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संक्षिप्त आग्रह

देश के समग्र विकास हेतु पांच प्रमुख मुद्दों को लागू करवाने हेतु सरकार को विवश करना 

(Compelling the government to implement following key issues for holistic development)

 

1. आरक्षण की समग्र सामाजिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Holistic social representation system for Reservation) 

2. भ्रष्टाचार मुक्त समग्र चुनाव प्रणाली (Corruption free holistic election system) 

3. समान स्तरीय एकरूप शिक्षा प्रणाली (Equal and uniform education system) 

4. समग्र रोजगार एवं उपयुक्त वेतन प्रणाली (Holistic employment and proper wages system)

5. मुफ्त एवं समग्र स्वास्थ्य सेवा प्रणाली (Free and holistic healthcare system)

 

डा. बी. आर. अम्बेडकर जी ने कहा था "संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो यदि उसको चलाने वाले बुरे हैं तो वह अंतत: बुरा ही सावित होगा, इसके विपरीत संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो यदि उसको चलाने वाले अच्छे हैं तो वह अंतत: अच्छा ही सावित होगा।" उक्त कथन का अभिप्राय है कि यदि सरकार राष्ट्रीय समग्र विकास संघ द्वारा सुझाए राष्ट्र विकास  के कार्यक्रमों को अमल में लाना चाहे तो इन योजनाओं को पूरा करने के लिए आज सरकार के पास लगभग 130 लाख करोड़ रूपये का राष्ट्रीय कोष आसानी से निर्मित हो सकता है। इसके निर्माण में 28 लाख करोड़ का विदेशी काला धन, लगभग 50 लाख करोड़ का घरेलू काला धन, लग भग 50 लाख करोड़ मंदिरों में जमा सोने के रूप में धन, जन प्रतिनिधियों को मिलने वाली विकास निधि का पैसा, बैंक के दिवालियों से वसूला गया जुर्माना इत्यादि सहायक सिद्ध हो सकते हैं। यदि सरकार उक्त योजनाओं को पूरा करना नहीं चाहती है, तो अनेक आकर्षक बहाने भी मिल सकते हैं।

उक्त प्रस्तावना में उठाये गए सभी सवाल और जवाब सरकार और जनता के सामने प्रस्तुत किये गए है। यदि आपको अच्छे लगें तो संगठन से जरूर जुड़िये और राष्ट्र विकास में अपना योगदान दीजिये।

