहर नोटबंदी के फैसले पर सरकार आत्मविश्वास से लबरेज दिखे यह बीजेपी की रणनीति है। लेकिन अंदर की कहानी में संशय और बेचैनी भी है। संशय इस बात का है कि समय रहते बैंकों के बाहर भूखे-प्यासे लाइन में लगे लोगों की परेशानी हल हो पाएगी क्या? और बैचैनी इस बात की भी है कि अगर नहीं हुआ तो क्या होगा?

बीजेपी का फीडबैक: आर्थिक सत्याग्रह से पैदा हुई परेशानियों से मिल रहे फीडबैक को बीजेपी हाईकमान दो तरीके से डीकोड कर रहा है। देशभर से आ रही प्रतिक्रिया पर नजर रख रहे कैबिनेट के एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि गांव देहात से परेशानियों और दिक्कतों की तमाम खबरों के वाबजूद लोग फैसले की नियत पर सवाल नहीं उठा रहे।

सरकार की मंशा पर कोई सवाल नहीं उठा रहा और लोग मोटे तौर पर प्रधानमंत्री के फैलने के साथ हैं। यानि समय रहते अगर नकदी की समस्या को सुलझा लिया गया तो ये मास्टरस्ट्रोक साबित होगा। सरकार के आत्मविश्वास की बड़ी वजह इस फीडबैक का आना है। लेकिन ये आत्मविश्वास कब तक रहेगा कोई नहीं जानता, क्योंकि अपना काम धंधा छोड़ लाइनों में लगे लोग, अपने छोटे मोटे उद्योग- धंधे चौपट करा चुके रेहड़ी और ठेले वालों का आदर्शवाद और धैर्य पेट की भूख पर कब तक जिंदा रहेगा कोई नहीं जानता।

इसलिए सरकार के इस आंकलन से बीजेपी संगठन उतना आश्वस्त नहीं है। अगर इतना ही आश्वस्त होते तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस बैंक और एटीएम से जूझ रहे लोगों की दिक्कतें कम करने के लिए केन्द्र के फैसले से दो कदम आगे जाकर मंत्रिमंडलीय समिति का गठन नहीं करते।

नफा-नुकसान का आंकलन कर रही बीजेपी की मनोस्थिति समझने में यह टिप्पणी कारगर साबित हो सकती है। बीजेपी के एक नेता के मुताबिक, “मिसाइल के चलने पर उसकी केवल गति नियंत्रित की जा सकती है उसके गिरने को रोका नहीं जा सकता। तय ये होना है कि यह दुश्मन पर गिरेगा या अपने आप पर।”

संसद में सरकार के आत्मविश्वास की परीक्षा के लिए हमने बीजेपी के दस सांसदों से नोटबंदी के प्रभाव का आंकलन जानना चाहा तो बीजेपी सांसदों की चिंताएं तीन स्तरों पर दिखी, जो बीजेपी की भी चिंता है? तो आखिर क्या है बीजेपी की चिंता और उम्मीद की किरण?

पांच राज्यों की चुनावी चिंता

बीजेपी की और सरकार की तात्कालिक चिंता पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। लोकसभा के बड़े राजनैतिक कथानक के लिए अभी ढाई साल का समय है। यूपी और पंजाब से चुनकर आए बीजेपी के चार सांसदों की चिंता ये थी कि नोटबंदी का फैसला लागू कर सरकार ने बड़ा राजनैतिक रिस्क लिया है। लेकिन ये तय नहीं है कि इस फैसले से जातियों की दीवारें टूट पाएंगी?

क्या दलित या मुस्लिम समुदाय कालेधन के खिलाफ सरकार की गई सख्त कार्रवाई से बीजेपी को वोट देने आ जाएगा? उल्टे गरीब, पिछड़े, जिन्हें गांव देहात में कई दिनों के बाद भी अपना ही पैसा शादी ब्याह और फसल के लिए नहीं मिल पा रहा उनका गुस्सा कहीं मतपेटियों तक न पहुंच जाए?