धन्यवाद,    

संगठन की अवधारणा

बीसवीं सदी के सामाजिक परिवर्तन के महानायक मान्यवर कांशी राम ने पहली बार जाति को राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग कर बहुजन समाज की राजनीतिक ताकत को नई धार दे कर सामाजिक परिवर्तन के लक्ष्य को आगे बढ़ाया। राजनीतिक जागृति होने से समाज के पिछड़े वर्गों ने राजनीतिक दल बनाने शुरू कर दिए, संसद और विधान सभाओं में इनकी संख्य़ा बढ़ने लगी। नौकरियों में आरक्षण के कारण नौकरशाही में भी पिछड़े समाज की हिस्सेदारी बढ़ने लगी। हर जाति अपनी-अपनी संख्या बल को पहचान कर अपना हिस्सा मांगने लगी। नौकरियों में कुछ उच्च समुदायों का हिस्सा पहले से कम होने लगा तो वह लोग योग्यता की दुहाई देकर अफवाहें फैलाने लगे कि आरक्षण से चुने हुए कर्मचारी एवं अधिकारियों को काम करना नहीं आता है, जिसके कारण उनके इंजीनियरों द्वारा बनाए गए पुल गिर जाते हैं, उनके डाक्टर पेट मैं कैंची छोड़ देते हैं, उनके मास्टरों द्वारा पढ़ाए छात्र फेल हो जाते हैं, इत्यादि-इत्यादि। फलत: सन 1980-82 में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन-जातियों का नौकरियों में आरक्षण ख़त्म कराने हेतु उग्र आंदोलन गुजरात की धरती से जोर पकड़ने लगा। ठीक उसी समय से मान्यवर कांशी राम जी ने पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों के गैर राजनीतिक संगठन (बामसेफ) के माध्यम से सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया और अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण हेतु मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कराने हेतु आंदोलन शुरू कर दिया। अन्य पिछड़े वर्ग की कुछ जातियों के कर्मचारियों ने दस वर्ष के लम्वे अंतराल के बाद मंडल कमीशन की सार्थकता को पहचान लिया। उस समय मान्यवर कांशी राम जी के नेतृत्व में चल रहे बहुजन आंदोलन जिसका प्रमुख नारा था “मंडल कमीशन लागू करो बरना कुर्सी खाली करो” के दबाव के फलस्वरूप 7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के लिए विवश होना पड़ा। उक्त ऐतिहासिक फैसले के बाद हर जाति अपने को ऊँचा बताने कि जगह नीचा बताने में गौरव महसूस करने लगी। आज आप देख रहे हैं कि अपने को कल तक जो लोग ऊँची जाति का बता कर समाज में सम्मान प्राप्त कर रहे थे, वे सभी आज आरक्षण के दायरे में आने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। हरियाणा का जाट, महाराष्ट्र का मराठा, गुजरात का पाटीदार एवं आंध्र प्रदेश का कापू समुदाय, पिछड़ी जातियों की अनुसूची में शामिल होने के लिए निरन्तर आंदोलन कर रहे हैं। महात्मा गांधी जी की प्रचलित अवधारणा जिसमें अपनी जाति को उच्च वर्णीय जाति बताने की परिपाटी के विपरीत मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद अधिकांश जातियां आरक्षण की परिधि में आने के लिए अपनी जाति को शूद्र वर्ण की बताने में गर्व महसूस करती हैं। उक्त नयी परिपाटी, कांशी राम जी के सामाजिक परिवर्तन हेतु चलाये गए आंदोलन "जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी" का परिणाम है। सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति की दिशा में अभी बहुत काम होना बाकी है, जो हमारी और आप की जिम्मेदारी है।

      इक्कीसवीं सदी के आंदोलन पिछड़ी जातियों के अधिकारों पर केंद्रित होने लगे हैं, हिन्दू जातियों के आलावा धार्मिक अल्पसंखक समुदायों के अंतर्गत आने वाली पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिलने लगा है। कुल मिलाकर देश की 77 फीसदी आबादी आरक्षण के दायरे में आ गई है, परन्तु, कुल मिला कर आरक्षण की सीमा माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 50% सुनिश्चित किए जाने के कारण तीनों पिछड़े वर्गों को आरक्षण का केवल 49% हिस्सा ही मिल पा रहा है, जबकि, संविधान द्वारा प्रदत्त सामाजिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार 77 फीसदी से अधिक मिलना चाहिए । 'राष्ट्रीय समग्र विकास संघ' चाहता है कि कृषि, ट्रेड, कॉमर्स, इंडस्ट्री, उच्च-शिक्षा, हायर जुडिशियरी, डिफेन्स सर्विस, प्राइवेट सर्विस, ठेके, लाइसेंस, पेट्रोल पम्प, राज्य सभा एवं मीडिया इत्यादि  में भी पिछड़े वर्गों का जनसँख्या के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व होना सुनिश्चित हो।

पिछड़े वर्गों के सामाजिक हितों की सुरक्षा एवं वकालत करने हेतु एक सशक्त गैर-राजनीतिक संगठन की जरुरत है, जो सभी सामाजिक न्याय के प्रहरी राजनैतिक दलों को गार्जियन की हैसियत से एक छतरी के नीचे ला सके।

1.   समग्र सामाजिक प्रतिनिधित्व सम्बन्धी अवधारणा

प्राप्त आंकड़ों के आधार पर समाज के चार वर्गों में सम्मिलित, अनुसूचित जातियों की भारतीय कुल जनसँख्या में हिस्सेदारी 16.6%, अनुसूचित जनजातियों की 8.6%, अन्य पिछड़ी जातियों की 52.1% एवं अगड़ी जातियों की 22.7% के बराबर आंकी गई है। अत: सभी क्षेत्रों में इन वर्गों को जनसँख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यदि सरकार चाहे तो सभी सामाजिक वर्गों को जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण (प्रतिनिधित्व) दे कर सामाजिक न्याय के सिद्धांत का पालन करते हुए राष्ट्र का समग्र विकास कर सकती है। इस सामाजिक न्याय के सिद्धान्त का प्रतिपादन तथा क्रियान्वयन 26 जुलाई 1902 को छत्रपति शाहू जी महाराज ने अपनी कोल्हापुर रियासत में आरक्षण नीति के माध्यम से किया था। इस दिशा में उक्त संगठन रिसर्च और विश्लेषण करके एक विस्तृत रिपोर्ट “समग्र प्रतिनिधित्व प्रणाली” तैयार कर चुका है जो प्रधानमंत्री कार्यालय में लम्वित है।

 2.   चुनाव सुधार तथा भ्रष्टाचार उन्नमूलन सम्बन्धी अवधारणा

भ्रष्टाचार दूर करने के लिए चुनाव सरकारी खर्चे पर होना चाहिए, इसके लिए भी एक नई नीति लाने की जरूरत है, जिस पर कोई भी राजनीतिक दल चिंतित नहीं है। उक्त संगठन चाहता है कि एक व्यक्ति लगातार दो टर्म से अधिक मुख्यमंत्री या प्रधान मंत्री के पद पर न रहे। इसी प्रकार एक व्यक्ति किसी भी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष पद पर दो से अधिक बार लगातार न रहे। इस सम्बन्ध में भारतीय संसद को कानून बनाकर प्रावधान करना चाहिए, ताकि भ्रष्टाचार का  सर्वनाश किया जा सके। भारतीय संविधान ने अंतिम नागरिक को चुनाव लड़ने तथा मतदान का अधिकार तो दे दिया है, परन्तु उस अंतिम और ईमानदार व्यक्ति की आर्थिक क्षमता सामान्यत: चुनाव के खर्च को वहन करने लायक नही होती है। इस लिए संसद या विधान सभाओं में धन-बली तथा बाहु-बली लोग ही पहुँच पाते हैं। जो कभी भी गरीबों के हित में कानून बनाने के पक्ष में नहीं होते। इसी लिए गरीब आदमी केवल वोटर बन कर रह जाता है। इस लिए परंपरागत चुनाव कानून में संशोधन करके हर व्यक्ति को प्रचार-प्रसार में, बराबरी का अधिकार देना जरुरी है। संशोधित चुनाव कानून के तहत, जब समाज का अंतिम आदमी संसद या विधान सभाओं में चुन कर जाने लगेगा, तब डा.बी.आर. अम्बेडकर का सच्चे लोकतंत्र का संवैधानिक सपना साकार हो सकेगा।

3.   समान स्तरीय-एकरूप शिक्षा प्रणाली सम्बन्धी अवधारणा

उक्त संगठन चाहता है कि समाज के अमीर तथा और गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त तथा समान स्तरीय प्राइमरी और स्कूल लेविल की शिक्षा प्रदान हो। जिसमें दोहरी शिक्षा प्रणाली का अंत किया जाए तथा प्राइवेट स्कूलों को सरकार अपने अधीन लेकर उक्त नियम को लागू करे। इस दिशा में देश के हर बच्चे को पढ़ने का मौलिक अधिकार प्राप्त हो जिसमें नर्सरी से स्कूल तक की सामान स्तरीय शिक्षा की गारंटी सरकार दें।

सर्व शिक्षा अभियान का सपना समान(यूनिफार्म) शिक्षा के विना अधूरा है, जो राष्ट्रीयकरण की नीति के माध्यम से ही सम्भव है। इन सभी विषयों पर सामाजिक सहमति बनना जरुरी है । इस विषय पर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को विचार करना होगा, तथा गरीब और अमीर सभी को सामान स्तरीय शिक्षा व्यवस्था कराने हेतु सरकार पर दबाव बनाना होगा। आइये हम सभी देशवासी समाज और देश हित मैं अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठ कर समाज के उत्थान की सोच बनाएं, पुनर्जागरण का अभियान चला कर राष्ट्र के कमजोर भाइयों को मजबूती प्रदान करने में योगदान करें। “राष्ट्रीय समग्र विकास संघ”भारत में इस दिशा में काम कर रहा है, जिसे आप सभी के सहयोग की अपेक्षा है।