चिंता सिर्फ यही नहीं है, पंजाब जैसे राज्य जहां पैसे का जोर चुनावी हार-जीत को काफी हद तक प्रभावित करता है, वहां संसाधनों की समस्या आप और कांग्रेस के साथ अकाली और बीजेपी को भी होनी है, बशर्ते बीजेपी ने अपने धन सफेद न कर लिए हो।

गोवा जैसे राज्य जहां की आर्थिक व्यवस्था पर्यटन से चलती है वहां, नोटबंदी से पूरे दिसंबर के क्रिसमस और नये साल के पर्यटक सीजन के बैठने की आशंका बढ़ गई है। गोवा से आने वाले बीजेपी नेता चुनावी समय में इसके नफा नुकसान के आंकलन में व्यस्त हो गए है।

राजनैतिक कथानक और आख्यान की लड़ाई

बीजेपी की दूसरी चिंता बड़े मैसेज के पलटने से जुड़ा है। बीजेपी के तीन सांसदों ने माना कि इस फैसले की वजह आर्थिक फायदे की जगह बड़ा राजनैतिक संदेश स्थापित करना था। प्रधानमंत्री का ये फैसला गरीबों और अमीरों के बढ़ते फासले के बीच ब्रांड मोदी की मजबूत पोजिशनिंग कर बीजेपी की राजनीति को उनके इर्द गिर्द बुनने की थी। लेकिन कमजोर और लचर क्रियान्वयन से गुड़ का गोबर होता दिख रहा है।

दूसरा लचर प्रबंधन से प्रधानमंत्री के दूरदर्शी, सक्षम और कुशल प्रशासक की इमेज पर भी सवाल खड़े होने शुरू हो गए है। बीजेपी ये अफोर्ड नही कर सकती, जिसमें ब्रांड मोदी की इमेज कमजोर हो। अमीरों के कालेधन को गरीबों की भलाई में बांटने का कथानक कुप्रबंधन से कहीं उल्टा न पड़ जाए, यह चिंता भी बीजेपी को साल रही है ।

आर्थिक फायदा कितना होगा, ये तो आंकड़े आने के बाद पता चल पाएगा। लेकिन राजनैतिक नुकसान की चिंता से चिंतित बीजेपी की सारी उम्मीद अब "अगर" फैक्टर की कामयाबी पर टिका है।

बीजेपी की सारी उम्मीद अब "अगर" फैक्टर पर टिकी 

यूपी के पिछड़े वर्ग से चुनकर आने वाले एक सांसद ने कहा, गांव देहात में लोग परेशानियों के बाद भी इस बात से खुश हैं, कि मोदी ने सबको बराबर कर दिया है। मोदी ने अमीरों की तिजोरी पर हमला किया है अमीरों की छटपटाहट उनकी भूख, लाचारी पर उन्हें आत्मिक सुख दे रही है। इन सांसद महोदय का मानना है कि गरीबों का ये आत्मिक सुख गेम चेंजर साबित हो सकता है। अगर थोड़े दिन की परेशानी के बाद भी हम हालात काबू में ले आएं। बीजेपी की सारी उम्मीद अब इसी "अगर" फैक्टर पर टिकी हुई हैं। गुजरात से आने वाले एक केन्द्रीय मंत्री की राय थी कि, अगर सरकार दो हफ्ते में हालात पर काबू पा लेती है तो लोग परेशानियां भूलकर इस फैसले के फायदे को ही याद रखेंगे। लेकिन अगर मामला लंबा खिंचा तो राजनैतिक नुकसान होना तय है।

आर्थिक फायदा कितना होगा ये तो आंकड़े आने के बाद देखा जाएगा। लेकिन राजनैतिक नुकसान की चिंता से चिंतित बीजेपी की सारी उम्मीद अब ‘अगर’ फैक्टर की कामयाबी पर टिका है।