4.   समग्र रोजगार प्रणाली सम्बन्धी अवधारणा

उक्त संगठन चाहता है कि समाज के बेरोजगार और गरीब परिवारों के जीवन स्तर में आमूलचूल परिवर्तन हो। इस दिशा में हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोजगार जरूर मिले और उस व्यक्ति का वेतन भी सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारी के न्यूनतम वेतन से कम ना हो।    

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर वर्ष 1 करोड़ नए रोजगार चाहने वाले जुड़ जाते हैं। 1991-2013 के बीच भारत में 30 करोड़ लोग रोजगार चाहने वाले जुड़े, जिनमें से केवल 14 करोड़ लोगों को ही रोजगार हासिल हुआ, और 16 करोड़ लोग बेरोजगार रह गऐ। हमें यह बात भी याद रखनी होगी कि भारत में लगभग 85% श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इसलिए ज्यादातर श्रमिक अपना जीवन स्तर सुधारने में नाकामयाब रहते हैं। जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति में वह लोग नहीं पहुंचेंगे, तब तक आर्थिक विकास का फायदा कुछ चंद लोगों को ही मिलता रहेगा। इस दिशा में सामाजिक संगठनों और सरकार को ईमानदारी से ठोस प्रयास करने की जरूरत है। इस सम्बन्ध में "डेविड सुजुकी" ने कहा है कि "हमें प्यार चाहिए और उसे सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण रोजगार और सामाजिक न्याय जरूरी है।"  

प्रस्तावना - राष्ट्रीय समग्र विकास संघ

'राष्ट्रीय समग्र विकास संघ' पढ़े-लिखे कर्मचारियों/अधिकारियों, वकीलों, पत्रकारों, अभियंताओं, डॉक्टरों एवं अन्य बुद्धिजीवी वर्ग से संबंधित लोगों ने मिलकर राष्ट्र और समाज के समग्र विकास हेतु निर्मित किया है। सर्वप्रथम जनवरी 2014 में कुछ बुद्धिजीवी एवं समाजसेवियों ने मिलकर श्री चमनलाल (भारतीय पुलिस सर्विस से सेवानिवृत्त) के संरक्षण तथा श्री के.सी. पिप्पल (भारतीय आर्थिक सर्विस से सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में  उक्त संगठन को निर्मित करने का संकल्प लिया। अल्प काल में संगोष्ठियों का आयोजन करके संगठन की विचारधारा को अधिकांश बुद्धिजीवियों तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की। संगठन की कोर टीम ने मिलकर यह निष्कर्ष निकाला, कि भारत के राष्ट्र निर्माण के संकल्प को पूरा करने में जातीय असमानता दूसरी असमानताओं से बड़ी बाधा सिद्ध हुई है। हमारे महापुरुषों एवं समाज सुधारकों ने समय-समय पर, इस बुराई को जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया, परंतु यह बीमारी और अधिक बढ़ती चली गई। आज भारत में सभी कार्यों का आधार जाति को ही बनाया जाता है । नियुक्तियों में आरक्षण, राजनीति में टिकट देने, सर्वोच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति, सर्वोच्च धार्मिक पद पर शंकराचार्य की नियुक्ति, ठेके और लाइसेंस देने, सर्वोच्च शिक्षा में कुलपतियों की नियुक्ति या अन्य कोई सर्वोच्च नियुक्ति करने का सवाल हो, उक्त सर्वोच्च पदों पर जाति की श्रेष्ठता को अधिक महत्व दिया जाता है।

डा. भीमराव अंबेडकर के अथक संघर्ष के कारण अब तक राजनीतिक समानता ही प्राप्त हो सकी है, जिसके कारण वंचित तबकों  को सम्मान प्राप्त हुआ है। परंतु आर्थिक और सामाजिक गैर बराबरी होने के कारण वे अपने इस अधिकार का प्रयोग अपने हित में नहीं कर पा रहे हैं। कुल मिलाकर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ी जातियों एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अंतर्गत आने वाली कमजोर जातियों में घोर निराशा तथा पराधीनता का भाव सक्रिय हो गया है। इस दिशा में चुने हुए राजनीतिक प्रतिनिधि, जो इन जातियों से चुनकर आते हैं, वे भी इनकी सहायता करने में पूर्णत: असफल साबित हुए हैं।