बीजेपी का यह चिंतन उस परिस्थिति के लिए है, जब दो-तीन महीने में आर्थिक हालात सुधरने की बजाए बद से बदतर हो जाएं। ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि नोटबंदी चुनाव में बीजेपी को किस ओर ले जाएगी। लेकिन हालात न संभालने पर बीजेपी को पत्ते कुछ और फेंटने पड़ सकते हैं ये तय है।

बेनामी संपत्ति के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक

देश की व्यवस्था बदलने में जुटी मोदी सरकार ने नोटबंदी के बाद अब बेनामी संपत्ति के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करने में जुट गई है। कालेधन के हिस्से के रूप में मानी जा रही बेनामी संपत्ति के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी गई है। सरकार के फैसले के तहत आयकर विभाग की दो सौ टीमों ने ऐसी बेनामी संपत्तियों की जांच करने की कार्यवाही शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार नोटबंदी के कड़े फैसले के बाद केंद्र सरकार की ओर से काले धन पर जबरदस्त चोट करने के लिए व्यापक स्तर पर कार्रवाई शुरू की गई है। इस कार्यवाही में अब बेनामी संपत्तियों और महंगी प्रॉपर्टी पर खास नजरे रखे आयकर विभाग जांच में जुट गया है।

संपत्तियों का वेरीफिकेशन

सूत्रों के अनुसार सरकार ने फिलहाल गठित की गई आयकर और संबन्धित विभागों की 200 टीमों को देशभर में बेनामी संपत्तियों की जांच में सक्रिय कर दिया है। खासतौर से ये टीमें कमर्शियल प्लॉट्स, हाईवे के किनारे की जमीने और औद्योगिक जमीनों की जांच कर रही है। इसके अलावा देश के प्रमुख शहरों के वीआईपी इलाको में मौजूद जायदादों की जांच भी की जा रही है। प्रमुख औद्योगिक प्लॉटों और कॉमर्शियल लैटों, दुकानों की जांच की जा रही है। वहीं केंद्र सरकार ने तमाम विभागों से सरकारी जमीनों का भी ब्यौरा भी तलब किया है, ताकि इस बात का पता लगया जा सके कि सरकारी जमीनों पर कहां-कहां और किस-किसके कब्जे हैं। ऐसी एक सूची तैयार की जा रही है। वहीं आयकर विभाग और अन्य विभागों की मदद से इन सब संपत्तियों का वेरीफिकेशन किया जा रहा है।

कार्यवाही का आधार

सूत्रों के अनुसार ये टीम अभी संदेह के आधार पर जांच कर रही है और जो लोग बेनामी संपत्ति के मालिक पाए जाएंगे, उनके खिलाफ गत एक नवंबर से लागू हो चुके बेनामी ट्रांजेक्शन एक्ट 2016 कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस कानून के तहत बेनामी संपत्ति को जब्त करने के अलावा दोषी पाए जाने पर सात साल की सजा का भी प्रावधान है।

क्या है बेनामी संपत्तियां

बेनामी का मतलब है बिना नाम के प्रॉपर्टी लेना। इस ट्रांजैक्शन में जो आदमी पैसा देता है वो अपने नाम से प्रॉपर्टी नहीं करवाता है। जिसके नाम पर ये प्रॉपर्टी खरीदी जाती है उसे बेनामदार कहा जाता है। इस तरह खरीदी गई प्रॉपर्टी को बेनामी प्रॉपर्टी कहा जाता है। इसमें जो व्यक्ति पैसे देता है घर का मालिक वही होता है। ये प्रॉपर्टी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से पैसे देने वाले का फायदा करती है।

अवैध लेन-देन और बेनामी प्रॉपर्टी की भी होगी जांच

जांच एजेंसियां काले धन का पता लगाने के लिए ये पता कर रही हैं कि किस के नाम हैं दुकाने और प्लॉट हैं और वह किसके नाम है बड़े बंगले और औद्योगिक प्लॉट भी इस जांच में शामिल हैं। जांच के दौरान पता चला है कि लुटियन जोन में भी कुछ बंगलों का वास्तविक मालिक कोई और है। जांच के दायरे में रिश्वत और भ्रष्टाचार की रकमों से खरीदे गए कुछ बंगले हैं। एक बंगला जांच बंद करने के नाम पर एक सीए के नाम खरीदा गया। ऐसे सभी मामलों की जांच जारी है।

ऐसे बनती है बेनामी प्रॉपर्टी? जानकारों के अनुसार जो प्रॉपर्टी इन मानकों पर खरी नहीं उतरती है या पत्नी और बच्चों के नाम पर खरीदी गई हो, लेकिन इसके लिए पैसा आय के अज्ञात स्रोत से दिया गया हो, वह इस दायरे में होती है। वहीं आय के अज्ञात स्रोत से भाई या बहन या रिश्तेदार के नाम पर ली गई अथवा किसी और विश्वासपात्र के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी बेनामी दायरे में शामिल है।

जानें क्या हो सकती है सजा?

• नए कानून के तहत बेनामी प्रॉपर्टी पाए जाने पर सरकार उसे जब्त कर सकती है।

• या बेनामी लेन-देन पाए जाने पर 3 से 7 साल की कठोर कैद की सजा और प्रॉपर्टी की बाजार कीमत पर 25 फीसदी जुर्माने का प्रावधान है।

• ये दोनों सजा साथ-साथ दी जा सकती है। 

• जो लोग जानबूझकर गलत सूचना देते हैं उन पर प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य का 10 फीसदी तक जुर्माना और 6 माह से लेकर 5 साल तक की सजा का प्रावधान है।

• जैसे कि ज्वाइंट प्रॉपर्टी में आपका नाम है और आप ने जानबूझ कर इसको डिक्लेयर नहीं किया तो यह अपराध इस श्रेणी में आ सकता है।

• ये दोनों सजा साथ-साथ दी जा सकती है।

आर्थिक असर

2017-18 का बजट 1 फरवरी 2017 को पार्लियामेंट में पेश किया जाएगा। उम्मीद है वेतन भोगियों, छोटे व्यवसाइयों तथा किसानों के लिए उक्त बजट अच्छा साबित हो सकता है। नोट बंदी के कारण 10 नवंबर से 18 नवंबर के दरम्यान बैंकों के पास कुल 5.45 लाख करोड रुपए के नोट जमा हुए हैं। जिनमें 33006 करोड रुपए की रकम नोट बदलने के कारण तथा 5. 12 लाख करोड रुपए के नोट खातेदारों द्वारा बैंक में जमा करने के कारण ही प्राप्त हुई है। इसका सीधा अर्थ है कि इस बार इनकम टैक्स के दायरे में आने वालों की संख्या काफी बढ़ सकती है। जिसके कारण टैक्स की दर तथा सीमा को घटाने की घोषणा इस बजट में की जा सकती है। 2015-16 में टेक्स का अनुमान ₹14.45 लाख करोड़ प्राप्त होने का था जो बढ़कर 14.55 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। यह एक अच्छा संकेत है।

10 नवंबर से 18 नवंबर के बीच लोगों द्वारा बैंकों तथा ATM मशीनों से ₹1.03 लाख करोड़ की रकम निकाली गई। इससे ऐसा अनुमान है कि आने वाले समय में अधिकतर लोग अपने बैंक खाते खुलवाने की कोशिश करेंगे तथा लेन-देन कैश की जगह paytm/atm या बैंक के द्वारा करेंगे। जिसमें काले धन के चलन पर अंकुश लग सकेगा।