इसलिए “राष्ट्रीय समग्र विकास संघ” एक नई आशा और विश्वास के साथ समाज को सामाजिक न्याय दिलाने तथा सभी तरह की असमानताओं से समाज को मुक्ति दिलाने का तब तक सतत प्रयास करता रहेगा जब तक हर व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक कीमत बराबर नहीं हो जाती।

 

संगठन का स्वरूप

“राष्ट्रीय समग्र विकास संघ” पूर्णत: गैर राजनीतिक, पूर्णत: धर्मनिरपेक्ष एवं पूर्णत: सामाजिक न्याय की अवधारणा पर आधारित संगठन है। उक्त संगठन के सदस्य सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विषयों पर समय-समय पर अनुसन्धान एवं विश्लेषण करके सरकार और जनता को प्रेस, संगोष्ठियों और सेमिनारों के माध्यम से अवगत कराते हैं।

भारतीय संविधान में निहित सामाजिक न्याय की परिकल्पना का लक्ष्य आज भी अधूरा है। डॉ.भीम राव अंबेडकर ने राष्ट्र निर्माण का असली लक्ष्य तो भारतीय संविधान में पहले ही निर्धारित कर दिया था। भारतीय  संविधान का उद्देश्य "समता, स्वतंत्रता, बन्धुत्व और न्याय" के लक्ष्य को पूरा करने में पूरी तरह से सक्षम है। देश का यह पवित्र क़ानूनी ग्रन्थ अधिकांश आबादी का प्रहरी है। जो तमाम संस्कृतियों, विभिन्न सामाजिक समुदायों, भाषा-भाषियों तथा सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा करता है। अगर जरूरत है तो इसको लागू करने की नियत रखने वाली सरकार की, जो समग्र विकास की धारणा के साथ काम करे। हमें अनेक समाज सुधारकों के लम्बे संघर्ष के बाद यह मुकाम हासिल हो सका है। जिनमें महात्मा ज्योतिवा फुले का सर्वशिक्षा का आंदोलन, कोल्हापुर के महाराज छत्रपति शाहू जी का सामाजिक न्याय का आंदोलन, महान समाज-सुधारक नारायणा गुरु का सांस्कृतिक समानता का आंदोलन, पेरियार रामास्वामी नायकर का आत्मस्वाभिमान आंदोलन एवं बाबा साहब डॉ. अम्वेडकर का समग्र विकास का मिशन उल्लेखनीय है।      

यह सत्य है, कि कुछ यथास्थितवादी ताकतों का लक्ष्य भारत में जाति-व्यवस्था को बनाए रखना है, जबकि जाति-व्यवस्था भारत निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है। हम यहाँ एक बात और जोड़ना चाहते हैं कि जाति-व्यवस्था भारतीय समाज की कड़वी सच्चाई है। असमानता पर आधारित उक्त व्यवस्था को परिवर्तित करने के लिए समाज सुधारकों के अलावा अनेक संतों, गुरुओं एवं महापुरुषों ने भी निरंतर संघर्ष किया जिनमें संत कबीर, गुरु रविदास, चोखामेला, विरसा मुंडा, संत गाडगे, गुरु घासी दास, स्वामी अछूतानंद, स्वामी विवेकानंद आदि का महान योगदान रहा है। जाति-व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करने वाले महान समाज सुधारक तो आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जाति व्यवस्था आज भी कायम है, और जातियों की संख्या पहले से भी अधिक बढ़ गई है। जहाँ तक आजादी के बाद देश के विकास का सवाल है तो, अनेक  सरकारी, गैर-सरकारी एवं अंतराष्ट्रीय संगठनों की रिपोर्टें इस बात की साक्षी हैं कि विगत वर्षों मैं केवल 20 प्रतिशत भारत का ही निर्माण हो सका है, जिसका अधिकतर लाभ समाज के उच्च वर्णीय समर्थवान लोगों को ही प्राप्त हुआ है।