कैशलेस ट्रांजेक्शन की गति को तेज करने के लिए 21 नवंबर 2016 को निर्देश जारी किया जा चुका है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक सरकार की तरफ से कोशिश की जा रही है कि राज्य या केंद्र सरकार की खुदरा दुकानों के साथ सहकारी संस्थाओं की दुकानों पर भी कार्ड से भुगतान की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। बैठक में ई-वालेट, बैंकिंग करेससपोंडेंर के दायरों को बढ़ाने पर भी विचार किया गया। सूत्रों के मुताबिक सरकार स्थानीय स्तर के बाजारों के दुकानदारों को स्वाइप मशीन देने पर भी विचार कर रही है ताकि उनके ग्राहक कार्ड से भुगतान कर सकें।

भारतीय अर्थव्यवस्था के बुरे संकेत

बैंक एनपीए व रिस्ट्रक्चर्ड लोन बड़े: 2015-16 के दौरान देश के सभी बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) और स्ट्रक्चर्ड लोन की राशि 832786 करोड़ रुपए पर पहुंच चुकी है, जो 2 साल पहले 608967 करोड़ रुपए के स्तर पर थी। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार में मंगलवार को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि बैंकों के एनपीए बढ़ने की मुख्य वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती है। इस वजह से देश से निर्यात कम हो रहा है, जिससे कारोबारी समय पर बैंकों का ऋण नहीं लौटा पा रहे हैं। इसी वजह से उनकी लोन लौटाने की किस्त में फेरबदल भी करना पड़ रहा है। बैंकिंग भाषा में इसे स्ट्रक्चरिंग कहते हैं।

स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में 628 भारतीयों के खाते: संतोष गंगवार नेल बताया कि डबल टेक्सेशन अवाइडेंस कन्वेंशन के तहत फ्रान्स सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक स्विट्ज़रलैंड के एचएसबीसी बैंक में 628 भारतीयों के खाते हैं।

आईडीएस में 64275 घोषणाएं: गंगवार ने बताया कि आय घोषणा योजना 2016 के तहत 64275 लोगों ने अघोषित आय की। इन घोषणाओं में ₹65250 करोड़ रूपये के काले धन का खुलासा हुआ है।

कंपनियों को सीएसआर के लिए नोटिस: सरकार ने 496 कंपनियों की सीएसआर नियमों का पालन न करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है। संसद को यह जानकारी कंपनी मामलों के राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने दी थी।

बैंकिंग परिदृश्य नकारात्मक: खराब संपत्ति गुणवत्ता और आय में कमी को देखते हुए  वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने मंगलवार को भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के परिदृश्य के लिए नकारात्मक रेटिंग बरकरार रखी।

फिच रेटिंग्स के निदेशक (वित्तीय संस्थान) सारस्वत गुहा ने कहा कि नकारात्मक परिदृश्य बरकरार रखने का यह मतलब है की बैंकिंग क्षेत्र की बदहाल वित्तीय स्थिति के बारे में हमारी चिंता कायम है।

कैशलेस खरीद फरोख्त के बाद जल्दी ही जीएसटी भी लागू होने वाली है। उम्मीद है नई सरकार का राजस्व बड़ी मात्रा में बढ़ेगा। दुकानदार अप्रत्यक्ष कर तथा आयकरदाता प्रत्यक्ष कर देने से बच नहीं पाएंगे। इस तरह काला कारोबार अपनी दम तोड़ सकता है। यह वित्त मंत्रालय की बड़ी सफलता अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक अच्छा कदम सावित होगा। हालांकि राजनीतिक मोर्चे पर सत्ताधारी पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पढ़ सकता है।

लेखक: (हिंदुस्तान द्वारा आयोजित "भ्रष्टाचार का सामना कैसे किया जाय" स्नातक लेवल हिंदी निवंध प्रतियोगिता में दिल्ली से प्रथम पुरुस्कार प्राप्त कर चुके है) 

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